डेस्क: जहां उत्तर प्रदेश में शासनादेश दिनांक 07 जून 2002 द्वारा प्रदेश के प्रत्येक जिले में 50% थानाध्यक्ष सामान्य जाति, 21% अनुसूचित जाति (एससी), 2% अनुसूचित जनजाति (एसटी) और 27% अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) सहित मुस्लिम वर्ग से तैनात किये जाने के निर्देश हैं, किन्तु प्रदेश पुलिस इस अनिवार्य प्रावधान का स्पष्ट उल्लंघन कर रही है और ख़ास कर यादव जातिविशेष की तरफ झुकी दिखती है.
सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर द्वारा डीजीपी कार्यालय से प्राप्त सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 1447 पुलिस थाने हैं. अतः शासनादेश के अनुसार 724 सामान्य जाति, 303 एससी, 30 एसटी और 420 ओबीसी तथा मुस्लिम थानाध्यक्ष तैनात होने चाहिए|
इसके विपरीत फ़रवरी 2014 में सामान्य जाति के 597, एससी के 120 तथा एसटी का केवल 1 अधिकारी तैनात थे. इसके विपरीत 614 थानों पर ओबीसी तथा 102 पर अल्पसंख्यक, अर्थात कुल 734 थानाध्यक्ष तैनात थे. यह संख्या कुल थानों के 50% प्रतिशत से अधिक है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के सम्बन्ध में नियत उपरी सीमा से भी अधिक है|
बलात्कार की घटना के लिए कुचर्चित हुए बदायूं सहित नॉएडा, हापुड़, संभल, फतेहगढ़, मऊ, गोंडा और प्रतापगढ़ में एक भी एससी, एसटी थानाध्यक्ष नहीं थे|
इसमें पिछड़े वर्ग में एक बड़ा प्रतिशत यादव थानाध्यक्षों का है, जैसे मेरठ में 28 में 9, वाराणसी में 25 में 7, झाँसी में 26 में 12, बाँदा में 18 में 5, कासगंज 11 में 3 और बरेली में 30 में 10|
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