अठन्नी के चक्कर में 32 साल से अदालत के फेरे लगा रहा नन्हकू

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courtफर्रुखाबाद: कभी-कभी ऐसी घटनायें व्यक्ति के जीवन में घट जाती हैं जिनका खामियाजा उनको ताउम्र भुगतना पड़ता है। चाहे वह मामला पुलिस का हो या अदालत का और जब पुलिस के पंजे से छूटने के बाद व्यक्ति कलेक्ट्रेट परिसर में अभियुक्त बनकर पहुंचता है तो फिर उसे किस तरह से और कितने दिनों तक वहां अभियुक्त बनकर आना पड़ेगा यह खुद वह नहीं जानता। झूठे वादों और दाव पेंचों के पचड़ों में पड़कर अच्छा खासा जीवन नर्क बन जाता है। आदमी चाह कर भी इससे छुटकारा नहीं पा सकता और जब पाने की प्रयास तेज करता है तो मामला अटकता है कि अभी केस चल रहा है। एक ऐसा ही केस फतेहगढ़ की अदालत में बीते 32 साल से चल रहा है। जिसमें विवाद महज अठन्नी यानी 50 पैसे की तहबजारी को लेकर हुई मारपीट का है। 32 साल गुजर जाने के बाद भी इस घटना में अभियुक्त बना नन्हकू चक्कर काट काट कर जवानी से बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच गया है लेकिन अभी फैसला होना बाकी है।

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सन 1981 में मऊदरवाजा थाना क्षेत्र के भीकमपुरा के निकट चुंगी के विवाद में कुछ दुकानदारों को ऐसा कानूनी दाव पेंच में फांसा कि उनका पूरा जीवन ही अदालत के चक्कर काटने में निकल गया। हुआ यूं कि रमेश राठौर के अलावा ननकू उर्फ राम निवास निवासी भीकमपुरा नरेश गुप्ता, रामलाल आदि दुकान चलाते थे। जिसमें ननकू गल्ले का आढ़ती था। रामलाल चाय का खोखा रखे हुए था। तकरीबन 32 साल पूर्व इन लोगों के साथ ऐसी एक घटना घटी जिसने उनका जीवन ही नर्क बना दिया। इन्हें यह नहीं मालूम था कि इस छोटे से विवाद का दंश नासूर बनकर उनका पूरा जीवन ही उजाड़ देगा। उक्त लोगों के साथ अठन्नी की चुंगी को लेकर चुंगी कर्मियों से मारपीट हो गयी। मारपीट भी कोई विशेष नहीं हुई। चुंगी कर्मियों की तरफ से रमेश राठौर, ननकू उर्फ रामनिवास, नरेश गुप्ता, रामलाल के अलावा एक अन्य अज्ञात के विरुद्व थाना मऊदरवाजा में सन 1981 में चुंगी की अठन्नी न देने के विवाद में मारपीट करने को लेकर धारा 323, 504 में मुकदमा पंजीकृत किया गया और यहीं से शुरू हुआ दुकानदारों के जीवन में कानूनी दाव पेंच का खेल।

32 साल गुजर गये अदालत में पेश हो हो कर रामलाल व नरेश गुप्ता चल बसे। अज्ञात युवक अभी भी फरार हैं। रमेश राठौर को अदालत ने 2009 में केस से वरी कर दिया। लेकिन ननकू उर्फ रामनिवास का जीवन उस अठन्नी ने आज भी नर्क बना रखा है। ननकू अब बुजुर्ग हो गये हैं। न कानों से सुनाई देता है और न आंखों से ठीक से दिखायी। कई बार जब अदालत में तारीख पड़ने के बाद पेश नहीं हुए तो उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। फिलहाल ननकू भी अब कब्र में पैर लटकाये हुए हैं। लेकिन कानूनी कार्यवाही उनका पीछा 32 सालों के बाद भी छोड़ने को तैयार नहीं। बड़ा सवाल यह है कि आखिर अठन्नी की मारपीट ने ननकू का पूरा जीवन ही नर्क की दहलीज पर खड़ा कर दिया। क्या यह कानूनी दाव पेंच नहीं? ऐसे न जाने कितने कानूनी दाव पेंच के चक्कर में पड़कर अपना जीवन ही गुजार चुके हैं।