FARRUKHABAD : केन्द्र व राज्य सरकार सर्व शिक्षा अभियान पर लाखों करोड़ो रुपया पानी की तरह बहाये जा रही है, इसके साथ ही जनपद प्रशासन भी सर्वशिक्षा अभियान व बाल अधिकारों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन आज भी सैकड़ों नौनिहालों का बचपन शहर के गैराज, होटलों, ढावों पर उस्ताद की गालियों के बीच तप रहा है। शिक्षा से कोसों दूर इन नौनिहालों को अपनी व अपने परिवार की पेट की आग बुझाने के लिए प्लेटें धोने से लेकर गैराजों पर ट्रकों के टायर साफ करने के अलावा और न जाने कितने जोखिम भरे काम करने को मजबूर होना पड़ रहा है।
जनपद में खानापूरी के लिए भले ही समय समय पर बाल मजदूर रोकने के लिए कागजों पर अभियान चलाये गये हों, लेकिन शहर में आज भी सैकड़ों की संख्या में बाल मजदूर स्कूल न जाकर गैराज व होटलों, ढावों पर काम करने के लिए मजबूर हैं। हकीकत को यदि देखा जाये तो शहर के लगभग हर ढावे पर छोटू, गोलू, मोटू, भीखा नाम के छोटे छोटे बच्चे प्लेटें धोते मिल जायेंगे। इन बच्चों को होटल व ढावा मालिक मात्र 30 से 40 रुपये प्रति दिन की मजदूरी व बची हुई रोटी खाने पर ही रखते हैं। घर की पतली हालत को देखते हुए यह छोटू, मोटू, गोलू 30 और 40 रुपये में ही अपने बचपन को दाव पर लगाकर अपना व परिवार का पेट पालने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
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वहीं दूसरी तरफ शासन प्रशासन 14 वर्ष तक के बच्चों की अनिवार्य शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। अनिवार्य शिक्षा के नाम पर करोड़ों का बजट हड़प हो जाता है। लेकिन इस बजट से सर्वाधिक जिस वर्ग को लाभ होना चाहिए उसे उसका एक प्रतिशत भी लाभ पहुंचता दिखायी नहीं दे रहा है। देखने वाली बात है कि सरकारी स्कूलों गुणवत्तापूर्ण शिक्षा न होने की बजह से अमीर अपने बच्चों को प्राइमरी में न भेजकर मान्टेसरी स्कूलों में पढ़ाते हैं। प्राइमरी स्कूलों में मात्र गरीबों के बच्चे ही पढ़ने इस समय जा रहे हैं उनके नाम पर भी न जाने कितने घपले घोटाले खुलेआम किये जा रहे हैं। स्कूल बिल्डिंग में घोटाला, ड्रेसों के नाम पर घोटाला, कुर्सी मेज में घोटाला, छात्रवृत्ति में घोटाला, मिड डे मील में घोटाला, यहां तक कि अध्यापक चाक डस्टर तक में घोटाला करने में नहीं चूक रहे हैं। वहीं शिक्षा विभाग के सम्बंधित अधिकारी भी इस घपले घोटाले में बराबर के भागीदार रहते हैं। यही कारण है कि गरीबों के बच्चे आज भी कूड़े कचरे के ढेरों में अपना भविष्य ढूंढ रहे हैं और सर्व शिक्षा अभियान की प्रदेश में डुगडुगी पिटवायी जा रही है।
शहर के ही ठंड़ी सड़क पर स्थित ऐसी कोई भी गैरेज नहीं है जहां पर एक से दो बाल मजदूर न हो। बाइक रिपेयरिंग की दुकानों पर भी धडल्ले से बाल मजदूरों से काम करवाया जा रहा है। यहां तक कि प्रशासनिक भवनों में ही बाल मजदूरों को चाय बांटते हुए देखा जा सकता है। वह भी सर्व शिक्षा अभियान के तहत बांटी जाने वाली स्कूल ड्रेस में। लेकिन जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों का मन कमीशनखोरी में इतना रम चुका है कि उन्हें इन बाल मजदूरों का मिटता हुआ बचपन धुंधला नजर आता है।