फर्रुखाबाद: पुत्र को राजनीति में स्थापित करने के लिए पूरे तौर पर मैदान में उतर चुके पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह यादव ने कहा है कि उन्हें लालबत्ती का कोई मुगालता नहीं था| जिन लोगो को लगता है कि लालबत्ती से चुनाव जीते जा सकते है वे ग़लतफ़हमी में है| चुनाव जनता जिताती है लाल बत्ती नहीं| उन्हें लाल बत्ती जाने का कोई अफ़सोस नहीं है| उन्होंने कहा कि वे जनता के कहने पर राजनीति करते है| पहले कांग्रेस में था उनकी जनता ने कहा कि मुलायम सिंह यादब के साथ जाओ मैं समाजवादी पार्टी में चला गया| अब जो जनता का आदेश होगा वो मान्य होगा| पार्टी में निष्ठावान लोगो की कमी है| पार्टी छोड़ने से साफ़ इंकार करते हुए नरेंद्र सिंह यादव ने कहा कि उनकी निष्ठां मुलायम सिंह यादव के साथ है| अगर मुखिया को कुछ लोगो के कहने पर लगता है कि मैं गड़बड़ कर रहा हूँ तो ये उनका मानना है|
सचिन यादव को चुनाव लड़ाएंगे-
इस सवाल पर नरेंद्र सिंह यादव कहते है कि कुछ बाते कहने की नहीं होती| वैसे सचिन सिंह को मेरी जरुरत नहीं पड़ रही है| उसके साथ एक बड़ा हुजूम खड़ा हो गया है| सचिन को हर जगह से वोट मिल रहा है| बाकी नेता कहीं कोई ज्यादा है तो कहीं कोई कम मगर उसके साथ ऐसा नहीं है| किसी इलाके में चले जाओ सचिन सिंह के साथ लोग खड़े दिखाई पद रहे है|
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पार्टी मुखिया का सन्देश क्यों ठुकराया-
मैंने पार्टी मुखिया का कोई सन्देश नहीं ठुकराया| पहले सचिन को टिकट दी फिर कुछ लोगो की शिकायत पर टिकट काट दी| आज वही लोग पार्टी के प्रत्याशी को भी चुनाव मन से नहीं लड़ा रहे है| सचिन को टिकट काटना गलत लगा और उसकी बेज्जती हुई तो उसने अपना फैसला कर लिया| अब राजनीति में भाई भाई और पिता पुत्र अलग अलग पार्टी में राजनीति करते है इसमें बुरा क्या है|
चुनाव में अब क्या योजना है?
योजना कोई नई नहीं है| फर्रुखाबाद की जनता के स्वाभिमान की बात है| यहाँ की जनता गुंडई, दबंगई बर्दास्त नहीं करती| इसी गुंडई और दबंगई से फर्रुखाबाद की जनता को बचाना है| पिछला चुनाव भी इसी मुद्दे पर हुआ था| तब नरेश अग्रवाल को यहाँ की जनता ने वापस भेज दिया था| वे जनता के बीच के आदमी है| जनता का काम करते है| पक्षपात नहीं करते इसीलिए जनता में उनका वजूद है| आज फर्रुखाबाद की जनता दहशत में चुनाव देख रही है| आज तक ऐसा चुनाव नहीं हुआ जब जनता दहशत में हो| इसी की मुक्ति के लिए सचिन को मैदान में उतारा है| और जनता कामयाब बनाएगी|
लालबत्ती जाने का गम
नरेन्द्र सिंह यादव कहते है कि उन्हें न लालबत्ती मिलने का कोई बड़ा घमंड था और न ही जाने का| हाँ लालबत्ती वापस देर से क्यों गयी ये जरुर सोचता हूँ| लालबत्ती जनता ने दिलाई थी| ये लालबत्ती जनता की थी| चली गई तो अब सोचना उनकी जनता को है| लालबत्ती से कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता| और किसी को अगर ये मुगालता है तो वे सपा प्रत्याशी को लालबत्ती देकर चुनाव जिताकर देख ले| कोई भी नेता किसी के हराने से न हारता है और न जीतता| जनता फैसला करती है कि उन्हें दबंग चाहिए या फिर उनकी बात सुनने वाला|