इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर के पास स्थित एक बहुत ही पिछड़े गांव की एक अद्भुत खासियत सामने आई है। मोहम्मदपुर उमरी गांव में छह हजार लोगों की आबादी के बीच न तो ढंग की सड़कें हैं और ना ही कोई अस्पताल और स्कूल है। इसके बावजूद इस गांव की खासियत ये हैं यहां सौ जोड़ी जुड़वां बसते हैं।
इलाहाबाद जिले के धूमनगंज क्षेत्र में मोहम्मदपुर उमरी गांव में सौ जोड़ी जुड़वां बच्चों में अधिकांश आइडेंटिकल ट्विंस हैं। ऐसा कहा जाता है कि पिछले पचास सालों में यहां जन्मे जुड़वां बच्चों की तादाद और भी अधिक हो सकती थी अगर यहां कोई अस्पताल होता है। जच्चा-बच्चा की बिना किसी उचित देखभाल के भी यह अद्भुत सिलसिला वर्षो से कायम है। गांव में रहने वाले जुड़वां भाइयों में से एक मोहम्मद आसिफ ने बताया कि यहां के रहने वाले छह हजार लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य की कोई भी मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं है। वरना कहा जाता है कि गांव में जुड़वां बच्चों की कुल तादाद दो सौ के बजाय चार सौ तक जाती। मोहम्मद आसिफ ने बताया कि गांव के अधिकांश लोग रोजी-रोटी और शिक्षा के लिए दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों के लिए पलायन कर जाते हैं। आसिफ ने बताया कि उसका जुड़वां भाई करीम भी अब दिल्ली में रहता है।
इस तरह एक अन्य युवक मोहम्मद आतीशान ने बताया कि उसके जुड़वां भाई का नाम जीशान है। उन दोनों को देखकर लोग अक्सर उलझन में पड़ जाते हैं। 15 साल की उम्र तक जुड़वां एकदम एक जैसे दिखते हैं। लेकिन उसके बाद उनके बीच शक्ल-सूरत में फर्क मालूम पड़ने लगता है। उन्होंने बताया कि बाहरी लोग उन्हें अजीब नजरों से देखते हैं और कहते हैं कि वह बहुत अजीबोगरीब गांव से हैं। ऐसा होना एकदम अस्वाभाविक है। उन्होंने बताया कि गांव में अस्सी फीसद आबादी मुसलमान और बीस फीसद आबादी हिंदू है और दोनों समुदाय के लोगों में ही असामान्य तादाद में जुड़वां बच्चे होने के मामले रहे हैं। इसी तरह यहां जुड़वां बहने निखत और फरहत भी हैं।
अतीशान और जीशान का कहना है कि यहां अधिक जुड़वां बच्चे पैदा होने की वजह आनुवांशिकता के अलावा रहन-सहन और यहां की आबोहवा भी हो सकते हैं।
स्थानीय ग्राम सभा के सदस्य 70 वर्षीय रौफ आलम कहते हैं कि उनके माता-पिता का कहना है कि इस गांव में जुड़वां बच्चों के जन्म लेने का सिलसिला 90 सालों से चला आ रहा है। लेकिन पिछले 50 सालों में जुड़वां बच्चों के जन्म लेने की तादादा बहुत ज्यादा हो गई। उन्होंने बताया कि पिछले कई सालों में 90 जोड़ी जुड़वां बच्चों की मौत हो गई। अब आप ही सोचिए अगर वह जीवित रह जाते तो यहां जुड़वां की तादाद कितनी होती। उन्होंने बताया कि इस गांव की इस खूबी को परखने के लिए दुनिया भर के बहुत से विद्वान यहां आ चुके हैं और यहां के लोगों के खून के नमूने भी ले जा चुके हैं। लेकिन अपनी खोज को साझा करने के लिए वह कभी गांव वापस लौटकर नहीं आए।
हालांकि उदास होकर आसिफ ने बताया कि कुछ साल पहले हैदराबाद के जीव वैज्ञानिकों ने शोध के बाद बताया था कि ऐसा यहां के भूमिगत जल में मौजूद कुछ खनिज लवणों के कारण हो सकता है। इसकी वजह खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले पेस्टिसाइड भी हो सकते हैं। लेकिन स्पष्ट कुछ नहीं कहा।