फर्रुखाबाद: सिखलाईट रेजीमेंट के सैकड़ों सालों के शौर्यपूर्ण इतिहास के साक्षात दर्शन कर शुक्रवार को आर्मी स्कूल के छात्र अभिभूत रह गये।
सिखलाई रेजीमेंट का इतिहसा काफी पुराना है। ब्रिटिश काल में प्रथम विश्व युद्ध में बेहरीन प्रदर्शन के बावजूद अंग्रेजों ने 1933 में ‘सिख पायोनियर’ को भंग कर दिया था। द्वतीय विश्व युद्ध में फिर एक बार इसे संगठित किया गया। इस जाबांज फौज का नाम बदल कर सिखलाइट इनफैंर्टी रखा गया था। बर्मा पर दोबारा फतह ने एक बार इस फौज का नाम फिर रोशन कर दिया। दो विश्व युद्धों के दौरान अपने शौर्य के प्रदर्शन के बाद इस रेजीमेंट ने आजादी के बाद भारत पाक युद्ध के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई मौकों पर दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिये। बांगलादेश युद्ध व श्रीलंका में भी सिखलाई ने अपने जौहर खूब दिखाये।
फतेहगढ़ कैंट स्थित सिखलाईट इनफैंट्री रेजीमेंटल सेंटर में बने रेजीमेंट के भव्य म्यूज़ियम में इसके शौर्य पूर्ण इतिहास के साक्ष्य बड़े सलीके से सजाये गये हैं। शुक्रवार को सैन्य अधिकारियों ने आर्मी स्कूल के छात्रों को इस म्यूज़ियम को देखने को मौका दिया तो छात्र साक्षात इतिहास को अपने सामने देख अभिभूत रह गये।
रमदासिया सिख रेजीमेंट से सिख पायेनियर और सिखलाई रेजीमेंट तक के सफर के दौरान सैनिकों की समय के साथ बदलती वेश-भूषा में जीवंत पुतले देख छात्र दांतों तले अंगुलियां दबा गये। म्यूज़़ियम में दीवारों पर टंगे दुश्मनों से लूटे हथियार और रेजीमेंट की तोपों को दखकर छात्र हैरान थे। एक कोने में पुराने जमाने के टेलीफोन का माडल रखा था, तो एक शीशे के पारदर्शी शो-केस में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भागते समय छोड़ा गया ‘कुरान शरीफ’ पूरी श्रृद्धा के साथ सजा था। सैन्य अफसर छात्रों को एक-एक आइटम के ऐतिहासिक महत्व के बारे में बता रहे थे। इस अवसर पर छात्रों ने वहां पर मौजूद फौजियों से उनकी जीवनचर्या के बारे में भी कौतूहलपूर्वक जानकारी ली।
इस संबंध में लेफ्टिनेंट कर्नल मनीष जैन ने बताया कि इस कार्याक्रम का मुख्य उद्देश्य नयी पीढ़ी को सेना के गौरवशाली इतिहास से परिचित कराने के साथ-साथ उनमें सैन्य सेवा को कैरियर के तौर पर अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना भी था।