लखनऊ। (पर्दाफाश): यूपी की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के अंदरखाने से खबर आ रही है कि पार्टी द्वारा सर्कुलर जारी कर पार्टी के मौजूदा विधायकों, विधान परिषद सदस्यों व सांसदों से रामपुर के जौहर विश्व विद्यालय को 10-10 लाख रूपए देने को कहा गया। यह राशि इन लोगों को अपने सरकारी निधि के खाते से अदा करनी थी। आखिर आजम खां का ड्रीम प्रोजेक्ट कहलाने वाले जौहर विवि के लिए पूरी पार्टी के सांसदों और विधायकों की निधि से इतनी बड़ी धनराशि जमा करवाने के पीछे की क्या वास्तविकता है यह किसी को नहीं पता। लेकिन सवाल उठता है कि प्रदेश में ऐसे कई और विश्वविद्यालय भी हैं जिनके स्तर को सुधारने के लिए सरकारी सहायता की आवश्यकता है लेकिन सरकार का ध्यान कभी इस तरह से उनकी ओर गया है, यह कहना गलत होगा।
सूत्र बताते हैं कि यूपी के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर सरकार के दूसरे नंबर के मंत्री आजम खां हमेशा ही दवाब बनाए रहे हैं। पार्टी का सबसे कद्दावर अल्पसंख्यक चेहरा होने के कारण पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों से लेकर तमाम मंत्री और स्वयं मुख्यमंत्री उनके फैसलों को हरी झंडी देते रहे। यूपी सरकार का अल्पसंख्यक कल्याण व वक्फ मामलों का मंत्री होने के कारण वह अल्पसंख्यकों से जुड़े कई फैसले अकेले ही लेते रहे, जबकि पार्टी के अन्य अल्पसंख्यक नेता अपने मनसूबों को पाले ही रह गए। आजम के फैसलों की न तो आलोचना हो सकती है और न ही शिकायत।
यूपी के सत्ता गलियारों में कहा जाता है कि आजम यूपी सरकार के समानांतर अपनी अलग सरकार चलते हैं। जिसमें सारे फैसले उनके होते हैं और हर फैसला आजम की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर सवार होता है। किसी ने रोका टोका तो आजम की प्रतिष्ठा बिदक जाती है। कुछ ऐसा ही मसला जौहर विवि से भी जुड़ा है। इस विश्वविद्यालय को आजम खां की यूनीवर्सिटी के नाम से पूरा प्रदेश जानता है। पार्टी के कई विधायक इस विश्वविद्यालय का नाम तक नहीं जानते, लेकिन उन्हें पार्टी के निर्णय के सम्मान में अपने क्षेत्र में खर्च होने वाली निधि से 10 लाख का डोनेशन जौहर विश्वविद्यालय को देना पड़ा।
जौहर विवि को लेकर शिया धर्मगुरू मौलाना कल्वे जव्वाद ने भी कुछ गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि आजम खां जौहर विवि के डोनेशन के नाम पर करोड़ों की रिश्वत लेते हैं। अगर आजम के खिलाफ जांच हो तो उनके चेहरे से ईमानदारी का नकाब उतर जाएगा।
सवाल उठता है कि क्या यूपी का एक ही विश्वविद्यालय यूपी सरकार को नजर आ रहा है या बाकी विश्वविद्यालयों को सरकारी मदद की आवश्यकता नहीं है? क्या इसे ही समाजवाद कहेंगे? मेरी नजर में यह पूरी तरह व्यक्तिवाद है, जिसमें किसी एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को मौजूदा सरकार ने इतना बड़ा बना दिया है जिसे संभाल सकना सरकार के ही बस में नहीं रहा है।
[bannergarden id=”8″] [bannergarden id=”11″]