FARRUKHABAD : डग्गामार वाहनों से वसूली, सटोरियों से वसूली, जुआ के अड्डों पर वसूली, शराब व वियर के ठेकों पर वसूली, बालू खनन वसूली, टेंपो टैक्सी से वसूली कर कानून विरोधी काम करने को खुली छूट दी साफ़ नज़र आ रही है। अब सवाल यह है कि यदि पुलिस और विभाग के अधिकारी इस वसूली में शामिल नहीं हैं तो जनपद में मात्र डग्गामार वाहनों से प्रति वर्ष की जा रही दो करोड़ 88 लाख वसूली का रुपया कहां जा रहा है?
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आप ने कभी इतनी बड़ी वसूली का साम्राज्य होने की कल्पना नहीं की होगी। वर्तमान में सटोरियों से महीना वसूली के बाद सट्टा खुलेआम लगाने की छूट दे दी गयी लगती है। जिसका प्रमाण यह है कि शहर में एक समय लगने वाला सट्टा अब दो टाइम लगने लगा है। वहीं शराब व वियर के ठेकों ने बार का रूप धारण कर लिया है। ठेको पर खुलेआम शराब पीने-पिलाने की छूट साफ़ नज़र आती है। यही हाल बालू खनन व मिट्टी खनन का है। पुलिस को रुपये देकर चाहे शहर के चैक बाजार में खड़े होकर बालू बेचो या भरे बाजार ट्राली ले जाओ, फिर प्रशासन को कोई दिक्कत नहीं रहती।
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सबसे बुरा हाल डग्गामार वाहनों का है, जिनसे पुलिस वसूली के बाद खचाखच भरने की छूट दे रही है। ओवरलोडिंग सवारियां भरने से आये दिन दुर्घटनायें हो रही हैं और आम जनता को जान से हाथ धोने पड़ रहे हैं। डग्गामारी के स्थानीय वसूली कर्मचारियों से जेएनआई द्वारा संकलित किये गये आंकड़ों के अनुसार जनपद में लगभग 800 वाहनों द्वारा राजेपुर, कायमगंज, जहानगंज, गुरसहायगंज, हरिपालपुर, शमसाबाद, रोशनाबाद के लिए डग्गामारी की जाती है। लाल गेट पर बैठनेवाले एक वसूली कारिंदे के अनुसार प्रति कोतवाली 500 रुपये, सीओ के 500 रुपये, प्रति चैकी 300 रुपये, ट्रैफिक पुलिस 300 रुपये के हिसाब से वसूले जाते है। मोटे तौर पर प्रति डग्गामार वाहन प्रति माह लगभग 3000 रुपये की वसूली की जाती है। 800 वाहनों से प्रति माह प्रति वाहन 3000 रुपये वसूलने पर प्रतिमाह की कुल वसूली 24 लाख रुपये हो जाती है। यदि पूरे वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो पुलिस द्वारा कुल 2 करोड़ 88 लाख की वसूली की जाती है। यह अलग बात है कि इस रक़म का एक बड भाग अड्डा मैनेजर बिचैलिये के रूप में खा जाते हैं। इसके बदले में वोह पुलिस को एक मुश्त रक़म देने के अलावा कभी कभार बेगारी के लिए वहां और जरूरत पड़ने पर बंद करने के लिए ड्राईवर भी उपलब्ध कराते हैं|
सवाल यह है कि यदि अधिकारी इस काली कमाई में शामिल नहीं हैं तो इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती, और इतनी ज़बरदस्त वसूली पर लगाम क्यों नहीं लगती|