FARRUKHABAD : प्रदेश सरकार द्वारा जनता की समस्याओं के त्वरित निस्तारण के लिए बनाया गया तहसील दिवस कार्यक्रम ध्वस्त होने की कगार पर पहुंचता जा रहा है। विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियो की मिलीभगत के चलते तहसील दिवसों पर आने वाले अधिकांश फरियादियों की शिकायतें पंजीकृत किये बिना ही प्रार्थनापत्र ले लिये जाते हैं। बाद में न ही शिकायत मिलती है और न ही शिकायत का निस्तारण। विपरीत मौसम में दूर दराज से आने वाले फरियादी न्याय की आस लिये दौड़ कर आने के बावजूद निराश ही लौटता है। बेशर्मी की हद देखिये कि अब तो पंजीकरण पटल पर बैठा लिपिक ही फरियादी को यह कह कर टरखा देता है कि शिकायत करने से काई फायदा तो है नहीं, सो क्यों बेवजह शिकायतों की संख्या बढ़ाओगे। ऐसे ही चले जाओ साहब को दे देना।
मजबूरी है कि कई बार तहसील पहुंचने के बाद भी जब फरियादी को नजर नहीं आती तो उसका मायूस होकर घर बैठना ही उचित है। शिकायतें दर्ज करने को लेकर वकायदा तहसील में एक रजिस्टर के साथ एक लिपिक की भी तैनाती है। लेकिन फरियादियों से लिपिक बेखौफ होकर कहता है कि कुछ होना तो है नहीं फिर शिकायत दर्ज करके संख्या बढ़ाने से क्या फायदा। बगैर पंजीकरण कराये ही साहब को दे दें।
तेज धूप में दूर दराज ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले पीड़ित, शोषित फरियादी एक उम्मीद की किरण लेकर तहसील पहुंचते हैं। कागज से लेकर प्रार्थनापत्र लिखवाने तक फरियादी के रुपये खर्च होते हैं। सम्बंधित अधिकारी तक पहुंचते पहुंचते किराये-भाड़े और आवेदन पत्र टाइप कराई तक तकरीबन 50 से 100 रुपये तक का खर्चा तो आना लाजमी है। तहसील पहुंचने पर कानूनन उसकी शिकायत तहसील दिवस के शिकायत रजिस्टर पर दर्ज होनी चाहिए। लेकिन कुछ पढ़े-लिखे या होशियार फरियादियों के अलावा अन्य फरियादियों की शिकायत को बगैर रजिस्टरर्ड किये ही टरका दिया जाता है। स्थिति यह है कि पंजीकरण पटल पर मौजूद लिपिक संजय चौरसिया ने तो न टलने वाले फरियादी से यहां तक कह दिया है कि क्या फायदा नंबर डलवाने से, कुछ होना तो है नहीं, बेवजह ही शिकायतों की संख्या बढ़वाओगे। इससे अच्छा है कि सीधे प्रार्थना पत्र साहब को दे देना, वह दिखवा लेंगे। गरीब और कम पढ़े लिखे ग्रामीण के लिये तो वह लिपिक ही किसी साहब से कम नहीं होता, सो बेचार बिना हुज्जत किये आगे बढ़ गया। संयोग से जेएनआई रिपोर्टर वहीं मौजूद था। अचानक रिपोर्टर पर नजर पड़ी तो संजय कुछ सकपकाया, परंतु फिर ढिटाई से मुस्कुराकर अपने ‘काम’ में लग गया। मजे की बात तो यह है कि तहसील दिवस की अध्यक्षता कर रहे अधिकारी महोदय भी शिकायतों पर पंजीकरण नंबर दर्ज न होने से अनजान बने रहते हैं। आज तो खैर डीएम पवन कुमार तहसील दिवस में आये नहीं, उनके स्थान पर एडीएम साहब अध्यक्षता करते रहे। परंतु जब डीएम स्वयं मौजूद रहते हैं तो अधिकारी उनके चारों ओर कर्मचारियों और चपरासियों का एक घेरा और खड़ा कर देते हैं जो फरियादियों को सीधे डीएम के पास जाने के बजाये संबंधित विभागीय अधिकारी की ओर धकेल देता है।
सवाल उठता है कि आखिर प्रशासन शिकायतों को तहसील दिवस रजिस्टर पर अंकित करने से घबराता क्यों है। दर असल शिकायतें रजिस्टर में दर्ज न होने से अधिकारियों और कर्मचारियों का सिर दर्द तो कम हो जाता है। जितनी अधिका शिकायतें होंगी उनकी इंटरनेट वेबसाइट पर अपलोडिंग में उतनी ही अधिक मेहनत करनी होगी। फिर उन शिकायतों को संबंधित विभागों और अधिकारियों को भेजना, उनके निस्तारण को चढ़ाना और समय से निस्तारण न आने या गलत निस्तारण पर ऊपर से डांट खाना। इन सब झंझटों से बचने के लिये सबसे अच्छा शार्टकट है कि शिकायतों को दर्ज ही न करो।
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तहसील सदर में एडीएम कमलेश कुमार की अध्यक्षता में हुए तहसील दिवस में तहसीलदार सदर राजेन्द्र चौधरी, क्षेत्राधिकारी नगर योगेन्द्र कुमार सिंह, शहर कोतवाल रूम सिंह यादव, थानाध्यक्ष मऊदरवाजा चन्द्रदेव सिंह के अलावा अन्य अधिकारियों ने फरियादियों की समस्यायें सुनीं।