लखनऊ। इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राजनीतिक दलों को तगड़ा झटका देते हुए यूपी में जातिगत रैलियों पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने पार्टियों से जातिगत रैलियों और बैठकों से दूर रहने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की रैलियों से समाज बंटता है। एक पीआईएल की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये आदेश सुनाया।
रैलियां संविधान के विपरीत: कोर्ट
अदालत ने ऐसे आयोजनों को संविधान की व्यवस्था के विपरीत बताया और कहा भविष्य में ऐसी रैलियां और बैठकें आयोजित न की जाए। जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने एक वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर यह आदेश पारित किया।
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सुनवाई के बाद वकील ने बताया कि इस संबंध में हाईकोर्ट ने पार्टियों को नोटिस जारी किया है। अभी सुनवाई की अगली डेट तय नहीं है। इसके लिए पीआईएल दाखिल की गई थी। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए ऐसी रैलियों और बैठकों पर बैन लगा दिया है।
मायावती की रैली का जिक्र
याचिका में मायावती की बहुजन समाज पार्टी द्वारा सात जुलाई को लखनऊ मे ब्राह्रण महासम्मेलन का जिक्र किया गया है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह सम्मेलन लोकसभा में वोट पाने के लिए आयोजित किया गया जो संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत है। याची ने अदालत से यह भी कहा कि संविधान के अनुसार सभी जातियां बराबर का दर्जा रखती हैं और किसी पार्टी विशेष द्वारा उन्हें अलग रखना कानून और मूल अधिकारों का हनन है।
चुनावी समीकरण गड़बड़ाया
तमाम राजनीतिक दल चुनाव के पहले जाति सम्मेलन और रैलियां करते हैं। यूपी में जाति की सियासत जोरों पर रहती है। तमाम दल खास तौर पर सपा और बसपा जातिगत रैलियां कर खूब भीड़ जुटाते हैं। लेकिन अब कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए ऐसी रैलियों पर पाबंदी लगाने का आदेश सुनाया है। इस फैसले से सियासी दलों का चुनावी समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है।