आम जनता को दी मोदी ने राहत, स्व प्रमाणित दस्तावेज होंगे मान्य

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narendra-modi-working_10_06_2014दिल्ली: रोजमर्रा के जीवन से लालफीताशाही और आम आदमी की अड़चनें दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कदम और आगे बढ़ाया है। फैसला तो छोटा है, लेकिन करोड़ों लोगों को राहत देने वाला है। दस्तावेजों का सत्यापन कराने के लिए विद्यार्थियों, युवाओं व दूसरे जरूरतमंदों को अब राजपत्रित अधिकारियों या नोटरी के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। स्व प्रमाणित दस्तावेज ही मान्य होंगे। हलफनामे की जगह भी स्व सत्यापित दस्तावेज ही पर्याप्त होगा। केंद्र की ओर से अपने सभी मंत्रालयों और राज्य सरकारों को इस आशय का निर्देश भेज दिया गया है।

चुनावी भाषणों में आम आदमी के जीवन से जुड़े छोटे-बड़े मुद्दों को सुलझाने का सुझाव देते रहे मोदी ने पहले दो महीने में ही एक और समस्या से राहत दे दी है। गौरतलब है कि प्रमाणपत्रों के सत्यापन की समस्या युवाओं के लिए खासकर परेशानी का सबब है। किसी संस्थान में दाखिला के लिए राजपत्रित अधिकारियों द्वारा सत्यापित प्रमाणपत्रों की प्रतियां मांगी जाती हैं। नौकरी के लिए भरे जाने वाले आवेदन पत्रों तक हर मामले में सत्यापित दस्तावेजों का जमा करना अनिवार्य है। जबकि दूरदराज से आने वाले लोगों के लिए राजपत्रित अधिकारी उनकी पहुंच से दूर हैं, लिहाजा नोटरी के हाथों वह लूटे जाते हैं। सरकार के नए फैसले से यह समस्या एक झटके में दूर हो जाएगी।

नए फैसले के अनुसार जहां कानूनी रूप से बाध्य न हो, लोग अपने दस्तावेजों का सत्यापन खुद करेंगे और वह मान्य होगा। स्व सत्यापन प्रक्रिया में मिलान के लिए मूल दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे। इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए यह प्रावधान है कि कोई फर्जी सत्यापन करेगा तो उस पर दंड संहिता के अनुसार कानूनी कार्रवाई होगी। प्रधानमंत्री ने खुद लोगों से आशा जताई है कि वे इसका लाभ उठाएंगे।

ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान ही इन सब मुद्दों को उठाया था। उन्होंने कहा था कि आम आदमी को राहत देने के लिए बहुत बड़े-बड़े फैसलों की जरूरत नहीं। उन्हें सरकारी जकड़न से मुक्त कराने की जरूरत है। छोटे-छोटे तमाम कदम ऐसे हैं, जिनसे करोड़ों लोगों को फर्क पड़ता है। पीएमओ सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री बड़े फैसले लेने से पहले जो पुराने बेवजह के घिसे-पिटे नियम चले आ रहे हैं, उन्हें दूर करने पर जोर दे रहे हैं। कोशिश है कि आम आदमी खासतौर से युवाओं को बेवजह की बातों में समय न खराब करना पड़े। यह फैसला उसी सोच की दिशा में एक कदम भर है।
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