निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले का रास्ता साफ

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नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत निजी स्कूलों की पहली कक्षा की 25 फीसदी सीटों पर पड़ोस के ‘अलाभित समूह’ और ‘दुर्बल वर्ग’ के बच्चों को दाखिला दिलाने का रास्ता साफ हो गया है। कैबिनेट ने इस मकसद से मंगलवार को ‘अलाभित समूह’ और ‘दुर्बल आय’ वर्ग के बच्चों की परिभाषाएं तय कर दी हैं।
कैबिनेट की ओर से मंजूर प्रस्ताव के मुताबिक ‘अलाभित समूह’ के तहत नि:शक्त अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, निराश्रित बेघर बच्चों के अलावा एचआइवी या कैंसर पीड़ित माता-पिता के बच्चों को शामिल किया गया है। वहीं ‘दुर्बल आय’ वर्ग में उन बच्चों को शामिल किया गया है जिनके माता-पिता या संरक्षक गरीबी रेखा के नीचे के कार्डधारक हैं या ग्राम्य विकास विभाग की सूची में शामिल हैं या वे विकलांगता/वृद्धावस्था/विधवा पेंशन पाते हैं या फिर उनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये तक है।
अलाभित समूह और दुर्बल आय वर्ग के छह से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को पड़ोस के राजकीय/परिषदीय या सहायता प्राप्त स्कूल में दाखिले का अधिकार होगा। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) द्वारा यह पाए जाने पर कि इन श्रेणियों के बच्चों को पड़ोस के राजकीय/परिषदीय या सहायता प्राप्त स्कूल में सीटों के अभाव में दाखिला नहीं मिल पा रहा है तो ऐसे बच्चों को निजी असहायतित स्कूलों की कक्षा एक की 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश पाने का अधिकार होगा। निजी स्कूलों में कक्षा एक की 25 प्रतिशत सीटों पर ‘दुर्बल आय’ वर्ग के उन बच्चों को दाखिले में वरीयता दी जाएगी जिनके माता-पिता या अभिभावक की वार्षिक आय 35,000 रुपये से कम होगी। इसके बाद बची सीटों पर 35,000 रुपये से अधिक लेकिन एक लाख रुपये तक की वार्षिक आय वालों के बच्चों को उनकी आय के आरोही क्रम में तैयार सूची के अनुसार प्रवेश दिया जाएगा।
अभिभावकों से इस बारे में प्रार्थना पत्र प्राप्त होने के बाद बीएसए पर अधिकतम 10 कार्य दिवसों में आदेश पारित करके ऐसे बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने का दायित्व होगा। इस सिलसिले में बीएसए की ओर से पांच दिनों के अंदर जिलाधिकारी के अनुमोदन के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाएगा। जिलाधिकारी को अधिकतम पांच दिनों में प्रकरण पर अंतिम निर्णय लेना होगा और बीएसए को इस बारे में अभिभावक को जानकारी देनी होगी।