छोटी छोटी रिश्वत देकर बुला ली बड़ी मुसीबत

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फर्रुखाबाद: रिश्वतखोरी और फर्जीवाड़े की देन भुगत रहे है फर्रुखाबाद के निवासी| एक तरफ अतिक्रमण हटाओ अभियान तो दूसरी तरफ प्रदूषण बंद करने के लिए बंद होते कारखाने| एक तरफ शुष्क शौचालय तोड़ते सरकारी नौकरशाही तो दूसरी तरफ बेतरततीब बसता नगर| चंद रुपयों की रिश्वत लेकर फर्जी रिपोर्टिंग करते सरकारी कर्मचारी और अफसर| ये सब इसी की देन है| और इन सब मुसीबतों का इन्तजार करता नेता| शिकार कुल मिलाकर आम आदमी ही होता रहा है और होगा| कारखाने बंद होंगे तो आम आदमी के घर का चूल्हा बुझेगा| अतिक्रमण हटेगा तो आम गरीब आदमी की ही छत छिनेगी| शौचालय टूटेगा तो भी गरीब ही पिसेगा| न सरकारी कर्मचारी का कुछ बिगड़ेगा, न नेता का और न पूंजीपति का| बिगड़ेगा तो आम आदमी का| पहली गलती पर सरकारी कर्मी को रिश्वत देकर बचे थे मगर अबकी बच न पाए|

रिशत खाकर फर्जी रिपोर्ट भेजते रहे सरकारी कर्मी-
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद शुष्क शौचालय तोड़े गए| ये बात कई साल पुरानी हो गयी| शौचालय इसलिए तोड़े गए ताकि सर पर मैला धोने जैसी प्रथा का मूल नाश हो सके| ये पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की सोच थी, जिसे मूल रूप देने में कई साल लग गए| हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक का दखल हुआ मगर फिर भी शुष्क शौचालय नहीं टूटे| हर बार जिलाधिकारी के माध्यम से सम्बन्धित अधिकारी ने शासन को झूठी रिपोर्ट भेजी- ” शुष्क शौचालय तोड़ दिए गए”| ऐसा नहीं कि सरकारी नौकर को मालूम नहीं था| मगर वो तो चंद रुपये लेकर गृह स्वामी को वक्श आया था| अब क्या करेगा| रिशत भी गयी और शौचालय भी टूट गया| मगर न झूठी रिपोर्ट भेजने वालों के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई और न ही रिश्वत वसूलने वाले निचली पायदान के सरकारी नौकर की जिसे चिन्हित करके शौचालय तुडवाने थे| जितनी बार शुष्क शुचालय तोड़ने का अभियान आया शकीला बानो ने 50 रुपये दिए थे शौचालय न तोड़ने के लिए| चार बार रिश्वत देने के बाद भी स्थायी हल नहीं निकला, और टूट गया|
प्रदुषण फैलाते कारखाने-
हाल यही कुछ कारखानों से निकली रासायनिक बीमारी से गंगा को साफ़ करने के अभियान का है| चंद पालीथीन गंगा से बटोर कर अखबारों में तस्वीरे छपवाने में जिलाधिकारी से लेकर नगर के कथित समाजसेवियो ने खूब फ़ाइल बनायीं| वही फाइलें अदालत तक गयी| गंगा सफाई अभियान की प्रगति रिपोर्ट के लिए| मगर गंगा में गंदगी छोड़ता कोई नाला बंद न हुआ| प्रदुषण बोर्ड ने कारखानों को दी गयी अपनी अनापत्ति समाप्त कर दी| ताकि कारखाने गन्दा पानी गंगा में न छोड़े| मगर जिनके कंधो पर इसे लागू करवाने की जिम्मेदारी थी वे माहवार रिश्वत वसूलते रहे इन कारखानों से| अब फर्रुखाबाद के छपाई कारखाने बंद हुए तो कहे की चिल्ल- पो? छोटी छोटी रिश्वत से बड़ी मुसीबत बुलाने का खेल तो खुद कारखानेदारो ने खेला| रिश्वत देने की जगह जल शोधक यंत्र लगाये होते तो न छपाई कारखानों पर ताला लगता न मजदूर घर बैठता|
अतिक्रमण और अवैध निर्माण-
अतिक्रमण हटाओ अभियान भी अदालत के आदेश पर ही चलता है| कार्पोरेटर या अधिकारी सामान्य रूप से अतिक्रमण नहीं रोकते| नगर में घूस देकर कहीं भी अतिक्रमण करो| गलत निर्माण करो| अवैध कालोनी बसाओ| आजकल ठंडी सड़क पर और घटियाघाट के आसपास ये खेल खूब चल रहा है| ठंडी सड़क पर गोदाम का नक्षा पास कराकर कर कोई होटल बना रहा है तो कोई मेरिज हाल| नक्स कहीं का पास कराया निर्माण कहीं करा रहा है| बहुत खूब चल रहा है निर्माण| मगर अभी किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी की नजर नहीं जाएगी| निर्माण पूरा होते ही नोटिस फिर रिश्वत से फ़ाइल बंद| फिर नया अफसर आएगा और वो भी यही करेगा| मगर न अवैध निर्माण होना बंद होगा| न अतिक्रमण| न कारखाने बंद होंगे न कोई अवैध काम| सब चलता है, सब चलेगा| अफसर कहता है अवैधानिकता ही उपरी कमाई का जरिया है|
ये बंद नहीं होगा|
अब आ गए नेताजी-
अब मजदूर बेकार हो रहा है| खबर अख़बार में छप रही है| वेबसाइट यानि न्यू मीडिया में भी आने लगी है| नेता जी को वोट बैंक की याद आने लगी| नेताजी ढोलक के दोनों पल्ले बजा लेते है| बड़े नेताओ के साथ गंगा जी की आरती उतारते है| गंगा सफाई पर भाषण झाड़ते है| मजदूर बेकार हो गया तो सरकार को कोसते है मगर रिश्वत देकर प्रदुषण गंगा में बहाने का विरोध नहीं करते| चंदा देने वाले कारखाने के मालिक भी तो उसकी दुधारू गाय है| नेता और जंगल की लोमड़ी में ये खास एक जैसे आदत है| बिना शिकार की चाहत के माद से बाहर नहीं निकलता| नेता नहीं निकलता तो कौन सा पहाड़ टूट रहा है|