हाईटेक हो गया दीपावली का पर्व

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फर्रुखाबाद : भूमंडलीकरण के दौर के इस हाईटेक युग में अब प्रकाश का पर्व दीपावली भी हाईटेक हो गया है और परंपरागत मिट्टी के दीयों की प्रासंगिकता समाप्त होती जा रही है, क्योंकि इनका स्थान अब लड़ियां और बिजली के दीयों ने ले लिया है। लोग मिट्टी के दीयों की बजाए बिजली से चलने वाले दीये लेना अधिक पसंद कर रहे हैं।

शहर में मिट्टी के दीये बनाने और बेचने वालों की मानें तो अब गांव से लेकर शहर तक इन दीयों की मांग में पिछले कुछ सालों में जबरदस्त गिरावट आई है। मिट्टी के दीयों के निर्माता इसका कारण बिजली से जलने वाले दीयों और लड़ियों को मानते हैं। ये लोग अब परंपरागत व्यवसाय को छोड़कर दूसरे कार्यों में हाथ आजमा रहे हैं और अपने बच्चों को भी इससे दूर ही रहने की सलाह देते हैं।

नई बस्ती की दीया बनाने का काम करने वाली 70 वर्षीया विमला देवी ने कहा, ‘मिट्टी के दीयों की मांग अब नहीं होती है। बिजली से जलने वाले दीयों और लड़ियों ने सबसे अधिक हमारे धंधे को चौपट किया है। इन दीयों की मांग जितनी पहले होती थी अब उतनी नहीं हो रही है।

विमला ने यह भी कहा, ‘हमने अपने बच्चों (पौत्रों) को इस धंधे में नहीं आने दिया। हमने उन्हें अलग-अलग काम में लगाया है। क्योंकि इस धंधे में अब बरकत नहीं हो रही है और इससे गुजारा भी मुश्किल ही होता है। पहले दीपावली के समय में हमारे पास काम की कमी नहीं होती थी। अब मुश्किल से काम होता है।’’

शहर के बीबीगंज इलाके में दीयों का कारोबार करने वाले हरजीत सिंह ने कहा, ‘मैं बचपन से अपने पिता के साथ इस काम को कर रहा हूं। पिताजी अब नहीं हैं लेकिन हमने इस काम को बिल्कुल नहीं छोडा़ क्योंकि यह हमारे परिवार का परंपरागत काम है।’’
उन्होंने कहा कि इस हाईटेक युग में अब मेरे बच्चे साथ नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसमें आमदनी नहीं है। दूसरी ओर बिजली के सामानों के बाजार में आ जाने के कारण अब लोग दीयों को खरीदना पसंद नहीं करते हैं।उनका यह भी कहना है कि पिछले साल की तुलना में इस साल दीयों की बिक्री में तकरीबन 30 फीसदी की गिरावट आई है।

दूसरी ओर बिजली के सामानों के विक्रेता मुख्तियार सिंह का कहना है, ‘बिजली के ऐसे-ऐसे उपकरण अब बाजार में आ गए हैं जिन्होंने दीयों का स्थान ले लिया है।पहले तो शहर के लोग इन चीजों की खरीदारी करते थे लेकिन अब गांवों से आने वाले भी दीयों की बजाए बिजली से जलने वाले दीये और मोमबत्तियां खरीदते हैं।’

ग्राहकों का कहना है कि 40 रुपए में दीये भी खरीदे जाते हैं और इतने ही पैसों में लड़ियों का एक पैकेट भी मिल जाता है। अगर दीया जलाना है तो बिजली के दीये भी आपको उसी शक्ल में उसी कीमत पर मिल जाएंगे। दीये खरीदने के बाद उसमें तेल, बाती आदि डालने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा घरों में दीये जलाने पर कालिख भी लगती है। इसलिए बिजली के ये उपकरण इनकी तुलना में बेहतर हैं।

हालांकि बुजुर्ग ग्राहक सरदार सिंह का कहना है कि मिट्टी के दीयों का आदमी के जीवन में जो स्थान है, वह इन बिजली के उपकरणों का नहीं हो सकता। इस मौके पर मिट्टी के दीयों का अपना महत्व है।