गली गली में चल रहा प्रदूषण का कारोबार, प्रशासन बेखबर

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फर्रुखाबाद: जनपद में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर बीते कई दिनों से अभियान चलाकर कारखाने बंद कराये जा रहे हैं लेकिन अभी विभागीय अधिकारियों सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों को यह नहीं पता है कि जनपद में कुल कितने कारखाने चल रहे हैं। इसे विभागीय लापरवाही कहें या अधिकारियों व कर्मचारियों की भ्रष्ट कारगुजारी। जबकि इन्हीं अधिकारियों द्वारा फैक्ट्री मालिकों को बकायदा लाइसेंस भी जारी किये जाते हैं लेकिन इनके पास उनका डाटा सुरक्षित नहीं है यह लोगों के जेहन में पचता नहीं दिखायी दे रहा है।

इलाहाबाद कुम्भ मेले से 10 दिन पूर्व से ही जनपद के सभी कारखाने कागजों में बंद करा दिये गये लेकिन जब इसकी हकीकत जानने के लिए बीते तीन दिनों से अधिकारियों ने अभियान चलाया तो कई चुनिंदा कारखाने अभी भी चलते मिले। जिस पर उन्हें मात्र नोटिस जारी करके कार्यवाही के नाम पर इतिश्री कर ली गयी। वहीं जनपद में गली गली व मोहल्ले में छपाई उद्योग चलाये जा रहे हैं। जिनसे भारी मात्रा में प्रदूषित पानी प्रवाहित करने के अलावा गैसें अवमुक्त की जा रहीं हैं लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों व प्रदूषण कन्ट्रोल बोर्ड को कोई पता नहीं है।

जहां एक तरफ जनपद में मात्र छपाई कारखानों को ही बंद कराकर प्रदूषणमुक्त गंगा बनाने पर जोर दिया गया वहीं प्लास्टिक की थैलियों सहित तमाम पॉलीथिन हर दुकान व चार पहिया ठेले पर मिल जायेंगी। जनपद में धड़ल्ले से पॉलीथिन प्रयोग की जा रही है। जिस पर कोई अधिकारी व प्रदूषण कन्ट्रोलबोर्ड बोलने तक को तैयार नहीं है।

वहीं जनपद में आधा सैकड़ा के लगभग दालमोठ कारखाने चलाये जा रहे हैं। जोकि भीड़ भरे बाजारों व बस्तियों में स्थित है। इन दालमोठ फैक्ट्रियों से प्रदूषित धुआं के अलावा तमाम गंदगी नालियों में बहा दी जाती है। जिससे आस पास रहने वाले लोग भी काफी परेशान रहते हैं।

जबकि जनपद के प्रशासनिक अधिकारियों ने मात्र छपाई उद्योगों को ही अपना निशाना बनाया। उसमें भी उनके पास सभी छपाई कारखानों की लिस्ट मौजूद नहीं है। हर जिम्मेदार अधिकारी दूसरे अधिकारी पर जिम्मेदारी टालने में लगा है। जहां एक तरफ तहसीलदार के पास मौजूद लिस्ट में मात्र 16 कारखाने हैं तो प्रदूषण कन्ट्रोल बोर्ड के पास लिस्ट में मात्र 39 छपाई उद्योग संचालित हैं। वहीं यदि विभागीय सूत्रों की मानें तो जनपद में 76 फैक्ट्रियां धड़ल्ले से मानक के विपरीत चल रहीं है। जिनमें न ही कोई वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया और न ही प्रदूषण रहित अन्य कोई उपाय किये गये है। जिससे आने वाले समय में लोगों को इनका घातक परिणाम भुगतना पड़ सकता है।