जासूसों का सम्मान पुरानी परम्परा- लन्दन में भारतीय महिला जासूस की मूर्ति..

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जासूस की जिन्दगी मौत के परवाने पर लिखी होती है| आज पकिस्तान सरबजीत को जासूस बताकर भले ही गुनाहगार मानता हो मगर भारत ने सर्वजीत को शहीद का दर्जा देकर बड़ा सम्मान दिया है| जासूसों को सम्मान देने की परम्परा बहुत पुरानी है| लन्दन में तो बाकायदा जासूसों की मूर्तियाँ लगी है| ऐसे ही एक भारतीय मूल की महिला जासूस को लन्दन में सम्मान मिला है| दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नूर ने फ़्रांस में अपनी सेवाएं दी थीं| जर्मन खुफिया एजेंसियों ने उन्हें पकड़ने के बाद पहले तो बहुत यातनाएं दीं और बाद में उन्हें गोली से उड़ा दिया गया|

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नूर इनायत को गेस्टापो ने 1944 में गोली से उड़ा दिया था

लंदन में भारतीय मूल की इस महिला जासूस नूर इनायत ख़ान की मूर्ति का अनावरण राजकुमारी ऐन ने किया और इस मौके पर नूर के परिवार के सदस्य और ब्रिटेन के पुराने जासूस भी मौजूद रहे थे| नूर इनायत ख़ान को उनके फ़्रांस में किए गए काम के लिए मरणोपरांत जॉर्ज क्रॉस दिया गया था| उनको यह सम्मान दस महीनों तक गेस्टापो द्वारा यातनाएं दिए जाने के बावजूद कुछ न बताने के लिए दिया गया था|
नूर इनायत ख़ान को मेडलीन का कूट नाम दिया गया था और 13 सितंबर 1944 को उन्हें डचाऊ के यातना शिविर में गोली मारी गई थी|
noor inayat khan JNI Pic
टीपू सुल्तान की वंशज

नूर मैसूर के महाराजा टीपू सुल्तान की वंशज थीं. वही मशहूर टीपू सुल्तान जिन्होंने ब्रिटिश शासन के सामने झुकने से इंकार कर दिया था| टीपू सुल्तान 1799 में अंग्रेजों के साथ लड़ाई में मारे गए थे| फ़र्राटे से फ़्रेंच बोलने वाली नूर इनायत ख़ान को 1943 में ब्रिटेन के तोड़-फोड़ करने वाले बल में ‘स्पेशल ऑप्रेशन एग्ज़क्यूटिव’ के तौर पर शामिल किया गया था| वह पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थीं जिन्हें 1943 में इस मशहूर निर्देश के साथ भेजा गया था कि ‘यूरोप को लपटों के हवाले कर दो.’ |

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उनकी भूमिका इतनी ख़तरनाक थी कि कई लोग मानते थे कि फ्रांस में वह छह सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह पाएंगी| ‘नूर स्मारक ट्रस्ट’ की संस्थापक और उनकी जीवनी ‘स्पाई प्रिंसेज़’ लिखने वाली श्रबनी बसु ने बीबीसी को बताया कि उनकी नूर की कहानी में इसलिए रुचि जगी क्योंकि उन्हें जिज्ञासा हुई कि आखिर क्यों एक भारतीय महिला यूरोप की लड़ाई की आपाधापी में उलझ सकती थी|

बसु का कहना था,”जब मैंने उनकी कहानी पर शोध शुरू किया, मुझे पता चला कि वह सूफ़ी थीं और अहिंसा और धार्मिक समन्वय में विश्वास करती थीं.”

नेहरू और गाँधी की मुरीद

नूर इनायत खाँ फासीवाद की धुर विरोधी थीं इसके बावजूद उन्होंने अपनी इच्छा से युद्ध के अग्रिम मोर्चे पर जाने की हामी भरी| नूर एक राष्ट्रवादी थीं और नेहरू और गाँधी की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं|

पेरिस में गेस्टापो के ब्रिटिश खुफिया तंत्र को तहस नहस करने के बाद वह आखिरी व्यक्ति थीं जिनका लंदन से संपर्क बना हुआ था. जब गिरफ़्तारियाँ होने लगीं तो उनके कमांडरों ने उनसे कहा कि वह वापस लौट आएं लेकिन वह अपने फ़्रेंच साथियों को बिना बताए छोड़ कर वापस आने के लिए तैयार नहीं हुईं|

तीन महीनों तक वह फ्रांस में अपने बूते पर जासूसी करती रहीं. इस बीच उन्होंने कई ठिकाने और वेश बदले. पर अंतत: उनको गिरफ़्तार कर लिया गया| उनकी मूर्ति गॉर्डन स्कवायर गार्डेंस में लगाई गई है. ये स्थान उनके ब्लूम्सबरी स्थित घर के पास है जहाँ वह 1914 में एक बालिका के तौर पर रहा करती थीं.