फर्रुखाबाद: लोकपाल बिल पास करने के लिए 8 दिन से चल रहे अन्ना समर्थको के अनशन भी लोकपाल बिल पास होते ही ख़त्म हो गए| उधर रालेगाव में अन्ना अनशन पर थे तो देश भर में उनके समर्थन में अन्ना समर्थक भी जगह जगह अनशन कर रहे थे| जनपद में पत्रकार योगेन्द्र कामरेड भी जनतंत्र मोर्चा के बैनर तले 8 दिन से अनशन पर बैठे थे| योगेन्द्र ने शर्बते आजम पीकर अनशन तोड़ दिया| इस दौरान योगेन्द्र का वजन 6 किलो से ज्यादा कम हो चुका है| अतिरिक्त मेजिस्ट्रेट ने शर्बते आज़म की बोतल से अनार का जूस निकल कर योगेन्द्र को पिलाया|
भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल बिल आज लोकसभा में भी पास हो गया है। सड़क से संसद तक चली लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार लोकपाल विधेयक पास हो गया। बिल पास होने के बाद अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया। इससे पहले मंगलवार को राज्यसभा से लोकपाल विधेयक पास होने पर इस आंदोलन की अगुवाई करते रहे अन्ना हजारे ने सांसदों और सरकार का शुक्रिया अदा किया। तो वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे एक ऐतिहासिक कदम करार दिया। बिल पास होने की खबर से रालेगण सिद्धी में जश्न मनने लगा ये खबर सुनते ही अन्ना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
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हालांकि सरकार के लिए विधेयक पास करवाने की ये कवायद आसान नहीं रही क्योंकि समाजवादी पार्टी विधेयक का पुरजोर विरोध कर रही थी। मंगलवार को संसद शुरू होने से पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्री कमलनाथ और नारायणसामी को अपने घर तलब कर सरकार की रणनीति की जानकारी ली। इसके बाद मुलायम सिंह और रामगोपाल यादव की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में समाजवादी पार्टी को विरोध जताने के लिए हंगामा करने के जगह सदन से वॉक आउट करने पर मना लिया गया और लोकपाल विधेयक शांति से पास होने का रास्ता साफ हो गया।
हालांकि लेफ्ट समेत कुछ पार्टियों ने विधेयक के कुछ संशोधनों पर मत विभाजन भी करवाया। लेकिन बीजेपी की रज़ामंदी के चलते वोटिंग भी विधेयक के पक्ष में ही रही। जनलोकपाल पर अन्ना आंदोलन से दबाव में आई सरकार ने दिसंबर 2011 में सदन के मत के तौर पर जिस प्रस्ताव को पास किया था, वो इस सरकारी लोकपाल से गायब है। सदन का मत था निचली नौकरशाही को लोकपाल में शामिल करने का, लोकपाल के तहत राज्यों में लोकायुक्त का गठन करने का और सिटीजन चार्टर यानी नागरिक संहिता को लोकपाल का हिस्सा बनाने को लेकर था।
लेकिन मौजूदा विधेयक में ना तो सिटीजन चार्टर शामिल है और लोकायुक्त को लोकपाल से अलग कर राज्यों को उसके गठन के लिए एक साल वक्त दे दिया गया है। बहरहाल पिछले 44 सालों से सरकारी फाइलों की धूल फांक रहे लोकपाल कानून का रास्ता साफ हो गया है।