फर्रुखाबाद: आम जिंदगी में हमारा जिन चोर-डाकू या हत्यारों से सामना होता है, उनसे कहीं अधिक खतरनाक हैं समाज में उच्च पदों पर बैठे सफेद-पोश अपराधी। परंतु चिंता का विषय है कि इनसे निबटने की व्यवस्था अभी हमारे सभ्य समाज ने पूरी तरह से विकसित नहीं की है। सोमवार को बद्रीविशाल डिग्रीकालेज में आयोजित एक गोष्ठी में लगभग सारे वक्ता इसी तथ्य के इर्द-गिर्द घूमते नजर आये।
आम जिंदगी में अपराधी शब्द के सामने आते ही हमारे सामने किसी चोर, डकैत या हत्यारे की छवि उभर का सामने आ जाती है। एक चेन छिन जाती है तो लोग पागलों की तरह पीड़ित महिला की अंगुली की दिशा में भाग खड़े होते हैं। एक मवाली किसी जगह कट्टे से फायर कर दे तो भगदड़ मच जाती है। डकैतों के आ जाने की अफवाह मात्र से लोग सिहर जाते हैं। परंतु इनसे कहीं ज्यादा खतरनाक सफेद-पोश अपराधी हमारे समाज में हमारे साथ उठते-बैठते और मिलते हैं, परंतु हम उनकी ओर ध्यान भी नहीं देते। शहर के सारे चोर मिलकर जितने रुपये की चोरी एक माह में नहीं कर पाते उससे कहीं अधिक धनराशि एक शिक्षा माफिया छात्रवृत्ति या फीस वापसी की धनराशि में घोटाला कर हड़प जाता है, और हम उफ भी नहीं करते। इस जैसे जितने शिक्षा माफिया जितना पैसा अपने पूरे जीवन में नहीं हड़प पाता उससे कहीं अधिक एक भ्रष्ट मंत्री एक झटके में स्विस बैंक में जमा करा देता है। बात केवल आर्थिक लूट की नहीं है। महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग लगातार अपने अपने अधिकार क्षेत्र से जुड़े मामलों में भ्रष्टाचार कर रहे हैं। कोई नकल कराकर या परीक्षापत्र आउट कराकर छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है तो कोई न्याय के आसन पर बैठ कर अपराधियों को दोष मुक्त कर रहा है। यह विचार सोमवार को शहर के बद्रीविशाल डिग्री कालेज में समाजशास्त्र विभाग की ओर से आयोजित गोष्ठी में निकल कर सामने आये।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा. एमसी शुक्ला ने कहा कि पहले माना जाता था कि अपराध समाज के निम्न तबके के अभावों से ग्रस्त लोग ही किया करते हैं, परंतु अब परिभाषा बदलने लगी है। इस संबंध में डा. निर्मोही ने कहा कि यही कारण है कि यह सफेदपाश अपराधी देश में लोकपाल व्यवस्था को लागू नहीं होने देना चाहते हैं। क्योंकि इसमें तो उनके ही फंस जाने की संभावना है। उन्होंने तो भोले भाले लोगों को आडंबरों और भ्रांतियों में फंसाने के लिये धर्माचार्यों को भी निशाने पर लिया।