ब्यूरोक्रेसी ईमानदार हो जाए तो नेताओ को छटी का दूध याद दिला सकती है

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Editorब्यूरोक्रेसी अगर ईमानदारी पर उतर आये तो अच्छे अच्छे नेताओ को पानी पिला सकती है इतनी संवैधानिक शक्तिया उसे मिली हुई है| मगर अफ़सोस इस बात का है कि मलाईदार और उपरी कमाई की अच्छी सीट के चक्कर में अपना ईमान और धर्म सब खो बैठी है| नतीजा ये हुआ कि दागो से दागदार नेता अफसरों को निजी नौकर से ज्यादा कुछ नहीं समझ रहे|
कोई पैर छू रहा है तो कोई नेताजी को खुश करने के लिए एक तरफ़ा कार्यवाही कर रहा है| कोई नियमो को कानून की अनदेखी कर सुख देने वाले नेता का हर सही गलत काम कर रहा है| लालच केवल उपरी कमाई की सीट का है| वर्ना वेतन तो जितना फील्ड में मिलता है उतना डेस्क पर, फिर मनचाही तैनाती का लालच क्यों? नेताजी भी ये कमजोरी जान चुके है| जब कोई नेता पहली बार चुनाव जीत कर आता है तो सरकारी मशीनरी ही उसे बताती है कि कहाँ से कितना और कैसे आता है| इसमें उनका हिस्सा कितना होता है| नेता जी तो चुनाव बर्तन हडियाँ गिरवी रख करोडो खर्च चुनाव लड़ खाली हाथ आते है लिहाजा उन्हें उस वक़्त वो सरकारी मशीनरी भगवन नजर आने लगती है और जनता जिससे वादे करके आते है उसे लूटने का लाइसेंस सरकारी मशीनरी को जारी कर देते है| फिर लाख जनता उस सरकारी मशीनरी की शिकायत करे, नेताजी जांच कराएँगे जैसे जुमले सीख चुके होते है| सरकारी धन लूटने को सरकारी मशीनरी का सहयोग चाहिए ही| और बिना लूट खसोट के चुनाव के लिए करोडो लाओगे कहाँ से?
एक मंत्र्जी जी कह रहे है कि दुर्गा को अंजाम तक पहुचाया जायेगा| तो दूसरा कह रहा है कि अफसर गलती करता है तो सजा मिलेगी ही| तीसरा कह रहा है कि दुर्गा के घरवाले कितने ईमानदार है, पत्ते खोल दूंगा| ये आधी अधूरी बात क्यों? घरवाले ईमानदार नहीं है इसकी पूरी बात
मीडिया में कहनी चाहिए थी| वैसे पब्लिक सब जानती है| केवल आरोप लगाना नेताओ की आदत बन चुकी है| सब किसी मामले में फसते दिखाई पड़ते है तो इसे विपक्षियो की साजिस करार देते है| आजकल भरष्टाचार में लिप्त रहे कई बसपा के पूर्व मंत्री यही कहकर मीडिया से अपनी जान छुडा रहे है| और भ्रष्टाचार में लिप्त रहे कई अफसर वर्तमान सत्ता वाली सरकार को वोटो और नोटों लालच देकर उनकी पार्टी में जगह पा रहे है| ये भी आरोप है विपक्षियो के| कैसे बचोगे इनसे| एक ही तरीका है हम भी नंगे, तुम भी नंगे| न तुम हमारी बोलो, न हम तुम्हारी बोले| खैर नेताओ को उलझा कर ब्यूरोक्रेट अपनी पक्की कर रहे है|
दुर्गा नागपाल का ही मामला ले लो| जिलाधिकारी ने दुर्गा के पक्ष में रिपोर्ट देकर हौसला दिखाया तो इसके पीछे भी संवैधानिक ताकत ही है| जिलाधिकारी जिले में राजस्व विभाग का मुखिया होता है| लेखपाल से लेकर एस डी एम् तक उसके अधीनस्थ कर्मचारी है| अभी तक मिली रिपोर्ट के मुताबिक सरकार की कार्यवाही एकतरफा ही दिखाई पड़ती है| क्यों? जो तथ्य निकल निकल आ रहे है वे सभी दुर्गा शक्ति के पक्ष में है| लेखपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही गाँव में कोई भी राजस्व से सम्बन्धित काम आगे बढता है| लेखपाल कह रहा है कि कब्ज़ा अवैध था, खुद गिराया गया| अब नेता इसे काट रहे है| आरोप लग रहे है कि नाक की साख बनाये मुलायम सिंह, अखिलेश यादव, आजम खान, अहमद हसन सब वोट बैंक की खातिर बालू माफिया को बचाने और दुर्गा को निपटाने में लग गए है| फेसबुक पर टिपण्णी करने वाले को गिरफ्तार कर रहे है| आखिर ये दबंगई क्यों?
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सत्ता के नेता अपनी बात तो छपाना चाह रहे है मगर मीडिया के सवालों का जबाब देने में बच रहे है| उल्टा मीडिया को ही कटघरे में खड़ा कर रहे है| भला मीडिया को क्या लाभ? अहमद हसन ने कहा कि पांच प्रतिशत काली भेड़े है मीडिया में| मगर दुर्गा के पक्ष में खबरे तो 90 प्रतिशत मीडिया छाप रहा है| इससे सरकार बच नहीं सकती| समाजवादी पार्टी की सरकार दबंगई और गुंडागर्दी की वजह से गयी थी और मायावती की आई| मायावती भ्रष्टाचार की वजह से गयी और फिर से समाजवादी पार्टी की सरकार आई| अब दोनों दलों पर दाग लगा हुआ है| एक दबंग है तो दूसरी भ्रष्ट| ऐसे में आने वाले लोकसभा चुनाव में अगर जनता इन दोनों को छोड़ तीसरे और चौथे के बारे में विचार कर सकती है| जनता जागरूक हो रही और मीडिया की मजबूरी है ज्यादा से ज्यादा सच को दिखा देना| वर्ना भरोसा मीडिया से भी उठा हुआ समझो|
नेता भी मीडिया मैनेजमेंट करने की कोशिश कर रहे है| मुलायम सिंह यादव का बाबरी मस्जिद गिरेगी …. वाला अचानक आया हुआ बयान ऐसे ही नहीं आया| दुर्गा शक्ति के निलंबन से छाया हुआ मीडिया नए मुद्दे को उठाये यर कोशिश की थी मुलायम ने मगर मीडिया ने बहुत देर तक भाव नहीं दिया| आखिर सच से क्यूँ भाग रहे है नौजवान अखिलेश यादव| नौजवानों को उन पर भरोसा है इसे ईमानदारी से कायम रखे तो लम्बी पारी खेल सकते है वर्ना ये लोकतंत्र है| किसी दूसरे के चुनाव में देर नहीं लगाती है जनता|