सौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली है| अल्ट्रासाउंड केंद्र सीज हो गया तो स्वास्थ्य अधिकारियो पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे| अफसर बाकई दूध के धुले है ये अलग जाँच का विषय हो सकता है| आज नहीं तो कल सब कुछ सही हो ही जायेगा| मगर बात त्यौहार की है तो बिना इसके जिक्र किये बात अधूरी ही रहेगी| त्यौहार है और त्योहारो पर त्योहारी (बक्सीस) देने और लेने की परम्परा पुरानी और भारतीय है| दुकानो दुकानो ढोलक की थाप पर नत्र्य भाव उड़ेल कर वसूली करते हुए तीसरी श्रेणी के पुरुष स्त्री त्योहारो पर नेग वसूलने आते ही है| मगर अल्ट्रा साउंड के त्यौहार पर सीज होने को नेग मांगे की परम्परा से जोड़ कर देखना ठीक नहीं| सरकारी काम काज है इसमें तीज त्यौहार नहीं देखा जाता| भारत है तो भारत जैसी परंपरा तो देखने को मिल ही जाएँगी| मगर इसे किसी सरकारी कर्मचारी/अफसर के आचरण से जोड़कर देखना न केवल अनैतिक है बल्कि गैरकानूनी भी| ठीक है संयोग हो सकता है कि अफसर जिले में नए नए आये और छापे के समय ही त्यौहार बीच में आ गया| ऐसे तो अतिक्रमण हटाने के बीच में भी कई हिन्दू मुस्लिम त्यौहार आ गए थे और निशान लगने के बाबजूद आज तक अतिक्रमण नहीं हट सके| तो क्या उसे भ्रष्टाचार से जोड़ कर देख लिया जाए| बिना दूसरे का पक्ष का जाने जनता को भी मंतव्य नहीं बनाना चाहिए कि अतिक्रमण के दायरे में आने वाला चौक का टाइम सेंटर इसलिए नहीं हट सका कि उसमे बड़े नेता और अफसरों ने मिलकर रिश्वत खा ली थी| हो सकता हो कि परिस्थितया कुछ प्रतिकूल रही हो| आस नहीं खोनी चाहिए| सील अल्ट्रासाउंड का क्या आज नहीं तो कल खुल ही जायेगा| जैसे अब तक चला, आगे भी चलेगा| कौन सा रामराज्य आ गया है जो सजा मिलेगी|
मुद्दे पर लौटते है| आश्चर्य होता है ये पढ़कर और जानकर कि आयकर, सेवाकर से लेकर व्यापार कर तक चुराने वाले लोग अब अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा देते है| वैसे अगर आधा पेज का विज्ञापन फोटो के साथ एक बड़े अख़बार में आधे पेज में छपवा दिया जाए तो काम बन सकता है| हमेशा की तरह राष्ट्र को संदेश देने का प्रचार भी एक बार फिर से हो जायेगा और सामने वाले की हवा भी ख़राब| ऊपर से उस अख़बार में खिलाफ खबर भी साल छ महीने तक (या विज्ञापन के बिल का भुगतान न करने तक) नहीं छपेगी जिसमे विज्ञापन छपा होगा| वैसे तो पुरानी पीढ़ी के लोग जानते ही है कि जबसे से ससुरा ये अल्ट्रासाउंड ईजाद हुआ है पूरे यूपी में कहीं भी किसी की गोद हरी हुई फर्रुखाबाद एक बार जरूर पंहुचा| कोख में बच्चा लड़की है या लड़का ये जानने के लिए फर्रुखाबाद मशहूर हो गया था| शायद अब तक लाखो उन बच्चियों ने जन्म नहीं लिया है जो इन केन्द्रो में कोख में ही जाँच ली गयी|
सख्ती बढ़ी तो केंद्र में सीसीटीवी लगवा दिए गए| अस्पताल के अंदर पतली लम्बी गली से होकर गुजरने वाले रास्ते कैमरों से लेस कर दिए गए थे| कौन ससुरा फिल्म बना लिए जाए और फास दे| कन्या भ्रूण जानने के लिए इस केंद्र में विशेष ऐतिहात रखा जाता रहा| जिस कमरे में भ्रूण चेक होता था उसमे बढ़ी स्क्रीन लगायी गयी थी| जो भ्रूण के विषय में जानने वाली महिला के लेटने की स्थिति में उसके सामने स्क्रीन होता था| साइड में बैठे डॉक्टर साहब पेट के अंदर के दर्शन कराते और महिला को संतुष्ट कर देते कि उसकी कोख से जन्म लेने वाला मर्द है या एक बेचारी कन्या| ऐसे मामलो के रिकॉर्ड दर्ज नहीं होते थे| ये व्यवस्था वर्तमान में है की नहीं पता नहीं मगर जिस वर्ष 2007 में (स्टिंग ऑपरेशन) विडिओ बनी थी उस वर्ष तो थी| ऐसे मरीजों (जच्चा) का लेखाजोखा नहीं रखा जाता| उस साल सरकार ने जोर शोर से शोर मचाया था कि अल्ट्रा साउंड केन्द्रो पर स्टिंग ऑपरेशन होंगे और जो भ्रूण परीक्षण में लिप्त पाये जायेंगे उन्हें जेल के पीछे भेजा जायेगा| मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ| स्टिंग ऑपरेशन के विडिओ सीएमओ तक पहुँचते और जाँच के नाम पर सीएमओ उस वीडियो को बेच लेते| कार्यवाही न होते देख लोगो ने स्टिंग की भावना जागने से पहले विलुप्त हो गयी और मुख्यमंत्री के लफ्फाजी वाले बयान को लोग भूल गए| ये उत्तर प्रदेश है| यहाँ सब कुछ पैसे के चश्मे की नजर से देखा जाता है| दो चार आरोप और लग जायेंगे तो कौन सा जमीर जाग जायेगा| ये भी तो आखिर हम आप में से एक है| बात आम चलन की बस इतनी भर है कि “पटे तो “सती सावित्री” वर्ना तो लोग रंडी कहने भी नहीं चूकते|
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