इन्साफ की हालत- अतिक्रमण हटाने में भेदभाव- एक ही जमीन पर दो नियम

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Swagtam Gest Houseफर्रुखाबाद: लोकतंत्र में जनता को सरकार बदलने का अधिकार है| व्यवस्था ठीक न होने पर सरकार बदली जाती है| मगर जब नई उम्मीद भी बेकार नजर आये तब क्या करना चाहिए? आखिर क्या सिर्फ सरकार बदलने से काम चल जायेगा| या फिर जो प्रशासन चलाते है उन्हें भी बदलना होगा| जनता अब इस बात पर जागरूक होने लगी है और ये कोई शुभ संकेत नहीं है किसी भी सरकार के लिए| आखिर एक ही जुर्म के लिए दो अलग अलग सजाये क्यों? एक जैसे ही हालात वालो के लिए दो अलग अलग नियम क्यों? और आम आदमी और खास आदमी के लिए दो प्रकार के इन्साफ क्यों? वर्तमान में जिले में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जा रहा है| इसमें भी भेदभाव के आरोप लगातार लग रहे है| अधिकांश जनता को अतिक्रमण हटाने से परहेज नहीं है मगर जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा भेदभाव पसंद नहीं आ रहा है| आवाज उठने लगी है| इसे आज नहीं तो कल मुखर होना ही है|

कमालगंज कसबे के निवासी मो अहसान ने जिलाधिकारी को कसबे में अतिक्रमण हटाने में हुए भेदभाव पर एक सबूतों के साथ शिकायती पत्र सौपा है| चौकाने वाली बात ये है कि आसिफ ने इस पत्र की प्रतिया जिले और राज्य के बड़े अफसरों को भेजने की जगह इसकी प्रतिया लिखा पढ़ी में मीडिया को भेजी है| इस सवाल पर आसिफ का कहना है कि प्रशासन पर अब भरोसा नहीं रहा| अब बस मीडिया का ही सहारा है|

आसिफ की शिकायत ये है कि कमालगंज के शास्त्रीनगर कसबे में मुख्य मार्ग पर एक ही खसरा संख्या 234 में रोड साइड बने 2 अलग अलग लोगो के लिए पीडब्लूडी ने अतिक्रमण हटाने के लिए अलग अलग पैमाने तय कर दिए है| इस जमीन पर लौंगश्री के निर्माण के लिए सड़क के मध्य से 75 फ़ीट छोड़ कर निर्माण को वैध माना गया जबकि मो एहसान पुत्र इब्नुल हसन का निर्माण सड़क के मध्य से 55 फ़ीट दूर होने पर भी उसे वैध माना गया| एक ही जमीन पर पी डब्लू डी के दो मानक 75 फ़ीट और 55 फ़ीट कैसे हो गए| आसिफ ने इसकी जाँच करने की मांग के साथ साथ 55 फ़ीट की दूरी पर स्थित मो एहसान का निर्माण भी ध्वस्त करने की मांग की है| बात आसिफ की भी जायज है कि पडोसी के अतिक्रमण के कारण उनकी दूकान 20 फ़ीट पीछे दब गयी है|

डीएम के तबादले का लॉलीपॉप-
बात चौकाने वाली लग सकती है मगर जो जनता में चर्चा है वो यही है कि बड़े अतिक्रमणकारी चिंता न करे जल्द डीएम का तबादला हो जायेगा| आम जनता के जेहन में ये बात लगातार गूँज रही है कि कमजोर के अतिक्रमण तुरंत ढहाये जा रहे है और ताकतवर/पहुचवाले या बड़े लोगो के अतिक्रमण केवल निशान लगाकर बक्शे जा रहे है| इस उम्मीद में कि आज नहीं तो कल डीएम श्री चौहान का तबादला हो जायेगा और तब ये बड़े अतिक्रमण बच जायेंगे|

अब बरसात ने रोटी छीनी-
अतिक्रमण हटाये जाने से प्रभावित सड़क किनारे दूकान लगाने वाले सैकड़ो दुकानदार खुले आसमान के नीचे बरसात न होने की दुआ कर रहे है| बरसात होते ही उन्हें अपना तखत आदि हटकर धंधा बंद कर देना पड़ रहा है| जबकि बड़े दुकानदार या भवन स्वामियों को कोई फरक नहीं पड़ा| वे बड़े आराम से अपने भवनो पर लगे अतिक्रमण के निशान को लगा देखते है और छत के नीचे बैठ कर बरसात का नजारा ले रहे है| खुले आसमान के साये में अपने बच्चो के लिए चार पैसे जुटा लेने वाले दोनों को कोस रहे है| नगरपालिका के अधिकारी और कर्मचारी भी बड़े अतिक्रमणकारियों को डीएम के तबादले का दिलासा दिला कर चाय पानी कर रहे है| गरीब की कौन कहेगा और सुनेगा?

