फर्रुखाबाद: उस्ताद को उस्ताद ऐसे ही नहीं नाम नहीं मिला है| जिनके सहारे सादर के निर्दलीय विधायक विजय रामगोपाल के पहलु मे पहुँचे उन्हें भी यह बात बाजी हाथ से निकल जाने के बाद ही पता चली| हालाँकि सार्वजनिक रूप से चुनाव प्रचार के दौरान की विजय सिंह को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया मगर फर्रुखाबाद की एक खास अदावत है उसे भी वे निभा नहीं पाये| यहाँ दुःख और मातम के माहौल में दुश्मन भी दुश्मन के घर जाते है| यहाँ तो केवल राजनैतिक मामला था| यही फरक है एटा और फर्रुखाबाद जनपद की सामाजिकता में| वैसे 14 वी लोकसभा की एक बहस के दौरान सुषमा स्वराज का एक डाइलोग याद आता है- “दुश्मनी जम के करो, मगर इतनी गुंजाईश रखो| कि फिर मिले तो शर्मिंदा न हो”| सीखना चाहिए|
अलींगंज विधायक रामेश्वर सिंह यादव और उनके परिवार का कोई सदस्य विधायक विजय सिंह की मां की तेरहवीं में नहीं दिखा। सपा उम्मीदवार के परिवार का कोई सदस्य स्वर्गधाम भी नहीं गया था। रामेश्वर यादव ने ही विजय सिंह की पत्नी दमयंती सिंह को सपा में शामिल कराया था। विजय सिंह ने अपने धर्मशाला में रामेश्वर के चुनाव कार्यालय का उद्घाटन भी कराया था। बाद में क्या परिस्थितियां बदलीं कि यह स्थिति बन गयी।
सपा नेता चन्नू यादव, महानगर अध्यक्ष महताब खां और पूर्व विधायक उर्मिला राजपूत भी नहीं दिखीं। जिला सपाध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह यादव, पूर्व जिलाध्यक्ष नदीम फारुकी, महासचिव सुरेन्द्र सिंह गौर और पूर्व अध्यक्ष विश्वास गुप्ता मौजूद रहे। न आने वाले नेताओं के बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिल सकी।
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