चाणक्य नीति की एक सूक्ति में राजनीति को उस वेश्या के सामान बताया गया है जो कीमत के आगे हर रात अपना बिस्तर बदल लेती है| सुना था, पढ़ा था और आज देख भी लिया| 30 लाख से शुरू हुई राजनीति की वेश्याओं की बोली 1 करोड़ पर आकर ख़त्म हुई और नए राजा का चयन हो गया| देश के विकास के लिए गठित पंचायत, मीडिया और लोकप्रशासन किसी बेबस विधवा की तरह लोकतंत्र के चीरहरण जलसे को चाहे अनचाहे ख़ामोशी से देखता रहा|
जनता के विश्वास का क़त्ल हुआ था आज| वो नवांकुर नेता जिसे एक महीने पहले जनता ने अपने लिए जिले की पंचायत में प्रतिनिधि चुना था उसने एक बार भी पलट कर अपने मतदाता से नहीं पूछा, कि फैसले की घडी है उसे क्या करना चाहिए| जनता जानती थी ये नहीं आएगा और न ही वो आया| मतदाता खुद को लुटा महसूस कर रहा था| उसने सारे फैसले खुद कर लिए थे|राजनीती की वेश्याओं ने सब बेच दिया था, राजधर्म और वो विश्वास जिसका झूठा दिलासा दिलाकर वो जनता को बेबकूफ बनाकर आया था| आज उसने अपार दौलत बटोर कर बेशर्मी की चादर ओढ़ ली है|अब जब भी उसे कोई बिकने की बात को लेकर टोकेगा तो सुनने वाला कछुए की तरह भ्रष्टाचार की दौलत से बने मोटे खोल में बेशर्मी से मुह छुपाता नजर आएगा|
जनता की पंचायत में अब राजतिलक का जश्न होगा और भ्रष्टाचार का एक और अध्याय लिखा जायेगा| वेश्याओं की खरीददारी में आये खर्च को वसूलने को अगले पांच साल तक पंचायत के नुमायेंदे मिलकर लूटेंगे| सवाल इस बात का नहीं कि उस गद्दी पर कौन बैठ कर लूटेगा| कोई भी जीतता यही करता, दोनों के पैतरे एक जैसे ही थे| पांच साल के लिए जिले का प्रथम नागरिक बनने की लडाई में आये दावेदारों में दो का तो सम्राज्य ही चोरी और बेईमानी की बुनियाद पर खड़ा है, तीसरा जो कुछ इमानदार था उसने इस मंडी में बोली लगाने से इंकार कर दिया था और चौथा एक राजनैतिक दुश्मन हो हराने के लिए एक ही रात में कई करवट बदल कर दूसरे राजनैतिक दुश्मन से हाथ मिला बैठा|
नोट-लेख आज के राजनितिक परिद्रश्य पर आधारित चित्रांकन है न कि किसी व्यक्ति विशेष या स्थान से सम्बन्धित|