फर्रुखाबाद: 1 अक्टूबर 1997 ही वो दिन था जब धार्मिक स्थल “नीब करोरी मंदिर” के नाम से जाना जाने वाले गाव नीब करोरी का नाम हत्या की वजह से सुर्खियो में आया था| सुशील कुमार दुबे उन दिनों मंदिर के तत्कालीन महंत की सेवा करते थे और मंदिर की सेवा करते थे| उस दिन नीबकरोरी के निवासी नरेंद्र कुमार दुबे के घर उनके चाचा का म्रत्युभोज का कार्यक्रम चल रहा था| घर पर रिश्तेदारो और मेहमानो का आना जाना लगा हुआ था| मृतक भूपेंद्र अपने एक रिस्तेदार को गली के बाहर तक छोड़ने के लिए जा रहा था कि उसी समय गली के दूसरी ओर घात लगाये बैठे सुशील दुबे, बड़े लला और सूचिव्रत ने भूपेंद्र पर ताबड़तोड़ गोलिया चला दी| भूपेंद्र की मौके पर ही मौत हो गयी| इसी बीच गोली चलने की आवाज सुनकर तेरहवी में जमा हुई भीड़ घटनास्थल की ओर भागी और सुशील, बड़े लला और सूचिव्रत को घेर लिया| सुशील दुबे के हाथ में रायफल थी जो उन्होंने भीड़ की तरफ तान दी और भाग जाने में कामयाब हो गए| लेकिन मौके पर ही फस गए बड़े लला और सूचिव्रत पर गोलियो की बौछार हुई| बताते है कि लाश की हालत ऐसी हो गयी थी कि बोरे में भर कर गए थे|
घटना के बाद मृतक भूपेंद्र के पिता नरेंद्र दुबे ने सुशील दुबे, बड़े लला और सूचिव्रत के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया तो वहीँ दूसरे पक्ष की ओर से कमलेश मिश्रा ने जितेन्द्र दुबे पुत्र नरेंद्र निवासी नीबकरोरी, शिवकुमार उर्फ़ लला निवासी तकीपुर और अनूप कुमार मिश्रा के खिलाफ हत्या का जबाबी मुकदमा पंजीकृत कराया| मुकदमा 16 साल चला| इस बीच दोनों पक्षो के बीच लगातार तनाव का माहौल चलता रहा|
कातिल से महंत तक का सफ़र-
वर्ष 1984 में बाबा सुशील दास के खाते में एक हत्या का मुकदमा पहले ही दर्ज हो चुका था| शिक्षक नेता लालाराम दुबे और सुशील दुबे पर एक हत्या के मामले में मुकदमा चला और शेसन अदालत से छूट गया हालाँकि अपील पर मामला अभी उच्च न्यायालय में चल रहा है| उसके बाद हुए तिहरे हत्याकांड के बाद बाबा सुर्खियो में फिर से आ गए| जेल से जमानत पर आने के बाद बाबा ने मंदिर पर अपना कब्ज़ा जमाया| उस समय के महंत (अब स्वर्गीय) कई मामले में मुकदमो में फसाये गए| और उनकी म्रत्यु के बाद मंदिर पर पूर्ण रूप से सुशील कुमार का कब्ज़ा हो गया| हालाँकि मंदिर की सम्पत्ति आज भी देह छोड़ चुके महंत के नाम ही है| बाबा बनने और मंदिर के प्रचार के बाद बड़े बड़े नेता, कमिश्नर, मीडिया और नामी लोग सुशील दुबे के चरण छूकर आशीर्वाद लेने लगे| चुनाव लड़ने से पहले और जीतने के बाद नेता सुशील दुबे का आशीर्वाद लेने जाते| मगर अदालत के इन्साफ के बाद सुशील का तिलस्म एक बार फिर से टूट गया|