गुटबाजी की भेंट चढ़ गया सचिन का टिकट, प्रेक्षक के सामने हुई नंगई ने दिखाया रंग

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फर्रुखाबाद: समाजवादी पार्टी में विगत काफी समय से जारी गुटबाजी सचिन यादव का लोक सभा टिकट निगल ही गयी। पार्टी प्रेक्षक के विगत दौरे में सबके सामने हुई नंगई ने आखिर अपना रंग दिखा ही दिया। विगत छह माह के दौरान सचिन यादव ने यद्यपि अपने पिता की परंपरावादी परिपाटी से अलग हटकर प्रचार और जनसंपर्क के नये आयाम निर्धारित किये। परंतु उनके पिता द्वारा असंतुष्‍टों को नजरअंदाज कर गुटबाजी से जिस प्रकार मुंह मोड़ लिया गया, वह उनके लिये ही घातक हो गया। जब असंतुष्‍टों को घर में न्‍याय की आशा न रहे तो जाहिर है कि बाहर वालों का सहारा तो लेना ही था। इतना ही नहीं पार्टी के प्रदेश स्तर के नेताओं ने भी बीमारी के इलाज के बजाय आपरेशन को ही मुनासिब समझा। परंतु समाजवादी पार्टी की आगामी लोकसभा चुनाव में हार यदि पहले निश्‍चित थी तो अब सुनिश्‍चित अवश्‍य हो गयी।

SAPAA Panga2जनपद में समाजवादी पार्टी के भीतर की गुटबाजी काफी पुरानी है। ब्‍लाक प्रमुख चुनाव से लेकर अविश्‍वास प्रस्‍ताव के बाद उपचुनाव और विगत विधानसभा चुनाव के दौरान नगर से समाजवादी पार्टी प्रत्‍याशी उर्मिला राजपूत की हार के बाद से पार्टी जिस तरह खेमों में बंटी उसका खाका सबके सामने है। उर्मिला राजपूत जहां सपाइयों द्वारा विधान सभा चुनाव के दौरान खुले आम उनका विरोध किये जाने की बात कहती नजर आती थीं वहीं हाल में हुए नगर पंचायत चुनाव के दौरान भी मंत्री समर्थकों की देह कही और दिल कहीं और होने की कहानियां सार्वजनिक हैं। हद तो यह है कि मुख्‍यमंत्री के हालिया दौरे के दौरान भी मंच पर चढ़ने और बैठने को लेकर जिस तरह की धींगामुश्‍ती हुई वह शायद उन्‍होंने स्‍वयं भी देखी हो। विभिन्‍न पार्टी कार्यक्रमों में उपस्‍थित जब इस बात से तय होने लगे कि कार्यक्रम का आयेजक किस गुट का है और कार्यक्रम स्‍थल किस गुट के नेता के करीबी का है तो समझ लेना चाहिये कि मामला गड़बड़ है। इस मौके पर यदि परमनगर की एक किशोरी के अपहरण कांड का उल्‍लेख न किया जाये तो कहानी अधूरी रह जाती है। किशोरी द्वारा मीडिया और न्‍यायाल में दिये गये विरोधाभासी बयानों में सच्‍चाई जो भी रही हो परंतु इस प्रकरण में जिस प्रकार की राजनीति की गयी वह भी याद रखने लायक है।

परंतु इस गुटबाजी को दूर करने के बजाय दोनों पक्ष इसको हवा देने में जुटे नजर आये। जाहिर है कि इसके पीछे मंत्री के वह चापलूस समर्थक ही थे जिनके हित केवल गुटबाजी में ही थे। स्‍वयं मंत्री नरेंद्र सिंह यादव ने भी असंतुष्‍टों को साथ लाने के बजाय उनको और अधिक नजरअंदाज करने की ही नीति अपनायी। परंतु इसका खमियाजा नरेंद्र सिंह व उनके पुत्र सचिन यादव को ही भुगतना पड़ गया।सर्वाधिक खराब नजारा विगत सप्‍ताह पार्टी प्रेक्षक राज्‍यमंत्री आलोक शाक्‍य के सामने दोनों पक्षों के बीच हुई नंगई का रहा। स्‍थित यह हुई के जिलाध्‍यक्ष से बाकायदा धक्‍कामुक्‍की हुई और उनको बाहर निकलने तक की धमकी दी गयी। बेचारे प्रेक्षक मंत्री ने जैसे तैसे जान छुड़ाई। अब पता नहीं यह प्रेक्षक की रिपोर्ट का असर था या रामेश्‍वर यादव द्वारा हाल में मुख्‍यमंत्री राहत कोष में दिये गये एक करोड़ रूपये के चंदे का असर था। आखिर हुआ वही जिसकी सभी असंतुष्‍ट काफी दिनों से भविष्‍यवाणी कर रहे थे। सचिन यादव का टिकट कट गया, और रामेश्‍वर यादव को नया प्रत्‍याशी घोषित कर दिया गया।

अभी भी पार्टी के सामने समय है। यदि समय रहते इस गुटबाजी को दूर नहीं किया गया तो आगामी लोकसभा चुना में पार्टी की हार यदि पहले निश्‍चित थी तो अब सुनिश्‍चित ही है। अब देखना यह है कि नये प्रत्‍याशी रामेश्‍वर यादव इस गुटबाजी को पाट कर सबको साथ लेकर चलने में कितना कामयाब हो पाते हैं।