सुविधा के अनुसार शासनादेशो को तोड़ते मरोड़ते प्रभारी जिला विद्यालय निरीक्षक

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फर्रुखाबाद: सिस्टम के अनुरूप काम करने की शैली को आज की तारीख में कार्यकुशलता कहा जा सकता है| मगर नियमो के अनुसार काम करने की शैली को निष्ठां एवं कर्त्तव्य कहते है| इसी कर्त्तव्य निष्ठां और सरकार की सेवा की शपथ लेकर सरकारी अफसर जनता की सेवा करने के लिए सेवा में आते है| मगर सेवा के समय नियमो को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ देते है| यानि अपनी निजी सुविधानुसार व्यवस्था को बदल देते है| चापलूसी और चमचागिरी के इस दौर में कोई किसी की कमी को नहीं देखता है बस छोटा बड़े की तारीफ करता है और बड़ा इसी चमचागिरी में खुश रहता है| ताजा मामला वर्त्तमान में जिला विद्यालय निरीक्षक के पद को लेकर है जिस पर एक प्रभारी के तौर पर नियुक्ति हुई है जबकि अब तक कार्यवाहक रहे भगवत पटेल लगातार अपने हर सरकारी चिट्ठी में खुद को जिला विद्यालय निरीक्षक लिखकर हस्ताक्षर करने और कहलाने में गौरव महसूस करते रहे है| नियमानुसार कानूनन यह गलत है|

माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश के आदेश से जारी शिक्षा अनुभाग के पत्र संख्या ३३३/१५-१३-२०१४-४(७)/२०१२टीसी दिनांक 2 मार्च 2014 लखनऊ के अनुसार उत्तर प्रदेश शैक्षिक (सामान्य शिक्षा संवर्ग) सेवा समूह क एवं ख में अधिकारियो को तैनाती दी गयी है| जिसमे क्रम संख्या 6 पर भगवत पटेल जो बाध्य परीक्षारत थे को प्रभारी जिला विद्यालय निरीक्षक फर्रुखाबाद के पद पर तैनात करने का आदेश हुआ था| भगवत पटेल जनपद फर्रुखाबाद में इसी पद को कार्यवाहक के तौर पर जुलाई 2013 से सम्भाले हुए थे| उस समय के जिला विद्यालय निरीक्षक नन्दलाल यादव को मुख्यमंत्री के लैपटॉप वितरण कार्यक्रम में कुछ अव्यवस्था को लेकर निलम्बित कर दिया गया था| जिला विद्यालय निरीक्षक का पद उन दिनों खाली था| जिलाधिकारी ने कार्य की आवस्यकता को देखते हुए शिक्षा निदेशक से भगवत पटेल को प्रभार देने के लिए लिखा था जिसके अनुपालन में उन्हें ये पद मिल गया था| इसके बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद से भी भगवत पटेल का तबादला हो गया और उनकी जगह नरेंद्र कुमार आ गए| मगर भगवत पटेल जिला विद्यालय निरीक्षक पद के प्रभार को देखते रहे| तब से लेकर 2 मार्च जब उनकी नियुक्ति प्रभारी के तौर पर हो गयी भगवत पटेल अपने सरकारी पत्राचार में प्रभारी लिखने की जगह जिला विद्यालय निरीक्षक लिख रहे है| जबकि उन्हें दिया गया वर्त्तमान पद जिला विद्यालय निरीक्षक पद से एक ग्रेड नीचे का है| इस तरह शासनादेशो को अपनी सुविधानुसार बनाने का प्रयास किया गया|

हालाँकि भगवत पटेल के पास वित्तीय अधिकार भी है तदापि प्रशासनिक पदो पर तैनात रहे अफसर और बाबू बताते है कि कोई भी अफसर या बाबू लिखा पड़ी जरुरत के अनुसार में कार्य तो उच्च श्रेणी में कर सकता है मगर अपना ओहदा बिना प्रोमोशन के बढ़ा कर नहीं लिख सकता| अब भगवत पटेल को जिला विद्यालय निरीक्षक लिखने या लिखवाने का शौक क्यों है ये वो वे ही सही से जान सकते है मगर जनता में ये भ्रम फैलाने जैसा है| बात पदनाम कम या ज्यादा लिखने से जनता को कुछ नहीं बिगड़ेगा और न ही बनेगा मगर सवाल ये है कि जो अफसर दूसरो को नियम के तहत काम करने के लिए प्रेरित करेगा क्या खुद वो नियमो का पालन कर रहा है?

इन चिट्ठियों को बाबू टाइप करता है और अफसर उस पर हस्ताक्षर करता है| बाबू साहब का ओहदा बढ़ाकर लिख देता है ये एक किस्म की चापलूसी है| मगर जो चिट्ठिया बड़े साहब या जिलाधिकारी के समक्ष रोज पेश होती हो उनमे अधिकारी अपना ओहदा बढ़ाकर लिखकर भेजे तो इसे कुछ भी करने की निर्भीकता नहीं कहेगे तो क्या कहेंगे| कल को जिलाधिकारी दो दिन के लिए बाहर जायेंगे और प्रभारी जिलाधिकारी होगा वो खुद को जिलाधिकारी लिखने लगेगा| तब तो बहुत मुश्किल होगा| बड़े अफसर को तो कम से कम इन चीजो को देखना चाहिए| क्या व्यवस्था यही है| क्या इसी व्यवस्था में हम जीने को कार्यकुशलता कहेंगे| जिम्मेदारी किसकी है? इसे रोकेगा कौन? अगर फ़ौज में ऐसा हुआ होता तो अब तक गलती करने वाले या उदंडता करने वाले अफसर के कोर्ट मार्शल तक का नंबर आ जाता| शायद इसीलिए वहाँ सब कुछ व्यवस्था से चलता है|

नीचे कुछ उनके पत्राचार में अवलोकन किया जा सकता है-

DIOS FARRUKHABAD
BHAGWAT PATEL1