अतिक्रमण का निशान लगे होने का कोई मतलब नहीं-
वैसे तो प्रशासन अतिक्रमण का निशान इसलिए लगाता है कि लोग अपना अतिकतमं खुद हटा ले| मगर ऐसा होता नहीं दिख रहा| एक भी अतिक्रमणकारी ने खुद अपना अतिक्रमण अभी तक नहीं तोडा है| सबसे पहले आवास विकास कॉलोनी में एक माह पहले पांच जगह निशान
लगाये गए थे| स्वागतम गेस्ट हाउस से लेकर डॉ जे एम वर्मा तक पांच भवन पर लाल निशान लगा था| निशान आज भी बरक़रार है, अतिक्रमण तोड़े जाने के लिए शायद डीएम द्वारा कानपुर से मंगाई जा रही बुलडोजर और कटर का इन्तजार हो रहा है| यही हालत अन्य लाल निशानों की है| ये फर्रुखाबाद है यहाँ लाल निशान को कोई खुद नहीं हटता उसे हटाना पड़ता है|

बुलडोजर और कटर के इन्तजार में आम आदमी-
पिछले सप्ताह चौक के टाइम सेंटर को गिराने के लिए बड़े जोर शोर से कवायद शुरू हुई| डीएम साहब ने नगर मजिस्ट्रेट को टाइम सेंटर का अतिक्रमण हटाने क लिए कहा| टाइम सेंटर सहित 11 लोगो को चौक बाजार में नोटिस थमाए गए| नगर मजिस्ट्रेट से इसी सप्ताह के सोमवार को जब जेएनआई के रिपोर्टर ने पूछा कि क्या अतिक्रमण हटेगा तो उन्होंने बड़े विश्वास से भरोसा दिलाते हुए कहा कि जरूर हटेगा| कैसे बड़ी बिल्डिंग टूटेगी? इस पर जबाब मिला कि नगरपालिका को कहा गया है कि पीडब्लूडी से बुलडोजर और कटर मंगाने के खर्चे का इस्टीमेट लिया जाए| कल शनिवार को एक सप्ताह बीत जायेगा अभी तक तो कोई चिट्ठी गयी नहीं है| तभी आम जनता कहत है कि बड़े आदमियो के लिए “न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी”| न बुलडोजर आएगा और न अतिक्रमण हटेगा|

ऐसी हालात में फैसला एक बार फिर से जनता को करना पड़ेगा| मगर उससे पहले फैसला करने का मौका सरकार के हाथ में है- “भेदभाव करने वाले अफसरों को बदलना है या फिर अपनी बारी का इन्तजार करना है”|

नगरपालिका के कामचोर एप्रोच भी तोड़ रहे है-
पीडब्लूडी से लेकर निकायों में भी भवन के बाहर निकलने के लिए नाली के ऊपर एप्रोच (गेट के बाहर नाली के ऊपर पुलिया आदि बनाना) बनाने को कुछ नियम शर्तो के साथ जायज ठहराया गया है| ऐसा नहीं कि जो अफसर और कर्मचारी अतिक्रमण हटा रहे हो उनके मकानो और निवासों के सामने नाली के ऊपर से निकलने के लिए एप्रोच न बने हो मगर फर्रुखाबाद नगर में नगरपालिका के कर्मचारी नाली सफाई का ऐसा बहाना बनाकर ये एप्रोच तोड़ देते है| एप्रोच का नियम ये है कि ये यातायात में बाधक नहीं होना चाहिए और नाली सफाई के दौरान झाड़ू की पहुंच बनी रहनी चाहिए| मगर फर्रुखाबाद में सफाई कर्मचारी यदि कहीं पर सफाई न करने की शिकायत की जाए तो सबसे पहले जाकर एप्रोच तोड़ देते है भले ही उस एप्रोच से कोई दिक्कत न हो| ऐसा व्यापारी या भवन स्वामी का मजाक उड़ाने की दृष्टि से किया जा रहा है| वैसे एप्रोच तोड़ देने के बाद भी नगर में नाली और नाले कितने साफ़ है इसकी कहानी कहने की जरुरत नहीं| बरसात से पहले नाली और नाले को साफ़ करने के लिए स्पेशल बजट माँगा और भेजा जाता है| साल भर क्या झक मारते है| यहाँ दो दो फ़ीट की एप्रोच भी तोड़ दी जा रही है| क्या यही इन्साफ है|
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