फर्रुखाबाद के इतिहास में रंगमंच का भी एक स्वर्णिम अध्याय है। सन १९६२ के भारत चीन युद्ध के बाद महान अभिनेता पृथ्वीराज कपूर अपना ‘पृथ्वी थियेटर’ लेकर फर्रुखाबाद आये और ‘किसान’ ,’आहुति’,’दीवार’ ,’पैसा’और ‘पठान ‘ नाटक खेले। तत्पश्ात राजकीय इण्टर कालेज के शिक्षक श्री बी०बी०सिंह के आग्रह पर दादा चंद्रशेखर शुक्ल , डr. के० सी० मजूमदार, डी० के० पाल आदि नें दीनानाथ सक्सेना के निर्देशन में ‘नवयुवक कला मंदिर’की स्थापना की जिसमे पी ०सी० बाजपाई ,बी०बी०सिंह, ओम प्रकाश मिश्रा ‘कंचन’ ,पुरुषोत्तम शर्मा,किशन लाल गुप्ता,गेंदन लाल शुक्ल,कमर ,चन्द्र किशोर वर्मा राम प्रकाश पारीख आदि कलाकार थे और सर्वप्रथम नाटक ‘कलाकार’ सरदार कुदरत सिंह के बाड़ा (लाल गेट) में खेला गया। फिर रमेश मेहता के नाटक ‘ज़माना’,’फैसला’ और ‘अपराधी कौन’ का मंचन हुआ।
प्रसिद्द लेखक डा० राम कुमार वर्मा के नाटक ‘वीर बालक बलकरन’ और ‘औरंगजेब की आखिरी रात’ के मंचन के समय राज्यपाल श्री अकबर अली भी उपस्थित थे। नाटक ‘आहुति’ मेरठ कोल्ड स्टोरेज के हाल में हुआ था। फतेहगढ़ में ‘बंगाली थियेटर’ नामक रंगमंच था जो दुर्गा पूजा पर काली बड़ी में नाटक का आयोजन करता था। इसमें डी०के० पाल ,विकास पाल ,अशोक पाल और मजूमदार आदि थे। निमिष कुमार जैन नें ‘पारसी थियेटर’की स्थापना की थी। ‘पृथ्वी थियेटर’ ने दादा चन्द्र शेखर शुक्ल को अपने नाटक खेलने की अनुमति दी थी और ‘पृथ्वी राज की ऑंखें ‘ नाटक खेल गया। किसी जमाने में लोग नाटक देखने के लिए टिकेट खरीदा करते थे लेकिन आज किसी के पास वक़्त ही नहीं है। रंग मंच के स्वर्णिम दिन बिदा हो चुके है और भारतीय पाठशाला में बना मानस मंच तथा सरस्वती भवन का प्रांगण रामलीला के रूप में परंपरा का निर्वाहन कर रहा है।
((फ़ोटो परिचय-दीनानाथ सक्सेना (निर्देशक),ओम प्रकाश मिश्रा ‘कंचन’,ज्योतिस्वरूप अग्निहोत्री ,दादा चन्द्र शेखर शुक्ल तथा डा० राम कुमार वर्मा ( लेखक) ))