दिल्ली: रेलवे ट्रैक पर निवृत्त होने और मैनुअल तरीके से उसकी सफाई पर अंकुश लगाने के लिए प्रस्तावित कानून की फिर से समीक्षा की मांग करते हुए रेलवे ने अपनी जमीन पर रेल लाइनों के किनारे शौचालयों के निर्माण में असमर्थता जताई है।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मैनुअल सफाई कर्मियों और उनके पुनर्वास से जुड़े विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है।
मंत्रालय चाहता है कि रेलवे ट्रैक किनारे इतने सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करे कि खुले में निवृत्त होने की प्रवृत्ति पर रोक लग सके।
बहरहाल, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनय मित्तल ने इस संबंध में कानून मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि रेल लाइनों के किनारे शौचालयों का निर्माण करना रेलवे का काम नहीं है।
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उन्होंने कहा है कि इस तरह के काम की जिम्मेदारी नगर निकायों की होती है और इस काम को उन्हें ही करना चाहिए। मित्तल ने अपने पत्र में लिखा है कि उनका विभाग रेलवे एक्ट, 1989 के अनुसार काम करता है। एक्ट के अनुसार सामुदायिक शौचालयों के निर्माण की जिम्मेदारी उनकी नहीं है। इस तरह के काम नगर निकायों और पंचायतों के जिम्मे आते हैं।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने कहा है कि रेलवे की जिम्मेदारी यात्रियों और सामानों की ढुलाई है और वह अपने इस काम को बेहतर तरीके से अंजाम देने के लिए सभी जरूरी काम करती है। मित्तल ने अपने पत्र में साफ तौर पर कहा है कि ट्रैक किनारे खाली पड़ीं जमीनें शौचालयों के लिए निर्माण के लिए नहीं हैं।
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उन्होंने कहा है कि अगर ट्रैक किनारे शौचालयों का निर्माण कराया जाता है तो इससे अनाधिकार प्रवेश बढ़ जाएगा, जो सुरक्षा के लिए खतरा होगा। साथ ही ट्रैक पार करने वालों के हादसे के शिकार होने की संभावना भी बढ़ जाएगी।