दीपक शुक्ला- FARUKHABAD : 1962 का भारत व चीन युद्ध को याद करते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। गोलियों की तड़तड़ाहट और शरहद पर हिन्दुस्तानी जवानों द्वारा भारत मां की जय के नारे याद आते ही देश भक्ति की भावना अपने आप रंगों में गर्मी पैदा कर देती है। 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम हुआ था। जनपद में किसी भी सामाजिक व राजनैतिक संगठन ने सरहद पर शहीद हुए भारतीय सैनिकों को बिलकुल भुला सा दिया है। उनकी कुर्बानी को धूमिल कर दिया।
पहले बता दें कि आखिर उस दौरान हुआ क्या था- चीन ने मैक मोहन रेखा जोकि अरुणाचल प्रदेश में है को पार कर कई किलोमीटर तक भारत में आ गये। चीनियों की इस हरकत का जबाब भारतीय सेना ने बड़े ही साहस और देशभक्ति से दिया और साबित भी कर दिया कि भारतीय सेना के जवान के लहू में देश भक्ति की भावना कूट कूट कर भरी है। एक माह तक चलने वाले इस युद्ध में भारत के 3105 बीर सैनिक बीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन चीन को भारत के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया गया।
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इन्हीं शहीदों में मेजर शैतान सिंह ने अद्वितीय पराक्रम का प्रदर्शन किया और अपनी जान की बिलकुल भी फिक्र न करते हुए अपनी टुकड़ी का हौसला आसमान पर पहुंचा दिया था। जिससे उनकी टुकड़ी ने सैकड़ों की संख्या में घुसपैठी चीनियों को मौत के घाट उतार दिया।
मेजर शैतान सिंह ने अपने पास सैनिकों की संख्या कम होते हुए भी दुश्मन से जबर्दस्त लोहा लिया तथा अंत में शहीद हो गये। मरणोपरांत मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
इसी दौरान नूरानांग क्षेत्र में तीन दिनों तक चीन का आक्रमण रोके रखकर बटालियन गडवाल राइफल के 161 जवानों के साथ चीनी सेना को धूल चटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जसवंत सिंह रावत को इस पराक्रम के चलते मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। युद्ध स्थल पर इनके नाम से उसे जसवंतगड़ के रूप में जाना जाता है।
वहीं शहीदों में तीसरा नाम सूबेदार जोगेन्द्र सिंह का है। जिन्होंने तावांग क्षेत्र में एक प्लाटून का नेतृत्व करते हुए वाहे गुरू जी का खालसा, वाहे गुरू जी की फतह का नारा देते हुए दुश्मनों को धूल चटा दी थी। लेकिन युद्ध में भारत ने इस बीच सैनिक सूबेदार जोगेन्द्र सिंह को खो दिया। मरणोपरांत उन्हें भी परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। जिन पर भारत देश का प्रत्येक नागरिक गर्व करता है।
युद्ध के ठीक एक वर्ष बाद कभी प्रदीप द्वारा रचित संगीतकार श्री रामचन्द्रम द्वारा स्वरबद्ध लतामंगेशकर ने जो गीत शरहद पर शहीद हुए सैनिकों को समर्पित किया वह आज भी लोगों की जुबां पर आते ही देश भक्ति की भावना कौंधा देता है। उन्होंने ये मेरे वतन के लोगों, तुम खूब लगा लो नारा, यह शुभ दिन है हम सबका, लहराओ तिरंगा प्यारा। जो आज भी अविस्मरणीय है।
जनपद 1962 के युद्ध में बीरगति को प्राप्त हुए वीर सैनिकों की शहादत को भूल सा गया है, तभी तो जनपद के सामाजिक, राजनीतिक संगठनों ने उन्हें याद तक नहीं किया और यदि यही दौर चला तो आने वाले समय में आने वाली पीढ़ी सैनिकों की शहादत की याद को भूल जाये ऐसी कोई बड़ी बात नहीं।