टीईटी मामले की सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 25 मार्च को

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uptetनई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में 72,८२५ सहायक अध्यापकों के चयन और नियुक्ति के मसले की सुनवाई को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जवाब न पेश किए जाने पर टाल दिया। सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार को 25 मार्च
तक इस मसले पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

याद रहे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शिक्षकों के चयन टीईटी की मेरिट के आधार पर किए जाने का आदेश दिया था और बसपा सरकार में ३० नवंबर, 2011 को जारी हुए भर्ती विज्ञापन को सही ठहराया। साथ ही मौजूदा सरकार के ३१ अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द कर
दिया है।

जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि वह इस मसले पर होने वाली अगली सुनवाई (25 मार्च) तक
टीईटी की अनिवार्यता व मेरिट के मसले पर दायर याचिकाओं पर हलफनामा दाखिल करे। पिछली सुनवाई में प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के
आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। मगर पीठ ने कहा था कि इस मसले पर टीईटी की अनिवार्यता को लेकर पहले से एक मसला पीठ के समक्ष लंबित है। ऐसे में अदालत उस मसले के निपटारे तक रोक नहीं लगा सकती है। अब राज्य सरकार को दोनों ही मसलों पर अभ्यर्थियों की ओर से दायर याचिका पर अगली सुनवाई तक जवाब देना है।

अखिलेश सरकार को हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया इस साल ३१ मार्च तक पूरी करने का निर्देश दिया है। राज्य सरकार ने शीर्षस्थ अदालत से अपनी याचिका में कहा है कि अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द करने और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में जारी किए गए नवंबर, २०११ को जारी भर्ती विज्ञापन को सही ठहराए जाने के हाईकोर्ट का आदेश उचित नहीं है। सपा सरकार की ओर से 2012 में जारी किए गए शासनादेश में टीईटी को मात्र अर्हता माना गया था और चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक कर दिया गया था।