समाजवादी पार्टी की सरकार यूपी में खास दिन मना रही है| सरकार की उपलब्धियो को जनता तक पहुचाने के लिए जिले स्तर पर सम्मेलन आयोजित किये जा रहे है| एक साल से ज्यादा सत्ता में काबिज हुए अखिलेश सरकार ने अपने चुनावी वाडे के अनुरूप कई कार्य कर दिए है| मुफ्त लेपटाप बटना शुरू हो चुके है| प्रदेश स्तर पर चलायी गयी अम्बुलेंस सेवा से भी जनता को फायदा मिला है| ये काम जनता को दिखाई पड़ रहे है| इसके अलावा भी कई योजना चली जो नाम बदल कर पहले भी चलती रही है| मगर जो काम जमीन पर होना चाहिए था| जिस की वजह से समाज के सबसे निचले तबके को उसका हक नहीं मिल पा रहा था| जिस वजह से समाज के सबसे निचले तबके का शोषण होता रहा है| वो काम अभी भी नहीं हो पाया है| उस पर अखिलेश सरकार कोई रोक नहीं लगा पायी| ये है जड़ो में फैला भष्टाचार| जिसके कारण समाज के सबसे कमजोर तबके का हर रोज शोषण हो रहा है|
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जब सत्ता में काबिज पार्टियो के निचले स्तर के कार्यकर्ता भ्रष्टाचार के सहारे या भ्रष्टाचार के सहयोग से खुद की तरक्की का रास्ता तलाशते है तब जड़ो में काबिज भ्रष्टाचार रोक पाना आसान नहीं है| सरकार की जड़ो में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी जिनके कंधो पर होती है वे ही इसका हिस्सा वसूलने लगते है| पूर्व में सत्ता में रह चुकी सरकारों की पार्टियो के छोटे और जिले स्तर के बहुत से कार्यकर्ता जिलों में ये कारनामे करते रहे| जिले स्तर पर सरकारी सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार में ये कार्यकर्ता हिस्सा वसूल कर जनता को लुटने का लाइसेंस देते रहे| कमोवेश अब वही काम समाजवादी पार्टी की सरकार में भी हो रहा है|
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प्रदेश में मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव कई बार सार्वजानिक रूप से ये न केवल स्वीकार कर चुके है बल्कि रोष भी प्रगट कर चुके है कि कोटेदार, लेखपाल और शिक्षक इमानदार नहीं है| मगर क्या सत्ता पर काबिज हुक्मरानों का काम केवल रोष प्रगट करना है? इसे रोकने की जिम्मेदारी भी सत्ता दल की भी है| क्या इसे याद दिलाना पड़ेगा| तहसील स्तर पर कई समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता इन कामो में शामिल है| ये जनता के काम घूस वसूल कर मुफ्त में सरकारी कर्मचारी से करवाते है और बदले में उन सरकारी कर्मचारियो को बरदहस्त प्रदान करते है| शिकायत होने पर उस सरकारी कर्मचारी की पैरवी भी करते है| छोटा कार्यकर्ता छोटे की पैरवी करता है और बड़े कार्यकर्ता/पदाधिकारी अफसरों को बचाने की पैरवी करते है| कोई नयी बात नहीं पिछली सरकारों में भी ऐसा ही होता रहा|
कई जिले स्तर के पदाधिकारी अपना खुद का काम न होने पर भ्रष्टाचार का मुद्दा तो उठाते है मगर यही काम वो जनता के लिए नहीं करते| सवाल ये कि क्या आम जनता सरकार इसलिए चुनती है कि सिर्फ सत्ता धारी पार्टी के कार्यकर्ताओ के काम सुचारू रूप से हो जाए| जनता को छोटे भ्रष्टाचार से कोई मुक्ति नहीं|
खाद्य एवं रसद विभाग के अंतर्गत चलने वाली सरकारी सस्ते गल्ले की कोटे की दुकानों में 80 फ़ीसदी गोलमाल हो रहा है| जिले के कोटे का में 50 फ़ीसदी मिटटी का तेल तो जिले के डिपो तक ही नहीं आता| और दुकानों तक मात्र 10 फ़ीसदी तेल ही पहुचता है| इस खेल में डिपो स्तर पर ही जिले स्तर के अधिकारी माल खाते है| निचले स्तर का हिस्सा बाबुओ और बाकी के लोगो का| इस में नुकसान तो आम गरीब आदमी का ही हो रहा है| उसे ही सस्ता राशन जरुरत है| किसी नेता या विधायक को नहीं| दफ्तरों में बैठ कर भौतिक सत्यापन हो रहा है| और बदले में रिश्वत की रकम इधर से उधर हो रही| ये रिश्वत गरीब का पेट काट कर इक्कट्ठी की जाती है| इसे रोकने के भी कोई प्रयास सपा सरकार ने नहीं किये| इतना ही नहीं प्रदेश के मुखिया के पास जिले स्तर के कार्यकर्ता और विधायक ये रोना तो रो आते है कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं मगर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई शिकायत मुखिया तक नहीं करते| ये कडुआ सच है| एक भी पत्र किसी विधायक या मंत्री ने इस बाबत मुख्यमंत्री को नहीं लिखा|
एक उदहारण के लिए आम आदमी को सपा सरकार में राशन कार्ड नहीं मिला| अकेले फर्रुखाबाद जनपद में ही 8000 राशन कार्ड के अनेदानो में से 7200 आवेदन निरस्त कर दिए गए| केवल 250-300 लोगो को ही राशन कार्ड मिला| उस पर भी इन राशन कार्डो पर राशन नहीं मिला| क्या ये समाजवादी पार्टी की सरकार का काम नहीं था| जिसको राशन कार्ड मिल भी गया उसे राशन नहीं दिल पाए| लेखपाल बिना घूस के आम जनता का कोई काम नहीं कर रहा| हाँ सपा के कार्यकर्ताओ और पदाधिकारियो के काम तो हो रहे है| ऐसे में कल को आम जनता ये कह दे कि जिन लोगो का काम हुआ उनसे ही वोट ले लेना तो क्या बुरा होगा?
कई सपा समर्थक स्कूलों कालेजो में पढ़ने वाले बच्चो के खातो में छात्रवृति नहीं पहुची| जबकि इंटरनेट पर दर्शाए जा रहे आंकड़ो में ये छात्रवृति वितरित दिखाई पड़ रही है| प्रदेश में राशन कार्डो का नवीनीकरण चल रहा है| गरीबी की रेखा से नीचे वाला बीपीएल राशन कार्ड के लिए छोटी आय का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए 1000/- रुपये की रिश्वत आवश्यक है| जो गरीब है उसी का कार्ड बनाना है| और गरीब से 1000/- रुपये की रिश्वत लेखपाल वसूल रहा है| शर्म की बात है कि जायज काम के लिए घूस की रकम देनी पड़ रही है| ये काम चल रहा है| प्रक्रिया में है| समाजवादी पार्टी के जिम्मेदार पदाधिकारियो को चाहिए कि लेखपाल और कोटेदार के भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाये| क्योंकि वे ही असली वोटर है|