केजरीवाल क्‍या समझें हमारा दर्द, कि ‘आम आदमी’ ने क्‍यों चुना था सलमान को

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फर्रुखाबाद: दिल्‍ली में बैठ कर बड़ी-बड़ी बाते करना, सनसनी की भूखी मीडिया के चौंधते कैमरों के सामने मुस्‍कुराना और मूल्‍यों के नाम पर सिर धुनने का नाटक करना आसान है। परंतु केजरीवाल जी, हमने सलमान खुर्शीद को अपना सांसद क्‍यों चुना यह दर्द समझ पाना जरा मुश्‍किल है, और शायद कभी समझ भी न पायें। आप क्‍या जानें कि हमारे सामने सांसद चुनने का विकल्‍प ही नहीं था। हमारे सामने तो अपने जनपद को अराजकता और राह चलती बहन-बेटियों को बलात्‍कार से बचा ले जाने के की कितनी बड़ी मजबूरी मुंह बाये खड़ी थी। विश्‍वास जानिये कि सलमान के जीतने पर हमें खुशी हरगिज नहीं हुई थी, परंतु हां हमने राहत की एक ठंडी सांस जरूर ली थी।

आज आप हमें, पूरे फर्रुखाबाद को मंच से और राष्‍ट्रीय चैनलों पर मुस्‍कुरा-मुस्‍कुरा कर गालियां दे रहे हैं, ताने दे रहे हैं। आपकी दुश्‍मनी का कारण कुछ भी हो सकता है, पर हम अभी भी आपको यह कैसे बता दें, कि अगले चुनाव में भी हमारे सामने सांसद चुनने का विकल्‍प होगा भी या नहीं, या फिर एक बार अपनी आबरू और घर-दुकान बचाने की मजबूरी सामने होगी।

अगर आपको याद हो कि 2009 के आम चुनाव में हमारे सामने सांसद चुनने के लिये विकल्‍प कितने सीमित थे। सलमान खुर्शीद के अलावा मुन्‍नू बाबू, नरेश अग्रवाल और मिथलेश अग्रवाल। मुन्‍नू बाबू और नरेश अग्रवाल का इतिहास हमारे सामने था। मुन्‍नू बाबू और नरेश अग्रवाल हमारे लिये पहले से जाने परखे नेता थे। उनके गुण दोष हम अच्‍छी तरह जानते थे। दोनों कई बार पार्टियां बदल चुके थे। दोनों का आज फिर अपनी पूर्व पार्टियों से नाता तक ही नहीं है। मिथलेश अग्रवाल ने आज तक कायमगंज नगर पालिका से बाहर निकल नहीं देखा था। उनकी छवि तो स्‍वच्‍छ थी परंतु एक तो उनकी कार्यकुशलता के बारे में शायद हम आश्‍वस्‍त नहीं थे और दूसरे कुछ उनकी पार्टी के नेताओं का भितरघात। बस एक ही विकल्‍प था सलमान खुर्शीद। जिससे आम आदमी को कोई लाभ नहीं तो कम से कम कोई खतरा नहीं था। अब बताइये कि क्‍या करता वह आम आदमी। अब आप कह रहे हैं कि मैं हूं आम आदमी। केवल टोपी पर लिख लेने से कोई आदमी नहीं हो जाता। अगर आप आम आदमी होते, तो शायद हमारा दर्द समझपाते। अगर हो सके तो अगले चुनाव से पहले हमें विकल्‍प दीजिये, और यह विश्‍वास भी कि आप की पार्टी के कितने सासंद चुन कर संसद तक जा पायेंगे।