बड़ौत। राम से बड़ा राम का नाम है। तीन पीढ़ी पहले इदरीशपुर के खुशीराम ने इस सूक्ति को आत्मसात किया और परिवार के हर सदस्य का नाम राम के सूत्र में बांधने की परंपरा शुरू की। इसके बाद अब तक 55 लोगों के नामकरण में राम मौजूद हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही यह परंपरा मर्यादा पुरुषोत्तम राम के प्रति श्रद्धा के साथ ही पारिवारिक एकता और सहिष्णुता का संबल भी है।
धर्म और रिश्तों के दरकते समय में यह परंपरा सुखद अनुभूति का अहसास कराती है। दोघट क्षेत्र के इदरीशपुर गांव के खुशीराम की भगवान राम में प्रबल आस्था थी। सो उन्होंने परिवार के हर बच्चे का नाम राम के नाम पर रखना शुरू किया। खुशीराम के बेटे लालाराम और उनके बेटे रामसिंह ने इस परंपरा को बरकरार रखा। एकजुटता और भाईचारे की मिसाल कायम कर रहे इस परिवार में पिछली तीन पीढि़यों से अब तक 55 लोगों का नामकरण राम नाम से पिरोया जा चुका है।
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इसमें परिवार की 26 बेटियां भी शामिल हैं। हालांकि की घर में आने वाली बहुओं के नाम में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता। परिवार के रामकुमार सिंह और रामबीर सिंह का कहना है कि भगवान राम के नाम में निहित शक्ति से उनकी आने वाली पीढ़ी भी बुराइयों का त्याग कर अच्छाइयों को धारण करेगी। वर्तमान में इस परिवार के कुछ सदस्य गांव में, जबकि कुछ बड़ौत और गाजियाबाद में रहते हैं।
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परिवार के बेटे
खुशीराम, लालाराम, रामसिंह, रामभजन, गिरधारी राम, आत्माराम, रामदास, रामफूल, रामकुमार, रामफल, रामरंग, रामहरि, रामजी राम, रामदेव, चाहीराम, रामलखन, राम कृष्ण, हरिराम, रामगोपाल, रामकिशन, राम माधव, गोविंद राम, राम राघव, रामअंश, रामसुमन, रामवीर, मुकुंदराम, नंदराम और बलराम हैं।
परिवार की बेटियां
रामकौर, रामदुलारी, राममूर्ति, रामबबीता, रामराधा, रामभव्या, गौरीराम, रामचाही, रामलता, रामरूबी, रामविन्नी, रामअंजलि, रामरक्षिता, रामनित्या, रामकविता, रामरेखा, पिंकीराम, नेहाराम, रामरोशनी, रामबीरी, रामरेशू, रामकृति, रामसुनिता, रामअनंता और राम स्वस्तिका है।