खुलासा: सरकार के एक फैसले ने आपदा को बदला त्रासदी में

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Kedarnathबाहरी और निजी टूर आपरेटरों को चार धाम यात्रा में मनमाने यात्रियों को ले जाने की छूट देने के राज्य सरकार के फैसले की वजह से उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा भीषण मानवीय त्रासदी में बदल गई। चार धाम यात्रा के संचालन के लिए चार दशक से भी ज्यादा पुरानी संयुक्त रोटेशन परिवहन व्यवस्था खत्म करके सरकार ने इस साल नई व्यवस्था बनाई।

इसके तहत सरकार ने देश भर में कई जगहों के टूर आपरेटरों और मोटर आपरेटरों को भी यात्रा कराने की छूट दे दी। इसके कारण बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, गौरीकुंड, सोन प्रयाग, रुद्र प्रयाग में क्षमता से कई गुना अधिक यात्री पहुंचे। यात्रियों के इस दबाव ने बारिश की तबाही को दर्दनाक इंसानी हादसे में बदल दिया।

ऐसे बनी थी संयुक्त रोटेशन परिवहन व्यवस्था
सदियों से चली आ रही चार धाम यात्रा कभी ऋषिकेश से पैदल शुरू होती थी और तीर्थयात्री महीनों में यह यात्रा पूरी करते थे।

उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के परिचालन से जुड़े रहे लोग बताते हैं कि पचास के दशक में जब सड़क मार्ग से यात्रा होने लगी तो एक निजी मोटर वाहन संस्था गढ़वाल मोटर ओनर्स एसोसिएशन इसका संचालन शुरू किया।

आगे चलकर टिहरी गढ़वाल मोटर ओनर्स एसोसिएशन और यातायात एवं पर्यटन विकास सहकारी संघ ने यात्रा का संचालन संयुक्त रूप से शुरू किया।

1975 में तब तक यात्रा में कई निजी मोटर कंपनियां उतर चुकी थी, जिससे बेहद अराजकता की स्थिति बन रही थी। उसे दूर करने के लिए उत्तराखंड की कुछ निजी परिवहन कंपनियों ने एकजुट होकर संयुक्त रोटेशन परिवहन व्यवस्था समिति का गठन किया।

पुरानी व्यवस्था में लोग करते थे सुरक्षित यात्रा
इस प्रणाली के तहत बसों से यात्रा करने वालों का पंजीकरण और बीमा कराकर उनका पूरा रिकार्ड रखा जाता रहा है और हर तीर्थ स्थल की क्षमता के मुताबिक ही बसों से यात्रियों को क्रमवार भेजा जाता था। इसलिए यात्रा का पूरा हिसाब किताब बना रहता था।

यात्रियों को रास्ते में पडऩे वाले सभी मंदिरों के दर्शन कराने, चट्टियों में रुकने की वजह से चारो प्रमुख धामों और उनके मार्गों में कभी भी यात्रियों की भीड़ का दबाव अनियंत्रित नहीं होता था।

बद्रीनाथ से पहले जोशी मठ में नरसिंह मंदिर के दर्शन और गेट पर रुकने की वजह से बद्रीनाथ धाम में भी यात्रियों की संख्या नियंत्रित रहती थी।

पुरानी व्यवस्था को चलाने वाले लोग थे खतरों से वाकिफ
बताया जाता है कि इस संयुक्त रोटेशन परिवहन प्रणाली में जीएमओ कोटद्वार, टीजीएमओ ऋषिकेश, यातायात एवं पर्यटन विकास सहकारी संघ ऋषिकेश, गढ़वाल मंडल कांट्रेक्ट कैरिज एसोसिएशन ऋषिकेश, रूपकुंड पर्यटन विकास सहकार संघ थराली कर्णप्रयाग, सीमांत सहकारी संघ लि. चमोली, गढ़वाल मंडल बहुउद्देशीय सहकारी संघ लि. एवं गढ़वाल मोटर यूजर्स कोआपरेटिव ट्रांसपोर्ट सोसायटी रामनगर बीरोखोल, दून वैली काट्रेक्ट कैरिज एसोसिएशन देहरादून समेत नौ निजी संस्थाएं शामिल रही हैं।

यह सभी संस्थाएं दशकों से उत्तराखंड में सड़क परिवहन के क्षेत्र में कार्यरत रही है और इनका प्रबंधन व कर्मचारी इलाके के भूगोल, संस्कृति, यात्रा की परंपराओं, लोगों की प्रकृति, मौसम, जोखिम, खतरों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। इसलिए इतने वर्षों से यात्रा निर्बाध होती रही है।

इस साल सरकार ने खत्म कर दी पुरानी व्यवस्था
संयुक्त रोटेशन परिवहन प्रणाली के तहत चार धाम यात्रा का परिचालन पिछले साल तक अनवरत चलता रहा।

लेकिन इस वर्ष राज्य सरकार संयुक्त रोटेशन परिवहन प्रणाली को खत्म करके यात्रा के लिए गढ़वाल के निजी मोटर आपरेटरों के अलावा हरिद्वार, रुड़की, दिल्ली, मेरठ, चंडीगढ़, अंबाला, सहारनपुर आदि के टूर आपरेटरों और मोटर आपरेटरों को भी यात्रा कराने की छूट दे दी।

इसके अलावा निजी टैक्सियों और अपने वाहनों से लोग यात्रा पर जाते ही हैं। नतीजा यह हुआ कि इस बार चार धाम यात्रा में बेहतहाशा और बेहिसाब भीड़ हो गई।

जबकि सरकारी इंतजाम पुराने हिसाब से ही किए गए थे जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए और जब आसमान से प्रलंयकारी बारिश हुई, नदियों में लहरों की सुनामी उठी तो यात्रियों की यह बेहिसाब भीड़ इस प्राकृतिक आपदा की चपेट में आकर इस विनाशलीला की शिकार बन गई।

सरकार के पास कोई जवाब नहीं
राज्य सरकार के परिवहन मंत्री सुरेंद्र राकेश और पर्यटन मंत्री अमृता रावत के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह व्यवस्थाएं क्यों बदली गईं? मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी ऐसा क्यों होने दिया? यह सवाल देहरादून से लेकर दिल्ली तक पूछे जा रहे हैं।

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