बाल दिवस: बच्‍चों के लिए काफिला तक रुकवा देते थे ‘चाचा नेहरू’

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देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को एक बार बरेली के पास स्थित जेल की तरफ से दौरे का निमंत्रण आया। असल में चाचा नेहरूर को नैनीताल जाना था और रास्‍ते में ही वो जेल पड़ता था। चाचा नेहरू ने बच्‍चों का निमंत्रण स्‍वीकार किया और आने की हामी भर दी।

सप्‍ताह भर तक जेल में खूब जमकर तैयारियां चलीं, लेकिन ऐन मौके पर प्रधानमंत्री कार्यालय से सूचना आयी कि चाचा नेहरू व्‍यस्‍तता के चलते जेल नहीं आ सकेंगे। बच्‍चों को काफी निराशा हुई, लेकिन वो चाचा की कमजोरी जानते थे।

जैसे ही प्रधानमंत्री का काफिला जेल के पास से गुजर रहा था, बच्‍चों ने जेल के गेट के पास खड़े होकर राष्‍ट्रगान शुरू कर दिया। खुली गाड़ी में चल रहे चाचा नेहरू राष्‍ट्रगान सुनते ही कार से उतर गए और वहीं खड़े हो गए। राष्‍ट्रगान खत्‍म होते ही उनकी नज़र विभिन्‍न वेशभूषाओं में सजे बच्‍चों पर पड़ी। उनकी आंखे नम हो गईं और वो आगे बढ़े और जेल में सजा काट रहे उन बच्‍चें को गले लगा लिया। जरा सोचिए ऐसे थे हमारे चाचा नेहरू जो बच्‍चों के लिए अपना काफिला तक रुकवा देते थे। 14 नवंबर को उनकी जयंती है और देश भर के बच्‍चे उन्‍हें याद कर रहे हैं।

चाचा नेहरू की जयंती देश भर में बाल दिवस के रूप में मनाई जाती है। नेहरू को बच्चों से बेहद लगाव था। बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कहकर बुलाते थे। इसलिए उनके जन्म दिवस 14 नवंबर को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

आज यह दिन जहां एक तरफ उस पीढ़ी को समर्पित है जिसे कल इस देश की बागडोर संभालनी है, वहीं दूसरी ओर यह उस नेता को याद करने का भी दिन है जिन्हें बच्चों से गहरा लगाव था।

नेहरू का मानना था कि कोई भी देश तभी विकास के पथ पर आगे बढ़ सकता है, जब उस देश के बच्चों का सही तरीके से विकास हो, क्योंकि आज का बचपन जैसा होगा, कल की जवानी वैसी ही होगी। जब तक नींव मजबूत नहीं होगी, तब तक उस पर बनने वाला मकान मजबूत नहीं हो सकता।

बचपन एक ऐसी अवस्था होती है, जहां जाति-धर्म-क्षेत्र कोई मायने नहीं रखते। बच्चे ही राष्ट्र की आत्मा हैं और इन्हीं पर अतीत को सहेज कर रखने की जिम्मेदारी भी है। बच्चों में ही राष्ट्र का वर्तमान रुख करवट लेता है तो इन्हीं में भविष्य के अदृश्य बीज बोकर राष्ट्र को पल्लवित-पुष्पित किया जा सकता है।

दुर्भाग्यवश अपने देश में इन्हीं बच्चों के शोषण की घटनाएं नित्य-प्रतिदिन की बात हो गई हैं। यहां सवाल सिर्फ बाहरी व्यक्ति द्वारा बच्चों के शोषण का नहीं है, बल्कि घरेलू रिश्तेदारों द्वारा भी बच्चों का शोषण किया जाता है।

बालश्रम की बात करें तो आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में फिलहाल लगभग पांच करोड़ बाल श्रमिक हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी भारत में सर्वाधिक बाल श्रमिक होने पर चिंता व्यक्त की है। ऐसे बच्चे कहीं बाल-वेश्यावृत्ति में झोंके गए हैं या फिर खतरनाक उद्योगों या सड़क के किनारे किसी ढाबे में जूठे बर्तन धो रहे होते हैं या धार्मिक स्थलों व चौराहों पर भीख मांगते नजर आते हैं।

नियमों-कानूनों, संधियों और आयोगों के बावजूद यदि बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा है तो इसके लिए समाज भी दोषी है। कोई भी कानून स्थित सुधारने का दावा नहीं कर सकता, वह मात्र एक राह दिखाता है। जरूरत है कि बच्चों को पारिवारिक, सामाजिक और नैतिक समर्थन दिया जाए, ताकि वे राष्ट्र की नींव मजबूत बनाने में अपना योगदान कर सकें। नेहरू 1963 में हमसे सदा के लिए बिछुड़ गए थे।