थानाध्यक्ष सहित तीन पुलिसकर्मियों को फांसी, पांच को उम्र कैद

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gonda fake shootoutलखनऊ : वीभत्स एवं अमानवीय तरीके से 31 वर्ष पहले गोंडा के माधोपुर में फर्जी पुलिस मुठभेड़ दिखाकर सीओ केपी सिंह एवं बारह निर्दोष ग्रामीणों की हत्या के आरोप में दोषी ठहराए गए पूर्व थानाध्यक्ष कौड़िया, सिपाही राम करन यादव एवं दीवान राम नायक पांडेय को विशेष न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने फांसी की सजा सुनाई है। साथ ही कहा कि संपूर्ण पत्रावली जिला जज के माध्यम से उच्च न्यायालय में संदर्भित की जाए। उच्च न्यायालय द्वारा सजा की पुष्टि के बाद अभियुक्तों को उनकी मृत्यु होने तक लटकाया जाए।

अदालत ने दोष सिद्ध प्लाटून कमांडर रामाकांत दीक्षित, उपनिरीक्षक नसीम अहमद, उपनिरीक्षक मंगला सिंह, उपनिरीक्षक परवेज हुसैन एवं उपनिरीक्षक राजेन्द्र प्रसाद सिंह को हत्या के षडयंत्र का दोषी पाते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दोष सिद्ध सभी आरोपियों पर अलग से जुर्माना भी ठोका है।

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अदालत ने अपने 19 पृष्ठीय विस्तृत आदेश में जहां एक ओर मृत्युदंड के आरोपियों के कृत्य एवं आचारण पर गंभीर टिप्पणी की है बल्कि उनके द्वारा किए गए हत्या के कृत्य की विरलतम श्रेणी का अपराध किया जाना कहा है। अदालत ने कहा है कि यद्यपि सभी आरोपी पुलिसकर्मी हैं तथा इस समय वह वृद्ध अथवा बीमार अथवा चलने फिरने में असमर्थ हैं लेकिन जिनकी हत्याएं की गई हैं उनका क्या अपराध था? अदालत यह समझती है कि समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि यह न्याय का देश है।

अदालत ने बचाव पक्ष की सभी दलीलों को नकारते हुए कहा कि अगर अभियुक्तों को अपराध के अनुसार सजा नहीं दी जाती है तो अदालत अपना कर्तव्य करने में असफल होगा। अभियुक्तों का कृत्य समाज के विरुद्ध है। इस हमले में वीभत्स व अमानवीय तरीके से हत्याएं की गई हैं। योजनाबद्ध तरीके से पुलिस बल ने अपने अधिकारी की हत्या की बाद में लोगों में गलत संदेश एवं दिखावे के लिए बारह ग्रामीणों की हत्या कर फर्जी मुठभेड़ दिखा दी। इस घटना में गोली लगने के बाद क्षेत्राधिकारी के.पी. सिंह को समय रहते उचित चिकित्सा सुविधा भी मुहैया नहीं कराई गई।

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अदालत ने कहा कि मामले में अभियुक्तों को सजा के प्रश्न पर सुनने के बाद उनकी आयु पारिवारिक पृष्ठभूमि, आपराधिक इतिहास एवं आचरण पर विचार किया। इस मामले को विरलतम श्रेणी के अपराध का होने पर विचार करना होगा क्योंकि अभियुक्तों ने क्षेत्राधिकारी स्तर के अधिकारी एवं ग्रामीणों की योजनाबद्ध तरीके से हत्या की है। लिहाजा मामला विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है।

अदालत ने दोष सिद्ध पुलिस कर्मियों के आचरण पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि सामान्य व्यक्ति द्वारा इस प्रकार की हत्या की जाती तब मामले की स्थित अलग होती परंतु इस मामले में पुलिस कर्मियों ने फर्जी मुठभेड़ में लोगों की जघन्य हत्याएं की हैं। लिहाजा अदालत की राय में कठोर दंड इस आधार पर देना चाहिए क्योंकि सभी पुलिस कर्मी विधि के ज्ञान के अतिरिक्त अपने कर्तव्यों के प्रति भलीभांति अवगत थे।