फर्रुखाबाद: जुलूस में शामिल लोगों ने जैसे ही मोमबत्ती को जलाया रमन के पिता प्रकाश व बहन सुमन की आंखों से आंसुओं की धार बह चली। प्रकाश जुलूस खत्म होने के बाद अनायास ही बोल पड़ा कि मेरा बेटा तो चला गया कम से कम उसको न्याय मिल जाये तो उसकी आत्माओं को शांती मिलेगी। यह नजारा देख मौके पर मौजूद लोग भी अपनी आंखें गीली होने से नहीं बचा सके। पूरा माहौल गमगीन था। हर आदमी की जुवान पर न्याय मिलने की बात दिखायी दी।
देर शाम गढ़िया निवासी रामप्रकाश पाल को सांत्वना देने के लिए इकट्ठे हुए आस पास के कई ग्रामों के लोगों ने सांत्वना के साथ-साथ रमन के परिजनों को साथ लेकर गढ़िया बेबर मार्ग पर मोमबत्ती जलाकर कैन्डिल मार्च व मौन जुलूस निकाला। जुलूस में कई सैकड़ा लोग शामिल हुए। जिसमें महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। बीते दिनों गला काटकर हत्या कर देने के कारण पांच वर्षीय मासूम रमन पाल की मौत हो गयी थी। उसका शव हत्यारे ने बघार नाले पर फेंक दिया था। जिसको न्याय दिलाने के लिए गढ़िया के ग्रामीणों के अलावा अन्य क्षेत्रीय ग्रामीणों ने कमर कस ली है।
कैन्डिल जुलूस खत्म होने के बाद मृतक रमन की मां सुदामा व बहन सुमन ने फफकते हुए कहा कि मेरे मासूम भाई व बेटे ने किसी का क्या बिगाड़ा था जो लोगों ने उसकी इस तरह से दुर्दशा कर दी। रमन के समर्थन में उमड़ा जन शैलाव मौन जुलूस के बाद कुछ कर गुजरने को उतारू लग रहा था। वहीं ग्रामीणों ने एलान कर दिया कि अगर खुलासा शीघ्र नहीं होता है तो ग्रामीण आंदोलन पर उतारू हो जायेंगे। कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पुलिस पकड़े गये आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है। तभी उसने अभी तक उनके बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दी। ग्रामीणों का आरोप है कि कुछ चर्चित लोग पकड़े गये आरोपियों की पैरवी में जुटे हुए हैं।
गुमशुम सा बैठा प्रकाश न ही खाने की फिक्र है न पीने की। उसके तो बस वही राजस्थान के महाराज का मंदिर दिमाग में घूम रहा है और अक्सर प्रकाश मुहं से निकाल रहा है कि अगर बेटे को दुनिया से उठाना ही था तो फिर उसे भेजा ही क्यों। रामप्रकाश को इंतजार है तो बस रमन को न्याय मिलने का।
मौन जुलूस में मृतक रमन के पिता रामप्रकाश, मां सुदामा, बहन सुमन पाल के अलावा ग्राम विजाधरपुर निवासी आशाराम पाल, रतीराम व सुनील भाऊपुर, आशाराम, वेदराम निवासी आरमपुर, डा0 रक्षपाल, कृष्णपाल राजपूत, रघुवीर सिंह राजपूत, डा0 नरेन्द्र, अजय, श्याम सिंह, रामपाल, सुरेन्द्र, जयराम, कांती, ज्ञानदेवी, प्रेमा, सरला, धनदेवी, मीरादेवी, शकुंतला आदि दो सैकड़ा से अधिक ग्रामीण शामिल रहे।