जनता पूछे– नक़ल रोकने वाले क्या पैसा खाते है?

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Editorनक़ल के लिए कुख्यात फर्रुखाबाद के स्कूलों में नक़ल हो रही है ये बात आम आदमी से लेकर गाँव का बच्चा बच्चा जनता है| मगर नक़ल रोकने के लिए बनाये गए सचल दस्तो, स्टेटिक मजिस्ट्रेट और जोनल मजिस्ट्रेट के हाथ कोई नकलची नहीं लग रहा| न ही इन नक़ल रोको दस्तो को सामूहिक नक़ल के कोई चिन्ह मिल रहे है| यही सचल दस्ते और नक़ल रोकने के लिए चार पहिया से दौड़ते मजिस्ट्रेट जब तलाशी का काम करके अगले स्कूल में निकल जाते हैं तो जानते है आस पास की जनता क्या कहती है- ” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है”|

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भारत में बोलने पर आजादी मौलिक अधिकारों के तहत आती है| हर किसी को अपनी अभिव्यक्ति की आजादी है मगर यही अभिव्यक्ति जब सवालिया हो जाए तो प्रशासन की निष्ठां पर संदेह होने लगता है| क्या वाकई राम राज आ गया है जो नक़ल बंद हो गयी है| सामान्य सी बात है जो सरकार वर्तमान में है उसके बहुत से शुभचिंतक जिले में नक़ल वाला स्कूल चलाते है| ऐसे में उन शुभचिंतको के स्कूलों में कौन सरकारी अफसर कार्यवाही करेगा| जिले के जिला विद्यालय निरीक्षक ने जिस स्कूल में बहुत कुछ पकड़ा उस पर कोई प्रभावी कार्यवाही तो नहीं दिखाई दी अलबत्ता कमालगंज के एक सामान्य से प्रबंधक वाले स्कूल के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा जरुर दर्ज कराया| रुतबे वाले और सरकार समर्थक प्रबंधको वाले स्कूलों में नक़ल पकड़ना और उस पर कार्यवाही करने में कतराना ये सवाल खड़ा करता है कि -” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है”|

मीडिया कर्मियों में जिला विद्यालय निरीक्षक और जिलाधिकारी को नक़ल के विडियो फूटेज भी दिखाए| स्कूल में प्रबन्धक परीक्षा के दौरान क्यूँ था? ये नियम विरोधी है| मगर जिला विद्यालय निरीक्षक अपने स्टेटिक मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर ही कार्यवाही करेंगे| ऐसा उनका मीडिया कर्मियों का जबाब था| अब जिस स्टेटिक मजिस्ट्रेट की ड्यूटी वाले कालेज में नक़ल के विडियो फूटेज मीडिया वाले लाये है, वो मजिस्ट्रेट खुद अपनी कब्र खोदने के लिए नक़ल होने की रिपोर्ट क्यूँ करेगा? जाहिर है जनता तो कहेगी ही- ” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है”|

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वैसे साहब बड़े इमानदार और कठोर कहे जाते और सुने जाते थे| मगर अब परीक्षा में क्या हो गया| शायद ये सब पिछले जिलाधिकारी मुथु कुमार स्वामी के कारण नजर आता था| उनके जाते ही वो कठोरपन और ईमानदारी लगता है हवा हो गयी है| क्या शिक्षा वाले साहब नहीं जानते कि नक़ल कैसे कैसे होती है? सब जानते है| मगर जब नक़ल पकड़ने वाले दस्ते ढोल पीटते और मोबाइल बजाते हुए स्कूल में जाते हो और स्कूल में मिठाई और नाश्ते की मेज से काजू, बर्फी और संतरे उड़ाते हो जनता तो कहेगी ही- ” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है”|

और अंत में
जनपद फर्रुखाबाद की बुनियाद ही नक़ल पर रखी है| यहाँ के बड़े बड़े मदन मोहन मालवीय का चोल ओढ़ने वाले नक़ल साम्रज्य की डीएम पर अरबपति बने है| सबसे बढ़िया और चोखा धंधा| अब तो मीडिया वाले भी इसी लाइन पर चल पड़े है| शिक्षा और उसकी गुणवत्ता की तो बात ही मत करिए| नक़ल करिए, पास होइये और दो चार लाख की घूस देकर बाबू, चपरासी, प्राइमरी स्कूल का मास्टर और सिपाही बनाईये| ऐसा ही हो रहा है इस जनपद में| पिछले 20 साल में फर्रुखाबाद जनपद से मात्र 2 आईएएस और 16 पीसीएस/पीपीएस, 12 बैंक अफसर और 9 आर्मी अफसर बने है| इनमे से केवल तीन इन स्कूलों में पढ़े थे बाकी के नहीं| 20 साल में 7 लाख बच्चो ने हाई स्कूल क्रास किया है| जिसमे से केवल 27 सरकारी अफसर बन पाए| बाकी के क्या बने.. नेता, ठेकेदार, चपरासी, बाबू, स्कूल के मास्टर, पुलिस या फ़ौज में सिपाही| मगर 20 साल पहले जो यादवजी, कठेरिया जी, ठाकुर साहब साइकिल पर थे अब मर्सिडीज पर है| वातानुकूलित घरो दफ्तरों में रहते है| उनके यहाँ पैसे देकर नक़ल करके पास हुए अब इन्ही यादवजी कठेरिया जी और ठाकुर साहब के यहाँ चपरासी, बाबू और ठेकेदारी करते है|

अब अगर जनता जागरूक होकर बोलने लगी है और ये कह रही है कि- ” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है” तो किसका किसका मुह बंद कर लोगे| क्या वे सब घोर भ्रष्टाचार के पैसे से अपने बच्चो की परवरिश नहीं कर रहे है| इसका परिणाम बहुत बुरा हो सकता है| क्योकि अब दिन दूर नहीं कि कल को उनके बच्चे से कोई स्कूल का दोस्त बोले- तुम्हारे पापा के बारे में तो लोग कह रहे थे- ” ये सब भी नक़ल की कमाई का पैसा खाते है”| क्योंकि पापा नहीं जानते कि बच्चे फेसबुक और इंटरनेट देख रहे है और इंटरनेट पर सब छप रहा है|

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