फर्रुखाबाद: चरमरा चुकी जनपद की सुरक्षा व्यवस्था से जहां एक तरफ आम जनता का जीना दूभर हो गया है, जो जब चाहे, जहां चाहे, जिसे चाहे लूट व हत्या का शिकार बना लेता है। लेकिन अदालत तक कितने अपराधी पुलिस पकड़कर पहुंचाती है यह किसी से छिपा नहीं है। बीते एक वर्ष का रिकार्ड अगर खंगालें तो जनपद में 70 से अधिक हत्यायें, 60 से अधिक बड़ी लूट की बारदातों के अलावा चोरियों का तो कोई गिनती ही नहीं। पुलिस द्वारा पहले तो एफआईआर दर्ज ही नहीं की जाती और होती भी है तो अपराधी पुलिस की फाइनल रिपोर्ट लगते लगते छूट जाते हैं। जिससे एक तरफ आपराधिक घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है और पुलिस जिन पर अंकुश लगाने में नाकाम साबित हो रही है।
जनपद में लगातार बढ़ रहा क्राइमग्राफ बाकई में चिंता का विषय बना हुआ है। शायद ही ऐसा कोई दिन जाता हो जब जनपद में हत्या, लूट, या चोरी की बारदातें न होतीं हों। पुलिस की नाकामी से जहां एक ओर आम जनता का विश्वास पुलिस पर से उठता जा रहा है वहीं अपराधियों और पुलिस की मिलीभगत के चलते दोनो का धंधा भलीभांति फलफूल रहा है। जनपद में 25 नवम्बर में हुई शुकरुल्लापुर बैंक लूट, 5 नवम्बर को हुई मंझना में एक ही बार में सात दुकानों के ताले तोड़कर चोरों ने इतिहास बना दिया। लेकिन खुलासा अभी तक नहीं। वहीं 27 अप्रैल को अमृतपुर थाना क्षेत्र में दो लोगों की हत्या कर दी गयी थी। जिसमें अभी तक किसी अपराधी की गिरफ्तारी पुलिस नहीं कर पायी। 2 मार्च 2012 को थाना मऊदरवाजा क्षेत्र में सर्राफा व्यापारी के दो लाख रुपये सरे शाम लूट लिये थे। खुलासा अभी तक नहीं। 13 अगस्त 2012 को शमशाबाद में पुनः बैंक लूट कर अपराधियों ने यह सिद्ध कर दिया कि उनके जेहन में पुलिस की दहशत कितनी है। खुलासे के नाम पर पुलिस अभी ऊंट के मुहं में जीरा साबित हुई। 28 अगस्त 2012 को कमालगंज के सर्राफा व्यापारी सोनू तिवारी से लूट खुलासा के नाम पर पुलिस अभी एक दूसरे का मुहं ताक रही है।
23 जनवरी को शहर क्षेत्र के बढ़पुर के पास मासूम की बलात्कार के बाद हत्या की गयी, गिरफ्तारी के नाम पर अभी तक सिर्फ कागजी कार्यवाही ही हुई और पुलिस अपनी वर्दी का दम भरती फिर रही है। जनपद में न जाने ऐसे कितनी हत्यायें और लूट की बारदातें हुईं जिन्हें आज तक पंजीकृत ही नहीं किया गया। या तो वह थाने से ही डांट डपट कर भगा दिये गये और अगर तहरीर ली भी गयी तो मामले को धीरे धीरे ठंडा कर दिया। जनपद में बेखौफ हो चुके हत्यारे, लुटेरे, बदमाश का खौफ जितना आम जनता के भीतर बैठ चुका है। जहां एक तरफ हर व्यक्ति यह बात जानता है कि अपराधियों के आगे जनपद की पुलिस बौनी साबित हो रही है। ऐसे में एफआईआर दर्ज कराने से भी क्या होगा। ऐसे भी कई मामले संज्ञान में आये कि घटना होने के बाद लोग पुलिस तक जाने का प्रयास महज इसलिए नहीं करते कि नतीजा क्या होगा।
जहां एक तरफ पुलिस जनपद में सट्टा, नशीले पदार्थों के कारोबार और न जाने कितने गैर कानूनी काम धड़ल्ले से करवा रही है। जिससे हर थाना पुलिस का सिपाही से लेकर थानेदार तक अच्छी मासिक आय वसूल रहा है। शहर में तो कई ऐसी जगहों पर सट्टे का कारोबार पैर पसारे है जहां इर्द गिर्द ही पुलिस की चौकियां स्थित हैं। लेकिन पुलिस जानबूझकर अनजान बनी हुई सिर्फ पैसे कमाने में जुटी हुई है। आम जनता की सुरक्षा उसके लिए महज एक मजाक का विषय बनकर रह गयी है।
पुलिस का रोल समाज में ऐसा होना चाहिए कि जिसकी दहशत मात्र से अपराधिक किस्म के लोग अपराध करने से पहले 10 बार सोचने पर मजबूर हो जायें कि अगर अपराध के दौरान या बाद में पकड़े गये तो सख्त कार्यवाही से उन्हें कोई बचा नहीं सकता। ऐसे करने के लिए पुलिस को अपराधियों के दिल में खौफ पैदा करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता। सत्ताधारी पार्टी भी शासन व्यवस्था को दुरुस्त बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। सूबे के मुख्यमंत्री आये दिन पुलिस विभाग के आला अधिकारियों के साथ बैठक कर अपने ही सिपहसहलारों से तारीखें सुनकर फूले नहीं समा रहे और वहीं उनके ही पदेन चल रहा पुलिस विभाग जनता के भरोसे पर लात मारने से नहीं चूक रहा है।
हत्याओं की घटनाओं में शहर कोतवाली अब्बल
एक वर्ष में शहर कोतवाली के अन्तर्गत लगभग एक दर्जन हत्यायें, फतेहगढ़ कोतवाली क्षेत्र में लगभग 6 हत्यायें, थाना मऊदरवाजा क्षेत्र में 6 हत्यायें, कमालगंज क्षेत्र में तकरीबन 7 हत्यायें, कायमगंज कोतवाली क्षेत्र में लगभग 8 हत्यायें, मेरापुर थाना क्षेत्र में 5, कंपिल क्षेत्र में लगभग 3 हत्यायें, मोहम्मदाबाद कोतवाली क्षेत्र में 5 हत्यायें, अमृतपुर में 3 हत्यायें, राजेपुर क्षेत्र में दो हत्यायें, शमशाबाद क्षेत्र में चार, नबावगंज क्षेत्र में 2 हत्यायें हुईं हैं। इन सभी के अलावा भी हत्या की कई ऐसी बारदातें हुईं जिनमें लोग घरों से गायब हो गये और आज तक उनका पता नहीं चला। जो भी हो हत्या की बारदातों में नम्बर वन पर शहर कोतवाली क्षेत्र ही रहा। जहां पर सबसे अधिक पुलिस व्यवस्था व प्रशासन का शिकंजा होने के बाद भी सबसे अधिक अपराध हो रहा है।