FARRUKHABAD : लोहिया अस्पताल की स्थिति वैसे तो बद से बदतर हमेशा ही रही है। दवाइयां हों या सफाई, डाक्टर हो या अन्य सुविधायें, किसी न किसी चीज को लेकर मरीज परेशान रहते ही हैं। बार्डों में घुसते ही उल्टी आना एक आम बात है, जो सफाई कर्मचारियों की हीलाहवाली और कामचोरी का जीता जागता सबूत है। डाक्टरों के न होने से मरीज बाहर के लिए रिफर कर दिये जाते हैं और कोई सुविधा भी पूरी तरह से लोहिया अस्पताल में आम आदमी को नहीं मिल पाती है। सम्बंधित अधिकारी कोई उचित कार्यवाही करने की जगह अपने आपको कार्यवाही करने में अक्षम बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं। अधिकारियों की इस अनदेखी और रिश्वतखोरी के चलते पूरी पूरी रात गंभीर से गंभीर मरीज गर्मी में परेशान रहते हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। फर्रुखाबाद विकास मंच ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया।
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अस्पताल के आपातकालीन बार्ड में घुसते ही बहुत बड़ा बोर्ड स्वास्थ्य विभाग के मुहं पर तमाचा मार रहा है। बोर्ड पर बड़ा बड़ा लिखा है, आपातकालीन सेवा 24 घंटे उपलब्ध। लेकिन जब दूर दराज का मरीज काफी उम्मीद लेकर लोहिया अस्पताल में पहुंचता है तो उसे हकीकत से रूबरू होने में ज्यादा समय नहीं लगता। गिने चुने चिकित्सक और उस पर भी लापरवाही समझदार तीमारदार मरीज को मौत के मुहं में न छोड़ने में ही भलाई समझते हैं और वह वहां से मरीज को दूसरी जगह ले जाते हैं। जो स्वयं फैसला लेने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें अस्पताल में मौजूद प्राइवेट चिकित्सकों के दलाल या स्वयं अस्पताल के कर्मचारी कमीशन को लेकर यह फैसला लेने पर मजबूर कर देते हैं। अब सिर्फ कुछ ही मरीज ऐसे रह जाते हैं, जिनके पास न ही पैसा है और न कोई जुगाड़, उन्हें मजबूरन लोहिया अस्पताल में भर्ती होना ही पड़ता है।
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लोहिया अस्पताल में आपातकाल के लिए मरीजों को भर्ती करने में दो कमरों का इस्तेमाल होता है, जिनमें मरीजों को सड़ांध मार रही आवोहवा का सामना करना पड़ रहा है। एक बार्ड कमरा नम्बर 9, जिसे वीआईपी लोगों के लिए हमेशा बंद रखा जाता है, जिसमें सिर्फ मंत्री या उस लेबिल के लोग ही भर्ती होते हैं, जिनकी पहुंच है। अब बात करें, बिजली व्यवस्था की, एक तो सड़ांध मार रहे कमरे, ऊपर से बिजली भी नहीं आती। लोहिया अस्पताल के मुख्य चिकित्साधीक्षक ए के मिश्रा ने जनरेटर न चलाने की बात पर कह दिया कि बजट नहीं है, तो इसमें मरीजों का क्या दोष, व्यवस्था करना स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है। खैर छोडि़ये बिजली चले जाने के बाद मरीजों को ठंडा वातावरण व प्रकाश देने के लिए इन्वर्टर लगाया गया है। उसकी भी बैटरियां बीते कुछ महीनों से खराब हो गयीं हैं। रात में बिजली जाते ही मरीज गर्मी में तिलमिला उठते हैं, जिनके साथ तीमारदार हैं, वह हाथ वाले पंखे से थोड़ा बहुत काम चलाते हैं और जिनके पास तीमारदार नहीं है या लावारिश मरीज भर्ती होते हैं, उनकी न कोई सुनने वाला है और न कोई देखने वाला है।
गर्मी में पूरी रात जब तक बिजली नहीं आती, मरीज तिलमिलाते रहते हैं और स्वास्थ्य विभाग व लोहिया अस्पताल के आला अधिकारी अपने दफ्तरों और घरों में मजे से एसी चलाकर मजे मारते हैं। प्रदेश सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में गुणवत्ता लाने की कितनी भी बात करती हो, कितनी भी समाजवादी एम्बुलेंसें सड़क पर हूटर बजाती घूम रहीं हों, लेकिन अगर हकीकत से रूबरू हुआ जाये तो वही कहावत आती है, नौ दिन चढ़े अढ़ाई कोस, मरीजों की हालत जो मायावती की सरकार में थी वही अखिलेश की सरकार में है। सुधार कितना हुआ यह लोहिया अस्पताल में या तो भर्ती हुआ मरीज बता सकता है या उसका तीमारदार, बाकी सब मुहं देखी बात करते हैं।
इस सम्बंध में जब लोहिया अस्पताल के सीएमएस से बात की गयी तो उनका मोबाइल स्विचआफ बोल रहा था।
फर्रुखाबाद विकास मंच ने शनिवार को लोहिया अस्पताल में फल वितरण का कार्यक्रम किया। मरीजों को केले दिये गये। इस दौरान विकासमंच के नगर अध्यक्ष राहुल जैन, जिला उपाध्यक्ष व नगर प्रभारी शिवेन्द्र यादव उर्फ शिब्बू ने संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ लोहिया अस्पताल पहुंचकर कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इस दौरान विकास मंच जब मरीजों की समस्याओं से रूबरू हुआ तो गुस्साये पदाधिकारियों ने एक ज्ञापन सीएमएस ए के मिश्रा के आवास पर जाकर दिया। जिसमें एक सप्ताह के अंदर बिजली व्यवस्था दुरुस्त करने की बात कही गयी। संगठन ने उन्हें अवगत करया कि अगर बिजली व्यवस्था दुरुस्त न हुई तो कार्यकर्ता आंदोलन करेंगे।