फर्रुखाबाद: फर्रुखाबाद नगर में पांच प्रकार के नेता वोट मांगने आते है| पांचो एक नंबर के लफ्फाज और झूठे है अगर वे कहते है कि वे विकास कराते है, विकास ही उनका अजेंडा है, विकास ही उनका मूलमंत्र है| अगर वे कहते है कि वे जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगते हैं तो उन पर विश्वास किया जा सकता है क्योंकि फिर विकास की कोई बात नहीं होगी| लेकिन संयोग देखिये वे सार्वजानिक रूप से यह कह नहीं सकते कि वे धर्म के नाम पर वोट मांगते है| और विकास होता क्या है ये वे न जानते है और न मानते है| जनपद में सांसद से विधान सभा और विधान परिषदों के सदस्यो की निधियों को 40 फ़ीसदी पर खरीदा गया| हालाँकि सलमान खुर्शीद इस मामले में फिस्सडी निकले| बाकी नेता शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अग्रणी रहे है| उन्होंने दिल खोल कर अपनी पांच साल में मिलने वाली निधियों का एक बड़ा भाग स्कूलो को दिया है| मगर अफ़सोस है कि पांचो प्रकार के नेताओ ने उन गरीब बच्चो के लिए बने सरकारी स्कूल को सुधारने के लिए कोई काम नहीं किया जिनके माँ बाप को बेबकूफ बनाकर वे हर बार उनका वोट ठगते रहे| थोडा बुरा लग सकता है मगर सच तो यही है|
न तो स्कूल में मास्टर गया पढ़ाने और न ही किसी नेता ने इस पर सवाल उठाया| उठाते भी क्यों शायद इन नेताओ की इच्छा है कि गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चे न ही पढ़े तो अच्छा वर्ना अंधभक्ति में नारे लगाने वाले कहाँ से मिलेंगे? अभी अभी एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने सरकार के खजाने में उलटे अपने पास से 67074 रुपये जमा करके नौकरी से इस्तीफ़ा दिया है| कह रहा था अब जलालत सही नहीं जातीं| अब लोग टोकने लगे है| यानि जब तक नहीं टोका….आत्मा ने सरकारी धन लूटने की खूब इजाजत दी| स्कूल तो वे पूरी नौकरी कभी पढ़ाने गए नहीं| महीने में एक आध बार हाजिरी भरने जब जाते बच्चो केलिए टाफियां ले जाते थे| मास्टरी से इस्तीफ़ा देने वाली उनकी फ़ोटो अख़बार में छपी थी| रिपोर्टर ने जब बच्चो को अख़बार में छपी वो तस्वीर दिखाई जिसमे मास्टरजी डीएम दफ्तर के बाहर इस्तीफ़ा देने के लिए साथियो सहित धरने पर बैठे थे, तो उनकी तैनाती वाले स्कूल के बच्चे पहचान नहीं पाये कि इनमे से कोई मास्टर कभी उन्हें पढ़ाने आया हो| तपाक से इस्तीफ़ा देने वाले शिक्षक के गोरखधंधे में शेयरहोल्डर हेडमास्टर ने बच्चो को बताया कि वही है जो नीली कार से आते थे| बच्चे बोले- “वही जो टाफी लाते थे”|
गुरूजी का अब ह्रदय परिवर्तन हो गया है| उन्हें अब देश सेवा का शौक चढ़ गया है| पहले जलालत की गुंजाईश वाली नौकरी से छुटकारा पाया| अब पहचान बनाएंगे| लोकसभा से चर्चा में आयेंगे फिर विधानसभा में कायदे से किस्मत आजमाएंगे| ये उनका मास्टर प्लान है जो उन्होंने जेएनआई से शेयर किया है| पूरे नौकरी के काल में बसपा, सपा और नगर के निर्दलीय विधायक के इर्द गिर्द रहकर नेतागिरी सीखी है| दर्जनों बड़े नेताओ के साथ फोटो खिचाई| अब यही आदर्श हो गए है| क्या खूब क्वालिटी तय की आदर्शवादिता की? अब किसी के पिछलग्गू बनकर नहीं रहेंगे| बेसिक शिक्षा में नौकरी करने वाला हर सेवक जनता है कि ये नौकरी अफसर की जगह नेता के फेरे लगाने में अच्छी तरह से चलती है| जिन्हे एबीसीडी नहीं आती वे नेता जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को निर्देश देते है कि फलां मास्टर को फलां जगह तैनात कर दो|
