लखनऊ: गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता नरेंद्र मोदी ने अयोध्या जाने का न्यौता ठुकरा दिया है। जेडीयू के राजग से अलग हो जाने के बाद भाजपा की मुख्य सहयोगी पार्टियों में शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल बचे रह गए हैं। सहयोगी दलों की चिंताओं के मद्देनजर भाजपा पिछले कुछ सालों में राम मंदिर के मुद्दे को उठाने से बचती रही है। मोदी के इस कदम को राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
यद्यपि इसके पीछे नरेंद्र मोदी की व्यास्तरता को कारण बताया जा रहा है, परंतु अयोध्या न जाने के उनके फैसले को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से उठाए गए धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे के बाद किसी नए विवाद से बचने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय के एक बयान के हवाले से बताया है कि नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में प्रस्तावित ‘अमृत महोत्सव’ में भाग लेने से ‘विनम्रता पूर्वक इनकार’ कर दिया है। राम जन्मभूमि न्यास ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के 75 वें जन्मदिन को अमृत महोत्सव के तौर पर अयोध्या में मनाया जा रहा है।बयान में कहा गया है, “13 जून को नृत्य गोपाल दास ने मुख्यमंत्री को फोन किया था और 19 जून से 22 जून तक मनाए जाने वाले अमृत महोत्सव में भाग लेने का न्यौता दिया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि पहले से तयशुदा कार्यक्रमों की व्यस्तता के कारण कार्यक्रम में उपस्थित हो पाना मुश्किल है।”
इस बीच नरेंद्र मोदी ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की। पिछले दिनों पार्टी की कार्यकारिणी की गोवा में हुई बैठक में मोदी को भाजपा की चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपे जाने के बाद आडवाणी ने पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया था। राजनीतिक गलियारों में यह कहा जा रहा था कि आडवाणी मोदी को यह जिम्मेदारी दिए जाने से नाराज थे।