FARRUKHABAD : हरे भरे पेड़ पौधों और बारिश की रिमझिम के बीच भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन त्यौहार तो वैसे हर वर्ग के लोग अपने अपने स्तर से मनाते हैं। खर्चा भी स्तर के हिसाब से ही होता है। शहर में चमक दमक तो ग्रामीण क्षेत्रों में संस्कृति छटा दिखायी पड़ती है। लेकिन इस प्रेम के आगे बहनें अपने सारे दुख दर्द भूलकर भाई की कलाई में रेशम का धागा बांधकर रक्षा का वचन लेती हैं। लेकिन जब चारो तरफ पानी का एक बड़ा क्षेत्र हो और प्राण भी संकट में पड़ने का डर हो, ऐसे में बहन जब भाई की कलाई पर राखी और हथेली पर मेहंदी सजाये तो दृश्य बाकई में देखने लायक हो। जेएनआई के कैमरे में कैद हुई ऐसी ही एक बोलती तस्वीर जिसमें बहन सारी परेशानियां भुलाकर अपने भाई के लिए रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने में जुटी है।
गंगापार के बाढ़ग्रस्त इलाकों में इस समय जो हालात हैं वह किसी से छिपे नहीं हैं। दूर दूर तक पानी ही पानी। कुछ गांव तो ऐसे हैं जहां शासन से सहायता के रूप में सिर्फ आश्वासन ही पहुंच रहा है। ऐसे में बाढ़ पीडि़तों की समस्या बारीकी से समझने के लिए जेएनआई टीम जब गंगापार बाढ़ग्रस्त इलाके का दौरा कर रही थी तभी अचानक नजर एक पोलीथिन की झोपड़ी के सामने पड़ी चारपाई पर रुकी। चारपाई पर कुछ गंदे संदे कपड़े पडे थे और दो मासूम भाई बहन अधनंगे से बैठकर रक्षाबंधन की तैयारी में मसगूल थे। बड़ी बहन अपने छोटे भाई की हथेली पर अपने प्यार की मेहंदी सजा रही थी और भाई भी उसे उत्सुकता से देख रहा था। उन्हें न तो बाढ़ की चिंता थी और न ही आने वाले संकट की।
[bannergarden id=”8″][bannergarden id=”11″]
खाना खाया या नहीं खाया इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था और न ही उन्हें पूर्ण रूप से रक्षाबंधन के विषय में जानकारी थी। अपने कोमल हाथों से एक दूसरे पर स्नेह की बारिश कर रहे दोनो मासूमों को देखकर ऐसा लगा कि मानो साक्षात हिन्दू संस्कृति के रक्षाबंधन त्यौहार के दर्शन हो गये हों। कोई बनावटी परिदृश्य नहीं, पूरा वातावरण प्राकृतिक ही था। शहर की चकाचैंध से दूर एक झोपड़ी में सड़क के किनारे बैठी पिंकी और सूरज आपस में बैठ कर रक्षाबंधन की चर्चा कर रहे थे। साथ ही साथ वह भाई की कलाई में रक्षाबंधन के स्वागत के लिए मेहंदी रचाती रही और टीम आगे बढ़ गयी।