जनसेवको की कैटागिरी जिले सांसद से शुरू होती है और नगर के सभासदो तक गिनी जाती है| इस कड़ी में सांसद के बाद, विधान सभा सदस्य, विधान परिषद् सदस्य, नगरपालिका अध्यक्ष और अंतिम कड़ी सभासद यानि की पार्षद होती है| सब एक नंबर के …..| कोई निधि बेच रहा है तो कोई विकास के धन में कमीशन खा रहा है| कुछ सभासदो ने तो इतनी गिरा दी है कि उनसे अच्छे तो गंगातट के भिखारी है| सरकारी स्कूलो में मिड डे मील के लिए आने वाला राशन तक स्कूल से मांग कर घर ले जाते है| बच्चो की ड्रेस वितरण में कमीशन खाते है| और इससे भी गिरा हुआ ….शौचालय में भी….(मुफ्त शौचालय स्वीकृत कराने में भी दलाली की थी)| हाल ही में इस्तीफ़ा मास्टरी से देकर जनसेवक बनने वाले महाशय भी इस श्रेणी से अलग हो पाएंगे नहीं लगता है| क्योंकि वर्षो बिना बच्चो को पढ़ाये जनता का धन खाते रहे है|
गाव से लौटकर बात नगर की| मुस्लिम बाहुल्य इलाको में दो नेताजी इस समुदाय को अपना वोट बैंक समझते है| एक विधानसभा के लिए और दूसरा सांसदी के लिए| दोनों नेता एक एक वोट की कीमत समझते है| उन्हें उस एक ईंट की कीमत भी समझनी पड़ेगी जिस पर लगभग 100 बच्चो का भविष्य टिका है| इस स्कूल के भवन का एक बड़ा भाग एक खम्भे पर खड़ा है और वो खम्भा एक ईंट पर टिका है| जिस दिन वो ईंट निकल गयी और बच्चे नीचे हुए तो फिर तमाम नेता मातमपुर्सी के लिए इक्ट्ठे होते नजर आयेंगे| मगर उससे पहले किसी को इसे दुरुस्त कराने का मन नहीं करेगा| बच्चा तो गरीब का मरेगा, जो वोटर भी नहीं होगा| बड़ा बंगशपुरा मोहल्ले में प्राथमिक स्कूल| वोट बैंक की खातिर जनप्रतिनिधि कोई बैर नहीं लेंगे क्योंकि मामला समुदाय विशेष के वोट बैंक से जुड़े मास्टर साहब का है| मास्टर साहब ने गुरूवार को स्कूल नहीं खोला| मोहल्ले के लोग बताते है कि जब कभी स्कूल खुलता है 30 से 40 बच्चे पढ़ने आते है और मास्टर जी मिड डे मील के रिकॉर्ड में रिकॉर्ड तोड़ बच्चे दर्शाते है| चुनाव आ गया है| गुरु जी चुनाव प्रचार और सरकारी ड्यूटी में व्यस्त हो जायेंगे और बच्चे झंडा बैनर, बिल्ला इक्कठा करने और नारे लगाने में| बच्चे दोनों का मतलब नहीं जानते| जनप्रतिनिधिओ के नाम लिखने की जरुरत नहीं स्थानीय लोग सब जानते है| और जनपद के बाहर के पाठको के समक्ष इन नेताओ की इज्जत बेज्जती करना नहीं चाहता| अलबत्ता एक बात साफ़ है कि वक़्त धीरे धीरे बदल रहा है| यह बात नेताजी को समझ लेनी चाहिए| आने वाले वक़्त में हरामखोरी करने वाले नेता सत्ता में नहीं पहुच पाएंगे| वोटर पहले पिछले रिकॉर्ड को देखेगा| और अब “उल्लू बनवाइंग” नहीं चल पायेगा| इंटरनेट का जमाना है और ये खबर अलग विधानसभा चुनाव और उससे अगले लोकसभा चुनाव में ऐसे ही जिन्दा रहेगी| विकास, नियम और निति नेता बनाते है और सरकारी कर्मचारी सिर्फ उसका पालन कराता है ये बात अब जनता को समझ में आने लगी है| तभी तो लोग कहते है कि सलमान चाहते तो दो चार फैक्ट्री ……|
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