बदल गए सब रस्मो-रिवाज, कहाँ गयी वो डोली और कंहार

FARRUKHABAD NEWS

सदियों से चली आ रही शादी के बदलते रस्मो-रिवाजों ने समाज के समक्ष कई प्रश्न खड़े कर दिए है। आज इसका जवाब किसी के पास नहीं है। गांव हो या शहर सभी अपनी संस्कृति को भुला कर शान बढ़ाने को नए-नए तरीके अपना रहे है। सदियों से चले आ रहे शादी-विवाह के रिवाजों को मान हमने दुनिया में अपना अलग स्थान बनाया था। इस पर आज भी शोध जारी है कि आखिर भारत में शादी की सफलता का राज क्या है।

अगर यही हाल रहा, तो जल्द ही हम भी उसी भीड़ में शामिल हो जाएंगे, जहां रात में हुई शादी, दिन के उजाले में तलाक में बदल जाती हैं। बुजुर्गो की मानें तो डोली व पालकी का हिंदू समाज की शादी में एक अलग महत्व है। राजा हो या रंक शादी के समय डोली व पालकी में बैठ कर ही ससुराल व मायके जाती थीं। हाईटेक युग में बदलते परिवेश में डोली-पालकी व कहार सिर्फ कहानी बन कर रह गई हैं।

पहले शादी खत्म होते ही दरवाजे पर चार कहार लाठी लेकर खड़े रहते थे, लग्जरी गाड़ी में ड्राइवर बैठा नजर आता है। इसके साथ ही बारात व महफिल के भी मायने बदल गए हैं। पहले बारात आगमन पर शरबत चलता था अब कोल्ड ड्रिंक्स या शराब का शगल है। पहले बाराती व शरातियों की महफिल सजती थी और दोनों एक दूसरे से प्रश्न पूछते थे। रूमाल में पंचमेवा डाल सभी को बांटा जाता था और फिर सजती थी नाच-गाने की महफिलें। इसमें पूरी रात फूहड़ गानों पर डांस होता था। युवाओं की हाईटेक शादियां देख बुजुर्गो ने तो बारात जाने से तौबा कर ली है।