फर्रुखाबाद: जिस समाज में बदलाव की राजनीति अपने आप हाशिए पर खिसक जाती है उसमें युवा और दूसरी पीढ़ियों में कोई अंतर नहीं रहता| हमारे समाज में, किसी भी दूसरे समाज से युवा-वर्ग का अनुपात ज़्यादा है| इस लिहाज़ से वे महत्वपूर्ण हैं| लेकिन असली सवाल ये है कि क्या राजनीतिक दृष्टि से उनके विचार, रुझान और पसंद-नापसंद समाज की अन्य पीढ़ियों से अलग है| युवाओं को एक अलग वर्ग के रूप में देखने की प्रवृति का कारण क्या है| युवाओ के पास काम और रोजगार की चिंता है शायद इसीलिए इस बार के चुनाव में उसके पास कोई मुद्दा जरूर है भले ही वोट के लिए चुनाव लड़ रहे नेताओ के पास ये मुद्दा न हो|
फर्रुखाबाद से सपा के बागी और एक आजाद उम्मीदवार के तौर पर सचिन यादव की पहली राजनैतिक परीक्षा है| हालाँकि वे राजनैतिक कापियां अपने पिता के चुनाव में लिखते रहे है मगर इस बार उनके खुद के इम्तिहान की बारी है| तीन राष्ट्रीय टीवी चैनेलो की राजनैतिक बहस में वे भले ही किसी और की डायस साझा करके खड़े किये गए हो मगर उनके जबाबो से युवाओ में एक आकर्षण पैदा हुआ है| पिता और बाबा की विरासत के साथ मैदान में उतरे सचिन के लिए जाति धर्म और ब्रांडो में उलझे चुनाव में अपने लिए मतदाता खोज लेने का भारी संघर्ष है| शायद शुरुआत में उसे कम तर आँका गया| ऐसा हर पहली बार राजनीति में आने वाले के साथ होता है| अरविन्द केजरीवाल के बारे में भी मीडिया से लेकर कांग्रेस तक को यही गुमान था| जब परिणाम आया तो जमीन सरक गयी| सवाल फिर वही अटक गया है क्या ऐसा हो पायेगा?
सामने सपा, बसपा, भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के साथ साथ भरकम इमेज वाले सलमान खुर्शीद भी है| सोशल मीडिया पर लम्बी बहस चलती है| किसी स्थानीय प्रत्याशी के बारे में उसके समर्थक एक भी गुण सांसदों वाला नहीं बता पाता| ज्यादातर भाजपा समर्थको के कब्जे वाली फेसबुक पर एक ही कॉमेंट मिलता रहा – हर हर मोदी, हर हर मोदी| राजनाथ भी मोदी के नाम पर वोट मांग गए| अपने प्रत्याशी की तारीफ में कहने के लिए उनके पास भी कुछ नहीं था| मुलायम सिंह का भाषण भी इससे इतर नहीं था| उन्हें तीसरे मोर्चे की सरकार और खुद के प्रधानमंत्री बनने के लिए एक सांसद फर्रुखाबाद से चाहिए| बसपा की मायावती भी चुनावी सभा में अपने प्रत्याशी के गुणगान नहीं कर पाई बस वोट इसलिए देना है क्योंकि यहाँ से उनका सांसद जीता तो दलित की बेटी प्रधानमंत्री बन सकती है|
तो फिर कोटेदार, थानेदार, प्रधान, लेखपाल या फिर किसी अन्य सरकारी कामो की रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाने क्या माया, मुलायम और मोदी आएंगे| इसका जबाब किसी के पास नहीं| जनता तो इन्ही से त्रस्त है| वोट किसलिए दो? तुम जीत रहे है इसलिए तुम्हे वोट दो| ये जुमला कम से कम युवा तो नहीं झेल पायेगा| इस उलझे हुए चुनाव में जीतने की कौन गारंटी दे रहा है|
कभी व्यवस्था के खिलाफ कड़ी कलम चलने वाले समाजवादी विचारधारा के नेता पत्रकार सतीश दीक्षित की लेखनी भी इन दिनों सत्ता के संघर्ष के चलते तिजोरी में बंद है| यकीन है कि यदि वे लालबत्ती पर सवार न होते तो चुनाव में उनकी बेहतरीन टिपण्णियां जरूर जेइनआई के माध्यम से जनता तक पहुचती| सतीश आज धूप में उम्र के परिपक्वता के पड़ाव में जिंदाबाद करते नजर आये| किस बात की जिंदाबाद भाई? सिर्फ प्रधानमंत्री बनाने के लिए| मगर चुनना तो एमपी है| सतीश दीक्षित के साथ डॉ जितेंद्र यादव| समाज को शिक्षायालयो का बड़ा योगदान देने वाले भी राजनीति के भ्रमर में धूप झेल रहे थे| फर्रुखाबाद की मुख्य बाजार में जलूस निकाल कर माहौल बनाने की कोशिश| सवालो के जबाब में कई चेहरे सामने आ जाते है| वोट मांगने के अलग होते है और जीत लेने के अलग|