नई दिल्ली: महाराष्ट्र और हरियाणा में भाजपा की सरकार बनना तय हो चुकी है| हरियाणा में भाजपा को बहुमत मिला है जबकि महाराष्ट्र में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। महाराष्ट्र में भाजपा को यह तय करना है कि वह किसके समर्थन से सरकार बनाएगी। एनसीपी ने बीजेपी को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की है। लेकिन आरएसएस को एनसीपी के समर्थन से एतराज है। संघ का मानना है कि बीजेपी को शिवसेना के साथ गठबंधन कर सरकार बनाना चाहिए। लालकृष्ण आडवाणी ने भी शिवसेना से गठबंधन को लेकर कहा, ”मैं कभी नहीं चाहता था कि गठबंधन टूटे, लेकिन मैं नतीजों से संतुष्ट हूं।” उन्होंने कहा कि अच्छा होता कि शिवसेना और बीजेपी साथ मिलकर सरकार बनातीं। लेकिन एनसीपी के एलान से शिवसेना की सौदेबाजी की हैसियत कम हो गई है।
शिवसेना-भाजपा का इक्वेशन
महाराष्ट्र में सबसे अधिक संभावना भाजपा-शिवसेना गठबंधन बनने की ही है। लेकिन शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि अगर गठबंधन हुआ तो मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा। वहीं, बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने भी कहा है कि बीजेपी के नेतृत्व में सरकार बनेगी और सीएम उनकी पार्टी का ही होगा। बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी ने भी महाराष्ट्र में आए नतीजों पर खुशी जताते हुए कहा कि वह बिल्कुल आश्वस्त हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी का ही मुख्यमंत्री बनेगा।
शिवसेना बीजेपी की स्वाभाविक सहयोगी रही है। 25 साल तक राज्य में चले रिश्तों के अलावा केंद्र में एनडीए गठबंधन में बीजेपी और शिवसेना की भागीदारी इस संभावित गठजोड़ की उम्मीदों को मजबूत करती है। हालांकि, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि शिवसेना इतनी आसानी से समझौता नहीं करेगी। वह राज्य में सीएम पद के साथ-साथ केंद्र में कुछ और मंत्री पद लेने के लिए निश्चित तौर पर मोलभाव करेगी। लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को यह कह कर कि गठबंधन तोड़ने का फैसला उनका नहीं था, शिवसेना को कड़ा संदेश देने की कोशिश की।
एक पक्ष यह भी है कि एनसीपी के बीजेपी को समर्थन दिए जाने की घोषणा शिवसेना को बीजेपी के साथ पूरी तरह मोलभाव करने की आजादी नहीं देगी। शिवसेना के सामने अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने की भी चुनौती है। ऐसे में, बीजेपी और शिवसेना बीच का रास्ता निकालकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकती हैं।
बीजेपी और एनसीपी का साथ
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में बीजेपी ही सरकार बनाएगी। पार्टी की ओर से साफ कर दिया गया है कि वह भी किसी के साथ जाने को तैयार है, बशर्ते वह पार्टी बीजेपी के घोषणापत्र को समर्थन दे।
विधानसभा चुनावों के पहले से ही एनसीपी के कांग्रेस से रिश्ते बिगड़ने और मोदी से नजदीकी बढ़ने की खबरें आती रही हैं। अफवाहें तो यहां तक हैं कि मोदी ने अभी तक रक्षा मंत्री का पद एनसीपी प्रमुख शरद पवार के लिए ही खाली रखा है। इसके अलावा, लोकसभा चुनावों के बाद मोदी और पवार की मुलाकातों से जुड़ी खबरें आती रही हैं। चुनावों के बाद एनसीपी द्वारा अपने सहयोगी कांग्रेस की खुली आलोचना और चुनाव से पहले दोनों का गठबंधन टूटना बीजेपी और एनसीपी के गठबंधन की नींव बन सकता है।
एक और इक्वेशन: एनसीपी और शिवसेना (कांग्रेस का बाहर से समर्थन)
चुनावी रुझान आने के साथ ही एनसीपी ने यह कह कर एक और संभावना के रास्ते खोल दिए कि अगर शिवसेना हिंदुत्व का रास्ता छोड़ दे, तो वह उसके साथ आ सकती है। हालांकि, दोनों पार्टियों को मिलाकर इतनी सीटें नहीं हैं कि सरकार बन सके। ऐसे में, इस गठबंधन को मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस की भी जरूरत होगी। शिवसेना की वजह से कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा न बनते हुए बाहर से समर्थन दे सकती है। कांग्रेस यह दलील भी दे सकती है कि सांप्रदायिक ताकतों (कांग्रेस की नजर में बीजेपी) को रोकने के लिए इस गठबंधन को बाहर से समर्थन देगी। हालांकि, इस इक्वेशन के हकीकत में बदलने की संभावना सबसे कम है।