नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव में कृष्णा नगर सीट से लगातार दूसरी बार सीएम कैंडिडेट मैदान में है। पिछली बार यहां से डॉ हर्षवर्धन बतौर सीएम कैंडिडेट मैदान में थे तो इस बार किरन बेदी के आने से स्थानीय नेता चूक गए हैं, लेकिन विपक्षी उम्मीदवार के प्रभावी न होने से किरन के आगे कोई खास चुनौती नहीं दिखती।
वैसे किरन बेदी को भले ही विपक्षियों से कोई खतरा न दिखता हो और उनके जीतने की भविष्यवाणियां की जा रही हों, लेकिन सच तो ये है कि उन्हें आंतरिक बिखराव का सामना करना पड़ रहा है। यहां पिछले चुनाव में कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव लड़े डॉक्टर मोंगा ने बीजेपी में इस उम्मीद के साथ वापसी की थी कि डॉ हर्षवर्धन के केंद्र की राजनीति में उलझे होने की वजह से उन्हें मदद मिलेगी, लेकिन किरन बेदी के आने के साथ उनको बड़ा झटका लगा। ये झटका उनके समर्थकों को भी नहीं पचा। हालांकि बीजेपी कार्यकर्ता यहां एकजुट होने का दावा तो करते हैं, लेकिन दिल से नहीं।
चुनावी समीकरण की बात करें, तो इस सीट पर वैश्य और पंजाबी समुदाय लगभग बराबरी 40-40 फीसदी की संख्या में हैं। जो बीजेपी का मजबूत वोटवैंक माने जाते हैं। इन्हीं के दम पर डॉ हर्षवर्धन यहां हमेशा से अजेय रहे। इस बार बेदी के आने के साथ ही पंजाबी वोटर उनके साथ हो तो लिए हैं, तो वैश्य वोटरों के पास भी बीजेपी से अच्छा विकल्प नहीं दिखता। यहां आम आदमी पार्टी को लेकर लोग बात नहीं करते।
किरन बेदी के पक्ष में यहां सबसे बड़ी बात इलाके का बीजेपी का गढ़ होना है तो बीजेपी की सीएम कैंडिडेट होने की वजह से भी लोग उनके लिए लामबंद हो रहे हैं। हालांकि डॉ हर्षवर्धन ने पिछला चुनाव जिस भारी अंतर के साथ जीता था, उस भारी अंतर के साथ किरन की जीत पर संशय है। यहां से कांग्रेसी उम्मीदवार बंसी लाल पुराने कांग्रेसी होने के बावजूद वो पकड़ नहीं दिखा पा रहे हैं, जिसकी कांग्रेस को उम्मीद थी। वहीं आम आदमी पार्टी के एस के बग्गा पंजाबी वोटरों में सेंध लगाते दिख रहे हैं। हालांकि बीजेपी के परंपरागत वोटर बीजेपी के साथ खड़े दिखते हैं। यहां के रण के नतीजे साफ हैं, जबतक कि रातों-रात कोई चमत्कार नहीं हो जाता।