फर्रुखाबाद: जैसे खिलखिलाती धूम में अचानक बारिश हो जाये। कुछ ऐसा ही नजार देखने को मिला जब सतीश को बधाई देने को उनका एक पुराना साथी गले से लिपट गया। दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट खिली हुई थी, और दोनों की आंखो से आंसू भी छलक रहे थे। इस मंजर को देखने वालों की आंख के कोने भी नम हो गये थे।
सतीश दीक्षित आज भले ही कैबिनेट मंत्री का दर्जा पा गये हों पर इसी शहर में उनका लड़कपन गुजरा है, यहीं वह जवा हुए और यहीं उन्होंने पत्रकारिता और राजनैतिक क्षेत्रों में ऊंचाइयों छुआ है। सो शहर की हर गली, हर नुक्कड़ से उनकी पुरनी पहचान है। हमेशा रिक्शे से चलने की आदत के चलते शहर के आधे से ज्यादा रिक्शा चालाकों से उनकी दोस्ती है। उम्र के बंधन से बेनयाज उनकी हर आयु वर्ग के लोगों से शनासाई है। मंगलवार को पहली बार लालबत्ती कार लेकर शहर लौटे तो ऐसे ही हजारों लोग उनसे मिलकर उनको छूकर बधाई देने को टूट पड़े। [bannergarden id=”8″] एक गहमागहमी में एक मंजर यह भी आया कि लाल दरवाजे से कुछ आगे बढ़ते ही एक केसरिया साफा बांधे सरदारजी सतीश दीक्षित की ओर आगे बढ़े। दोनों की नजरें टकराईं। पुरानी पहचान की चमक दोनों की आंखों में साफ पढ़ी जा सकती थी। सतीश दीक्षित सपाइयों का रेला चीरकर अपने दोस्त की तरफ लपके। दोनों के चेहरों से खुशी टपकी पड़ रही थी। दोनों ही प्रसन्नता के अतिरेक में एक दूसरे से लिपट गये। गले मिलने से पहले जहां दोनों की आंखों से खुशी टपक रही थी, वहीं गले मिलते ही दोनों की आंखे छलक पड़ीं। अजीब मंजर था, जिसने भी देखा, उसकी आंख का कोना नम हो गया।