भारतीय खाद्य निगम में अपर डिविजनल क्लर्क की नौकरी के उसके दो माह गुजरे है| उसके विभाग में लीकेज के बारे में पूछ रहा था| वो बोला जिसे आप लीकेज समझते हो वही मेन पाइप है अब जनता के लिए है| अब लीकेज वाला हिस्सा ही जनता तक पहुचता है| सरकार का बड़ा हिस्सा जो जनता तक पहुचना चाहिए उसे तो हाईजेक कर लिया है भ्रष्ट सरकारी मशीनरी ने|
मैंने पूछा तुम्हे कुछ मिला? (मेरा मतलब उसके 28000 रुपये मासिक वेतन से नहीं, उपरी कमाई से था)
कुछ देर के लिए उसकी नजरे झुक गयी| मैं कुरेद-कुरेद पूछ रहा था| वो बोलना नहीं चाह रहा था| फिर पूछा तो इशारे में बोला- दो माह में 50 हजार रुपये कमीशन का मिला है| मैंने बोला ये तो घूस की रकम है| फ़ौरन ही सफाई पेश दी, नहीं ये सिस्टम है| रिश्वत और भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बाद उसे स्याह करने के लिए कितने प्रकार की सफाई पेश करनी पड़ती है| शायद मुझे भ्रष्ट सिस्टम से लड़ते हुए देख खुद को सहज नहीं महसूस नहीं कर पा रहा था| मगर मैंने कभी अपने जैसा बनने का दबाब दूसरो पर नहीं डाला| अपनी अपनी मंजिल है| जो मन को अच्छा लगे वही करो| बस छोटा सा उदहारण दिया| पूछा प्रदीप शुक्ला का नाम सुना है| तपाक से बोला हाँ कभी IAS टापर था अब राष्ट्रीय स्वस्थ्य मिशन में यूपी में सबसे बड़ा घोटालेबाज अभियुक्त है|
मैं बोला- प्रदीप शुक्ला जब आई ए एस टापर हुए तब मैं छात्र था| उनके अंग्रेजी की पत्रिका इंडिया टुडे और कॉम्पिटिशन मास्टर में छपे इंटरव्यू को दो बार पढ़ा था| अब मेरे छोटे भाइयो की बारी है देश के सबसे बड़े प्रदेश के सबसे बड़े गरीबो के लिए इलाज के लिए आई रकम में घपला कर डकारने वाले अभियुक्त के रूप में प्रदीप शुक्ल को पढ़ रहे है| स्वभाव के अनुरूप मैंने थोडा सा प्रवचन दे डाला| बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा कि जब मैंने प्रदीप शुक्ल को पढ़ा था तब उन्हें आदर्श के रूप में पढ़ा था| कैसे तयारी की| क्या सोच है? आई ए एस बनकर क्या करोगे| मगर आज तुम उसी आदमी को भ्रष्टाचार की सड़ांध में लिप्त लालीपॉप के रूप में पढ़ रहे हो| क्या सोच कर प्रदीप शुक्ला ने भ्रष्टाचार के सहारे धन बटोर होगा? दो चार पीडियो के लिए धन इक्कठा कर लो| मगर अब क्या नतीजा है| दो चार पीडियो तक उनके नाती पोते परपोते भ्रष्टाचार के दागी खानदान के वारिस होने का दंश झेलेंगे| कितने करोड़ चाहिए| दिल्ली वाले भाई ने साथ दिया बोले धन संग्रह के मामले एक लिमिट के बाद शून्य का कोई औचित्य नहीं रह जाता| मगर आदमी इसी शून्य को बढ़ाते रहने की सोचता रहता है| नाश्ता कब ख़त्म हुआ पता नहीं चला| वैसे खूब तरक्की करो, कहते हुए माहौल को सहज बनाने का प्रयास करने लगा|
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रविवार को सुबह नाश्ते की मेज पर मैं एक नौजवान मौसेरे भाई को सड़ांध भरे प्रशसनिक सिस्टम का हिस्सा बनते हुए देख रहा था| इसके अन्दर जोश है| एक साल के अन्दर ही आधा दर्जन सरकारी नौकरियो को अपनी क़ाबलियत की दम पर हासिल कर लेने की कुव्वत वाले अपने से 15 साल छोटे नौजवान भाई को भ्रष्टाचार से भरे प्रशसनिक दलदल में खुद को सहज करते हुए देख रहा था| कई साल बाद मेरे तीन मौसेरे सगे भाई एक साथ नाश्ते की मेज पर थे| तीनो की उम्र 20 से 25 के बीच| एक दिल्ली में सचिवालय में तो बाकी के दो भारतीय खाद्य निगम में लग चुके है| तीनो एक के बाद एक नौकरी पकड़ रहे है और छोड़ रहे है| तीनो में बहुत कुछ हथिया लेने की कुव्वत है| मगर मैं देख रहा हूँ कि इन नवयुवको में सिर्फ एक अदद अच्छी नौकरी पा लेने के सिवा अभी कोई सोच नहीं है|
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सबसे बड़ा भाई दिल्ली में सचिवालय पहुच चुका था जब अन्ना का आन्दोलन चल रहा था| बीच बीच में मुलाकात हुई तो कोई खास प्रभाव अन्ना का नहीं दिखा| भीड़ की चर्चा जरुर हुई| मगर गहराई कुछ नहीं| आई इ एस के अलगे टर्म की तैयारी में पूरा वक़्त गुजार रहा था| भ्रष्ट तंत्र से सब पीड़ित है| मगर सबसे पहले तो पेट का जुगाड़ करना है| और जिस युवा को पेट का जुगाड़ करना है वही अन्ना का सबसे बड़ा समर्थक है| भरे पेट वाले को तो अन्ना सिर्फ शोर करने वाला बाबा लगता है| बागपत में अन्ना की सभा में कोई नहीं पंहुचा| मीडिया में खबर आई और उस पर कोई खास चर्चा नहीं हुई| बहुत ज्यादा तिरस्कार भी देखने को नहीं मिला| क्योंकि अन्ना की सभा में भीड़ का न होना अन्ना की नाकामी नहीं देश की नाकामी है| नौजवान को रोजगार की तलाश पहले है| पेट भरने का काम पहले है| खुद के और अपने परिवार के जीने के लिए साधन जुटाने का काम पहला है| भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ना पहली प्राथमिकता नहीं है| ये बड़ी गहन बात है जिसे केंद्र में राज करने वाले जानते है| मगर सच ये भी है अन्ना नाकाम है या अन्ना का अजेंडा नाकाम है ऐसा भी किसी में कहने की हिम्मत नहीं है| कुल मिलाकर भारतीय सरकारी तंत्र एक सड़े फलो का टोकरा है जिसमे रखा जाने वाला नया और अच्छा फल भी सड़ने पर मजबूर है| अन्ना इसे ही बदलना चाहते है|