श्रीनगर आत्मघाती हमले में हिजबुल आतंकियो के तार खालिस्तान कमांडो फोर्स से जुड़े थे

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1नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर के बेमिना में हुए आतंकी हमले में सुरक्षा बलों ने एक आतंकी को जिन्दा पकड़ा अबू तल्हा उर्फ़ जरगर नामक आतंकी की मदद एक सिख ने की थी ।[bannergarden id=”8″] परनदीप सिंह नामक ये सिख जम्मू कश्मीर के जो पीएचई विभाग में वेतन दैनिक भोगी है और उत्तरी कश्मीर में रहता है । आत्मघाती आतंकियों को पाक अधिकृत कश्मीर में ट्रेनिंग दी गई थी, उन्हें ट्रेंड करने वालों में लश्कर कमांडर फुरकान और हान्जला थे । आतंकियों ने इस हमले को अफजल गुरु के फांसी पर लटकाए जाने को लेकर अंजाम दिया था । हमले को अंजाम देने में आतंकियों ने काफी तैयारियां भी की थी जिसके लिए रेकी भी की गई थी ।

अबू तल्हा का सम्बन्ध लश्कर से है जबकि रेकी करने वाले गाइड का सम्बन्ध हिजबुल मुजाहिदीन से है । पुलिस ने इस हमले में आतंकियों की मदद करने वाले परनदीप सिंह को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की है । परनदीप सिंह बारामुला जिले के कांसीपोरा का रहने वाला है । वही बशीर अहमद उर्फ़ हारुन उत्तरी कश्मीर के उडी सेक्टर के सलामाबाद का रहने वाला है । अबू तल्हा को पुलिस ने हमले वाली जगह बेमिना से कुछ दुरी पर स्थित रामपोरा छत्ताबल से पकड़ा वही से बशीर का भी सुराग सुरक्षा और जांच एजेंसियों को मिला ।

बेमिना में पुलिस पब्लिक स्कूल पर हमला करने से पूर्व 11 मार्च को आत्मघाती आतंकी दस्ते के सभी सदस्य बशीर और परनदीप से 11 मार्च को मिले। इसके बाद यह आत्मघाती हमले में मारे गए दोनों आतंकी और अबु तल्हा 13 मार्च की सुबह ही एक वाहन में बेमिना पहुंचे। वहां दो आत्मघाती आतंकियों को छोड़ने के बाद बशीर ने तल्हा को अपने छत्ताबल स्थित अपने चाचा के घर पहुंचाया जहां से वह पकड़ा गया। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि तल्हा ने दावा किया है कि वह सिर्फ तीन आतंकी ही हमले के लिए आए ।

विदित है कि 9 मार्च 2011 को खालिस्तान कमांडो फोर्स (पंजवड़) के सदस्य कुख्यात आतंकी सोहन सिंह उर्फ सोहनजीत सिंह को पंजाब पुलिस की काउंटर इंटेलीजेंस की स्टेट स्पेशल ऑप्रेशन सेल ने गिरफ्तार किया था । उससे 0.32 बोर की पिस्तौल व पांच जिंदा कारतूस मिले थे। आरोपी के पाक में बसे आतंकी सरगना परमजीत सिंह पंजवड़ और रतनदीप सिंह से गहरे संबंध थे। उसे पंजाब में फिर से आतंकवाद फैलाने का जिम्मा सौंपा गया था। बेमिना हमले में एक सिख के शामिल होने से सुरक्षा और जाँच एजेंसियों के साथ खुफिया एजेंसियां भी सकते में है । 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के बाद एक तरह से ख़त्म हो चुके खालिस्तान आन्दोलन की याद ताज़ा करा दी । ख़ुफ़िया एजेंसियां अब इस पर भी ध्यान दे रही है कि कही इस पूरी साजिश के पीछे कही ठंडी पड़ चुकी खालिस्तान के पुराने लोगो का दिमाग तो नहीं ।